पीहू एक बहुत ही सुलझी हुई, समझदार, खूबसूरत और होशियार बच्ची थी और अपने माता-पिता की इकलौती सन्तान भी. बचपन से ही पीहू पढ़ाई में अव्वल थी. पढ़ाई के साथ साथ माँ का काम में हाथ बंटाना, पापा के साथ बिल्कुल बेटा बनकर चुहल करना पीहू की ज़िंदगी का मानो एक जरूरी हिस्सा हो. उसे जितनी रुचि माँ के साथ मिलकर घरेलू काम (झाड़ू-पोछा, खाना-बरतन , कढ़ाई-बुनाई) करने में थी, उतनी ही रुचि पिता के साथ क्रिकेट-फुटबॉल खेलना, न्यूज़ सुनना, आदि में भी थी. जैसे-जैसे पीहू बड़ी होती रही उसकी खूबसूरती तो बढ़ती ही रही लेकिन साथ ही उसकी योग्यताओं ने भी रूप लेना शुरू किया. अब पीहू सभ्य संस्कारी होने के साथ साथ सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने वाली लड़की हो गयी. (Story by Bhumika Pandey)
12वीं अच्छे नम्बरों से पास कर चुकी पीहू अब कॉलेज से डिग्री की पढ़ाई करने लगी है साथ ही उसने कॉलेज में एनसीसी भी ली है. खेलों में बॉलीबॉल और शटलर खेलना पीहू को ख़ास पसन्द है तो वह कॉलेज में अपनी पढ़ाई के साथ साथ यह खेल भी खेला करती है.
गेम्स के लिए पीहू को शहर से बाहर टूर्नामेंट खेलने जाना ही पड़ता है. अब 26 जनवरी को दिल्ली परेड के लिए भी पीहू का सलेक्शन हो जाता है. उसके माता पिता इस उपलब्धि पर बहुत खुश हैं. जब पीहू 26 जनवरी की दिल्ली परेड पर शामिल थी तो उसके वीडियो टीवी पर भी संचालित हो रहे थे और उसके रिश्तेदार फ़ोन कर कर के उसके माता पिता को बधाई दे रहे थे.
अब पीहू डिग्री भी ले चुकी है. उसकी शादी की उम्र भी हो रही थी. पीहू चाहती थी कि वह आगे पढ़ाई करे और अपना कैरियर अपनी पहचान बनाये. लेकिन उसी बीच पीहू के लिए काफी रिश्ते आने लगे. काफी ना नुकर करने के बाद भी पीहू की एक ना चली, क्योंकि उसके माता पिता चाहते थे कि समय रहते उनकी बेटी का विवाह ढंग की जगह हो जाये. अंत में उसका विवाह करवा दिया गया.
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शुरुआती दिनों में तो विवाह का माहौल ही था पीहू उस नए परिवार को ठीक समझ भी न पायी थी. धीरे-धीरे सब सामान्य होने लगा पीहू अपने नए परिवार में घुलने-मिलने लगी. उसके ससुराल में थे कुल 7 लोग (सास-ससुर, जेठ-जेठानी, भतीजा और भतीजी और उसके पति). अब पीहू को मिलाकर परिवार में कुल 8 लोग हो गए थे. पीहू छोटे से परिवार में रही हुई लड़की, बड़े परिवार के साथ तालमेल बिठाना सीख रही थी. इसी दौरान एक दिन अचानक उसे पता चला जिस आदमी के लिए वह अपना अपने माँ-पापा का घर, अपने सपने, अपनी खुशियां सब छोड़ के आयी है वह आदमी दारू के नशे में इतना चूर रहता है कि उसे अपनी ही सुध नहीं. मानो पीहू के पैरों तले ज़मीन ही खिसक गयी. वह सोच में पड़ गयी कि मैं कहाँ आ फँसी.
धीरे-धीरे उसे महसूस होने लगा कि परिवार के बाक़ी सदस्यों का व्यवहार भी उसके लिए अब बदलने लगा है. और बदले भी क्यों ना. जिसका पति दिन-रात नशे में चूर रहता है गाली-गलौज करता है अपनी सुध में नहीं रहता उसके साथ बाक़ी परिवार के सदस्य भी क्यों ढंग से बर्ताव करते. यह सब देखकर पीहू को लगता कि काश मैंने शादी ही न की होती. काश अपनी पढ़ाई जारी रखी होती. लेकिन वो बेचारी उस काश नाम के दलदल में ही फँस के रह जाती.
इसी दौरान उसे मालूम हुआ कि वह माँ बनने वाली है. वह समझ ही न पायी की माँ बनने की बात पर ख़ुश हो या दुःखी. पीहू की गर्भवती होने की बात जानकर भी उसके पति ने नशे को नहीं छोड़ा. वह आये दिन शराब के नशे में गाली-गलौज कर घर का माहौल भी खराब करता. पीहू ने इसी तनाव के माहौल में एक लड़की को जन्म दिया, जो पीहू की ही तरह खूबसूरत नैन नक्श की थी. उस बच्ची को देख पीहू खुशी से निहाल हो उठती उसे लगता जैसे उसे जीने की वजह मिल गयी है. अब वह घर का काम निपटा कर अपना सारा समय बच्ची को देने लगी है. अभी भी उसका पति पी कर आता पर वह अब अपनी बच्ची पर ज़्यादा ध्यान देने लगी है.
अब पीहू की बच्ची छुटकी बड़ी होने लगी है. पीहू सोचने लगी है कि वो अपनी बच्ची को पढ़ाएगी और उसे उसके पैरों पर खड़ा होने तक उसका सहयोग करेगी.
पीहू की बेटी अब 3 साल की होने को है पर उसके पति और ससुराल वालों के हाल तो ज्यों के त्यों हैं. पर जब से उसकी लड़की हुई है उसमें दोबारा से हिम्मत आने लगी है. अब वह दोबारा माँ बनने वाली है. जिस दिन उसे यह बात पता चली उसी दिन उस का पति देर रात गए नशे में धुत घर आया और बेवज़ह पीहू को खूब पीटने लगा और उसे और उसकी बच्ची को जान से मारने के लिए धमकी देने लगा. पीहू डरी ज़रूर थी पर कहते हैं ना जब माँ को अपना बच्चा दर्द में दिखे तो वो काली का रूप भी ले लेती है. पीहू ने अपनी बच्ची पकड़ी और वो आधी रात को घर से निकल गयी.
अगले दिन जब उसके पति को होश आया तो वो उसे तलाशने के लिए इधर-उधर भटका , कई महीनों तक उसके परिवार वालों के लाख कोशिश करने पर भी उन्हें पीहू नहीं मिली. अब पीहू एक 3 साल की बच्ची को ले कर गर्भावस्था में किस हाल पर है यह बात किसी को नहीं पता…..
पीहू जब अपने पति के जान से मारने की कोशिश के बाद आधी रात को घर से भाग निकली थी तो वह गर्भवती थी, दूसरी बार माँ बनने वाली थी. वह अपनी 3 साल की बच्ची को साथ ले कर भागी थी. आधी रात उसने कैसे काटी यह वो बेचारी ज़िन्दगी भर नहीं भूल सकती. कैसे बेचारी रात भर चलती रही. कभी जंगली जानवरों का डर तो कहीं इंसानी रूप में छुपे जानवरों का डर. आधी रात को घर से भागने के बाद वह डरी, सहमी जंगल के रास्ते चलते रही.
अगली सुबह वह शहर पहुँची. जहाँ वह एक संस्था (NGO) से मिली. उन्हें अपनी सारी व्यथा उन्हें सुनायी. संस्था के लोगों ने उसे सहारा दिया उसे सम्भाला और हिम्मत दी. संस्था की मदद से पीहू ने अपने पति और ससुराल वालों के ख़िलाफ़ केस दर्ज़ कराया, जिससे उसके पति और ससुराल वालों को सज़ा हुई. ज़ुर्माना भी भरना पड़ा. और बाद में उसने अपने पति को तलाक भी दे दिया.
अब पीहू पति और ससुराल नाम की इस टेंशन से मुक्त है, और अब संस्था वाले ही उसकी देखरेख करते हैं. उस संस्था में रहते हुए पीहू ने एक और बच्चे को जन्म दिया जो कि लड़का था. संस्था के लोगों ने ही बच्चे का नामकरण किया और बच्चे का नाम रखा गौरव. शायद उन्होंने ये नाम इसलिए भी रखा क्योंकि वो चाहते थे कि वो नन्हा बच्चा बड़ा हो कर अपनी माँ का गौरव बने.
पीहू पढ़ाई में तो अव्वल थी ही और साथ ही वो कढ़ाई-बुनाई जैसे कामों को करने में भी सक्षम थी. अब पीहू संस्था में ही कई महिलाओं को कढ़ाई-बुनाई सिखाने लगी थी और उनके बच्चों को ट्यूशन भी पढ़ाने लगी. उसके बच्चे भी धीरे-धीरे बड़े होने लगे और अब स्कूल भी जाने लगे थे.
पीहू दिन भर कड़ाई बुनाई सिखाती और ट्यूशन पढ़ाती और अपने बच्चों की देखरेख, खान-पान और पढ़ाई का भी ख़ास ध्यान रखती. वह अपनी लड़की को भी सारी चीज़ें सिखाती. घर के काम के साथ पढ़ाई और खेल भी. लड़के को भी सारे काम, खेल पढ़ाई के साथ घर के काम भी. जितना होता वह अपने बेटे को अच्छी शिक्षा देती और बेटी को भी ग़लत के खिलाफ आवाज़ उठाना सिखाती. आज सालों बाद पीहू की बेटी एक अच्छे मुक़ाम पर है वह वक़ालत कर रही है और बेटा फ़ौज में लेफ्टिनेंट है. सच में पीहू के बेटे ने अपनी माँ का गौरव बन कर दिखाया. पीहू की मेहनत और तपस्या रंग लायी. कहते हैं ना—
कुछ सिखाकर यह दौर भी गुजर जाएगा,
फिर एक बार और इंसान मुस्कुराएगा,
मायूस ना होना, इस बुरे वक्त से,
कल, आज है और आज, कल हो जाएगा
पिथौरागढ़ में रहने वाली भूमिका पाण्डेय समाजशास्त्र और मनोविज्ञान की छात्रा हैं. लेखन में गहरी दिलचस्पी रखने वाली भूमिका पिथौरागढ़ डिग्री कॉलेज की उपाध्यक्ष भी रह चुकी हैं.
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