उसका जन्म एक झोपड़ी में हुआ. माता-पिता दिहाड़ी मजदूर थे. रोज सुबह उठते और तैयार होकर काम की तलाश में निकल आते. कभी काम मिलता, तो शाम की दाल-रोटी का जुगाड़ हो जाता. काम नहीं मिलता तो भूखे पेट सो जाते. फ्रांस में बरगुंडी के उस इलाके के आसपास अंगूर के बाग थे, इसलिए अंगूर की फसल के मौसम में रोजी-रोटी का इंतजाम हो जाता लेकिन सर्दियों में काम की कमी के कारण ज्यादातर भूखे ही रहते. Story of Jeanne Baret on International Labour Day 2020
झोपड़ी भी मालिक की, खेत और अंगूर का बाग़ भी मालिक का. उनके और मालिक के घोड़े के जीवन में खास अंतर नहीं था. दोनों ही जमकर मेहनत करते और रूखा-सूखा खाकर पेट भर लेते. जौ और जई की रोटी चबाते समय मुंह में से भूसे के तिनके निकाल लेते. मुफलिसी के उन्हीं दिनों 27 जुलाई 1740 को उनके घर में एक बिटिया ने जन्म लिया. अगले दिन स्थानीय चर्च में उसका बपतिस्मा हुआ. नाम रखा गया – जीन बैरेट. माता-पिता अनपढ़ थे, इसलिए सार्टिफिकेट पर उनके हस्ताक्षर नहीं हो सके. Story of Jeanne Baret on International Labour Day 2020
जीन नाम की यह लड़की मजदूरों और मजबूरियों की संगत में बड़ी हुई. वह भी मज़दूरी में हाथ बंटाने लगी. उसकी जिज्ञासाएं बहुत थीं, इसलिए वह आसपास के सभी पेड़-पौधों और जड़ी-बूटियों के बारे में जान लेना चाहती थी. कुदरत से वह बहुत प्यार करती थी इसलिए पढ़ना-लिखना उसने भले ही न सीखा हो, लेकिन कुदरत उसे चुपचाप अपने बारे में बताती रही. पूछते-पाछते और खुद उनकी खूबियों का पता लगाते-लगाते वह वनस्पतियों के बारे में बहुत-कुछ जानने लगी. लोग उसे जड़ी-बूटी लड़की कहने लगे.
यह सब चल ही रहा था कि उस मजदूर लड़की की ज़िंदगी की कहानी में धीरे से एक मोड़ आया. उसके गांव से करीब बीस किलोमीटर दूर जाने-माने वनस्पति विज्ञानी फिलिबर्ट कॉमर्सन की सन 1760 में शादी हुई. उन्हें घरेलू कामकाज के लिए एक सेविका की जरूरत थी. संयोग ही था कि उस मजदूर लड़की जीन बैरेट को वह नौकरी मिल गई. दो साल ही बीते थे कि एक बेटे को जन्म देकर कॉमर्सन की पत्नी का दुखद निधन हो गया.
जीन बैरेट मेहनती लड़की थी. बैरेट के घर के कामकाज के साथ-साथ वह वनस्पतियों को पहचानने में भी कॉमर्सन की मदद करती थी. और, अब उसने बच्चे की देखभाल की जिम्मेदारी भी संभाल ली. बाद में कामर्सन ने अपना बेटा अपने साले साहब को लालन-पालन के लिए सौंप दिया. इधर जीन बैरेट के पैर भारी हो गए. जितने मुंह उतनी बातें. कहने वाले पीठ पीछे यह भी कहने लगे कि हो न हो, होने वाले बच्चे का पिता शर्तिया कॉमर्सन ही होगा.
बहरहाल जीन का बेटा पैदा हुआ. उन दिनों के फ्रांसीसी कानून के अनुसार बिन ब्याही मां चाहे तो बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र में पिता का नाम लिखवा सकती थी. बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र करीब 30 किलोमीटर दूर बनवाया गया. कॉमर्सन के दो परिचित लोगों ने गवाहों के रूप में दस्तखत किए लेकिन जीन बैरेट ने बच्चे के पिता का नाम नहीं बताया. फिर वे पेरिस चले गए और वहां एक अपार्टमेंट में साथ रहने लगे. बाद में बच्चा एक अस्पताल को गोद लेने के लिए दे दिया.
तब नई जगहों की खोज और पेड़-पौधों तथा जीव-जंतुओं के नमूने जमा करने का दौर था. फ्रांस ने भी पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए नए समुद्री अभियान की योजना बनाई जिसकी बागडोर अनुभवी और साहसी एडमिरल तथा अन्वेषक लुइस एंतोइने दे बोगेनविले को सौंपी गई. अभियान के लिए ‘बोदेयूज’ और ‘इतोइले’ नामक दो जलपोत तैयार किए गए. एडमिरल बोगेनविले ने इस अभियान में शामिल होने के लिए वनस्पति विज्ञानी फिलिबर्ट कामर्सन को भी न्योता भेजा. वनस्पति विज्ञानी के साथ वनस्पतियों के नमूने जमा करने के लिए शाही खर्चे पर एक सेवक ले जाने की भी सुविधा थी. लेकिन, सेवक कहां से आए? फ्रांस के कानून के अनुसार उन दिनों समुद्री यात्रा पर जलपोत में औरतों को ले जाने पर कड़ी पाबंदी थी. खैर, जलपोतों के कूच करने का दिन आ गया, लेकिन कोई ढंग का और अनुभवी सेवक नहीं मिला. जलपोत ‘इतोइले’ कूच करने को ही था कि अचानक पच्चीस-छब्बीस वर्ष का एक युवक आया और उसने सेवक के रूप में साथ ले जाने की गुजारिश की. उसे बेड़े में कॉमर्सन के सेवक के रूप में शामिल कर लिया गया. कॉमर्सन और सेवक को इतोइले जलपोत में बैठाया गया जो मालवाही पोत था. कॉमर्सन के पास वैज्ञानिक उपकरण बहुत थे. पोत के कैप्टन ने उसके और सेवक के रहने के लिए अपना केबिन दे दिया जिसमें अलग शौचालय भी था.
दिसंबर 1766 के आखिरी दिनों में जलपोत रवाना हुआ और एटलांटिक महासागर को पार करता हुआ उरुग्वे पहुंचा. वहां कॉमर्सन और उसके सेवक ने पौधों के तमाम नमूने जमा किए. कॉमर्सन सी-सिकनैस और पैर में घाव के कारण बाहर निकल कर अधिक चल-फिर नहीं पा रहा था. इसलिए पौधों के अधिकतर नमूने सेवक ही जमा करता रहा. फिर वे ब्राजील में रियो-डी-जेनेरो के तट पर पहुंचे. वहां से भी पौधों के काफी नमूने जमा किए गए. उनमें से एक नमूना बेहद खूबसूरत फूलदार पौधे का भी था जिसका नाम कॉमर्सन ने जलपोत के कमांडर बोगेनविले के नाम पर ‘बोगेनविलिया’ रख दिया. फिर वे दक्षिणी अमेरिका के अंतिम छोर पर मैजेलन जलडमरूमध्य को पार कर प्रशांत महासागर में आगे बढ़े और ताहिती द्वीप समूह में पहुंच गए. वहां तट पर बैरेट के उतरते ही स्थानीय निवासियों ने उसे औरत के रूप में पहचान लिया. बैरेट तेजी से पोत में पहुंची. उसने स्वीकार किया कि हां वह औरत है. इस तरह एक बहुत बड़े रहस्य का पर्दाफाश हुआ. लेकिन, अब कुछ नहीं हो सकता था. उसे जलपोत से उतार नहीं सकते थे. उसने पेड़-पौधों के नमूने जमा करने में बहुत मेहनत की थी. साथ ही बीमार कामर्सन की देखभाल भी वही कर रही थी. Story of Jeanne Baret on International Labour Day 2020
सन् 1768 में वे मारीशस पहुंचे. वहां वे दोनों गवर्नर पीयरे पोइवरे के मेहमान रहे. फिर वे मैडागास्कर गए जहां उन्होंने अनोखे और अनजान पौधों के नमूने जमा किए. कॉमर्सन ने वहां गहरे हरे रंग की पत्तियों और सफेद फूलों वाली एक सुंदर ऊंची झाड़ी का नाम जीन बैरेट के नाम पर बरेटिया बोनाफिडिया रखा. विडंबना यह है कि उस पौधे का नाम उनके नमूने पेरिस पहुंचने से पहले ही टूरिया रखा जा चुका था. वनस्पति विज्ञान में 70 से भी अधिक प्रजातियों का नाम कॉमर्सन के नाम पर रखा गया है. लेकिन, जीन बैरेट के नाम पर केवल एक ही पौधा है- सोलेनम बरेटी.
वे दोनों मारीशस लौटे जहां सन 1773 में कॉमर्सन का निधन हो गया. साल भर बाद बैरेट ने एक फ्रांसीसी सैनिक से विवाह कर लिया. सन 1775 की शुरूआत में पृथ्वी की परिक्रमा पूरी करके वह पौधों के नमूनों और कॉमर्सन के नोट्स के साथ फ्रांस वापस पहुंची. पेरिस छोड़ने से पहले कॉमर्सन ने अपनी वसीयत में कुछ धन और अपार्टमेंट के सामान का स्वामित्व जीन बैरेट के नाम पर कर दिया था. उससे बैरेट ने सैनिक पति के साथ नई ज़िंदगी शुरू की. पति ने लुहार का काम शुरू किया.
सन् 1785 में सागर मंत्रालय की ओर से बैरेट के नाम 200 लिव्रे (पौंड) की पेंशन स्वीकृत की. इस तरह उसके अथक परिश्रम, लगन और समुद्री मार्ग से पहली बार पृथ्वी की परिक्रमा करने के लिए उसे आधिकारिक रूप से सम्मान मिला. 5 अगस्त 1807 को 67 वर्ष की उम्र में प्रकृति से दीक्षित उस साहसी महिला का निधन हो गया. लेकिन, पृथ्वी की परिक्रमा करने वाली प्रथम महिला के रूप में उसका नाम इतिहास में दर्ज हो गया. उसी के कारण नई दुनिया का वह खूबसूरत फूल बोगनवेलिया भी हमें मिला. Story of Jeanne Baret on International Labour Day 2020
–देवेन मेवाड़ी
यह भी पढ़ें: बलि का बकरा – देवेन मेवाड़ी की कहानी
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखना शुरू किया है.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
2 Comments
Harihar Lohumi
बहुत रोचक व अद्भुत जानकारी । आजकल वोगोविलिया अनेक रूपों में अवतरित होकर मनमोहक दृश्य प्रस्तुत कर रहा है।वोगोनविलिया जब खिलता है लगता है घरती खिल उठी है।
Shubhadarshini Singh
Very nice topics hidden treasures