उत्तराखण्ड को देवभूमि भी कहा जाता है. यहाँ उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बने मंदिर देश-विदेश के करोड़ों लोगों की आस्था के केंद्र हैं. इन्हीं मंदिरों में शामिल हैं पञ्च केदार. जैसा की नाम से ही पता चल जाता है ये पाँचों शिवमंदिर हैं. शिव उत्तराखण्ड में सबसे ज्यादा पाए और पूजे जाने वाले भगवान हैं. हिमालय की लगभग सभी चोटियाँ शिव से संबंधित दन्त कथाओं से जुड़ी हुई हैं. यहाँ शिव और माँ नंदा यानि पार्वती के ढेरों मंदिर हैं.
(Story Of Panch Kedar)
केदारनाथ से सारी दुनिया के श्रद्धालु परिचित हैं. लेकिन केदारनाथ अपने पूर्ण स्वरूप में यहाँ पंचकेदार के रूप में मौजूद हैं ऐसा सभी नहीं जानते. केदार के रूप में शिव की आराधना पञ्चकेदार के बगैर पूर्ण नहीं मानी जाजाती. केदारनाथ के पूर्ण स्वरूप को पूजे जाने के लिए पंच केदार की यात्रा जरूरी है.
मान्यता है कि नेपाल के पशुपतिनाथ समेत पंच केदार की यात्रा के बाद ही केदारनाथ की पूजा पूर्णता को प्राप्त करती है. केदारनाथ समेत सभी पंच केदारों तक दुर्गम हिमालयी रास्तों से पैदल होकर ही जाया जाता है. केदारनाथ में श्रद्धालुओं के रहने और खाने-पीने की अच्छी व्यवस्था है लेकिन अन्य में ऐसा नहीं है. स्थानीय ग्रामवासियों व मंदिर समिति के के सहयोग से ही यहाँ की यात्रा की व्यवस्थाएं संभव हो पाती हैं.
केदार के रूप में शिव की कथा यह है किमहाभारत के युद्ध के बाद अपने गुरु, कुल, ब्राह्मणों और सगोत्रीय भाइयों की हत्या के पाप के प्रायश्चित के लिए पांडव शिव की शरण में जाना चाहते थे. ऐसा करने का मशविरा उन्हें कृष्ण ने दिया था.
पांचों पांडवों ने अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा नियुक्त किया और शिव की तलाश में निकल पड़े. शिव उनके द्वारा किये गए कृत्यों से खफा थे और उन्हें इतनी जल्दी दोषमुक्ति नहीं देना चाहते थे. जब पांडव शिव की तलाश में काशी पहुंचे तो शिव उनसे बचने के लिए कैलाश पर्वत चले आये. नारद से खबर पाकर पांडव भी उनका पीछा करते हुए उत्तराखण्ड आ पहुंचे.
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यहाँ पहुंचकर गुप्तकाशी में पांडवों ने देखा कि बुग्याल में एक झुण्ड में विचरते गाय-बैलों में से एक अन्य से भिन्न है. उनकी समझ में आ गया कि उन्हें चकमा देने के लिए शिव ने बैल का रूप धारण कर लिया है. पांडवों द्वारा पहचान लिए जाने पर शिव ने वहां एक गड्ढा किया और जमीन में विलुप्त हो गए.
यहाँ से भगवान शिव केदारनाथ के बुग्यालों में जा पहुंचे. यहाँ भी बैल के रूप में विचरते शिव को पांडवों ने ढूँढ ही लिया. अब पांडव किसी भी हाल में उनसे प्रायश्चित करना चाहते थे. इसलिए भीम ने विराट रूप धारण कर अपने पैर दो पहाड़ी धारों पर टिका दिए. वहां विचरने वाले सभी बैल भीम के दो पैरों के बीच से आगे निकल गए. लेकिन बैल का रूप धारे महादेव ने ऐसा नहीं किया. अब पांडवों को पक्का यकीन हो गया कि बैल के रूप में शिव ही हैं. यह जानकर भगवान शिव फिर भूमिगत हो गए. लेकिन भीम ने उन्हें पकड़ने की कोशिश की और उनका पृष्ठ भाग यहाँ पर एक शिला के रूप में विराजमान हो गया.
बैल रूपी शिव के शरीर के हिस्से जिस-जिस जगह पर पुनः धरती से प्रकट हुए उन जगहों पंच केदार माना गया. पंच केदार केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर के नाम से पहचाने जाते हैं. महादेव के बैल रूप के धड़ का ऊपरी हिस्सा नेपाल की राजधानी काठमांडू में प्रकट हुआ था. यहाँ उनके पशुपतिनाथ स्वरूप की पूजा की जाती है.
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प्रथम केदार केदरनाथ में भगवान शिव के पृष्ठ भाग की, तुंगनाथ में भुजा, रुद्रनाथ में मुंह, मध्यमहेश्वर में नाभि और कल्पेशवर में जटाओं की पूजा-अर्चना की जाती है. यह सभी मंदिर 3500 मीटर से ज्यादा की ऊँचाई पर बसे हुए हैं. पंच केदारों का निर्माण भी पाडंवो द्वारा 1000 साल पहले किया बताया जाता है.
प्रथम केदार केदारनाथ मंदिर उत्तराखण्ड के गढ़वाल में केदार पर्वत पर बना है. केदारनाथ पंचकेदार होने के साथ-साथ ज्योतिर्लिंगों में से भी एक है. केदारनाथ का महत्त्व चार छोटे धामों में से एक होने के कारण भी है. यहाँ शिव के पृष्ठ भाग की पूजा की जाती है. कत्यूरी शैली में बने इस मंदिर का जीर्णोद्धार आदि शंकराचार्य द्वारा कराया गया था. 2013 में उत्तराखण्ड मे आयी आपदा का केंद्र केदारघाटी में होने के बावजूद इस मंदिर को आंच नहीं आने को भी एक चमत्कार माना जाता है.
द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर में महादेव के मध्य भाग की पूजा-अर्चना की जाती है. मध्यमहेश्वर चौखंबा के शिखर पर हिम से घिरी सुरम्य घाटी में बना हुआ है. पौराणिक मान्यता के अनुसार शिव-पार्वती ने यहाँ के नैसर्गिक वातावरण में ही अपनी मधुचंद्र रात्रि बितायी थी. केदारनाथ की तरह ही यहाँ भी दक्षिण भारत के शैव पुजारी पूजा-अर्चना संपन्न कराते हैं.
तृतीय केदार तुंगनाथ दुनिया की सर्वोच्च ऊँचाई पर बना शिव मंदिर है. इसकी ऊंचाई 3680 मीटर है. यहाँ महादेव की भुजाओं की पूजा की जाती है. यहाँ मक्कूमठ के मैठाणी ब्राह्मण पूजा-अर्चना संपन्न कराते हैं.
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चतुर्थ केदार रुद्रनाथ समुद्र तल से 2286 मीटर की ऊँचाई पर स्थित है. यहाँ महादेव के मुख की पूजा-अर्चना की जाती है. रुद्रनाथ प्राकृतिक चट्टानों से बना प्राचीन मंदिर है. यह हिमालय की पहाडियों के बुग्याल और बुरांश के जंगलों से घिरा रमणीक स्थल है. रुद्रनाथ की यात्रा पंच केदारों में सबसे बीहड़ और दुरूह मानी जाती है.
पांचवे केदार कल्पेश्वर को कल्पनाथ नाम से भी जाना जाता है. पंच केदारों में बाकी सभी के कपाट शीतकाल में बंद कर भगवान को उनके शीतकालीन प्रवास में स्थापित कर दिया जाता है. लेकिन मद्महेश्वर के कपाट साल भर खुले रहते हैं. यहाँ शिव की जटाओं की पूजा अर्चना की जाती है. किवदंती है कि यहाँ पर दुर्वासा ऋषि ने कल्पवृक्ष के नीचे शिव की तपस्या की थी. इसीलिए इसे कल्पेश्वर या कल्पनाथ के नाम से जाना जाता है. एक कथा यह भी है कि असुरों के आतंक से त्रस्त देवताओं ने यहाँ पर महादेव की स्तुति की और शिव ने उन्हें इनसे मुक्ति दिलाई.
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