नई दिल्ली. कल राष्ट्रपिता भवन में आयोजित समारोह में सोशल मीडिया वीरता पुरस्कारों का वितरण किया गया. युद्ध काल का सर्वोच्च सम्मान, सोशल परमवीर चक्र, लांस नायक पकड़ सिंह (मरणोपरांत) को दिया गया. पन्द्रहवीं यूनिट ट्रोल रेजिमेंट के जाबांज पकड़ सिंह जब अपने गश्ती दल के साथ अलग-अलग प्रोफाइल्स पर गश्त लगा रहे थे तभी इन्हें दुश्मन (वामपंथी) सेना की एक पेज पर गतिविधि दिखी. आपने दुश्मन को ललकारा और उसे आत्मसमर्पण करने के लिये कहा. परन्तु दुश्मन (वामपंथी) ने समूह में इन पर हमला कर दिया. इस पर लांस नायक पकड़ सिंह अकेले ही दुश्मन से भिड़ गए.
(Social Media Bravery Award Satire)
अपनी बहादुरी और सूझबूझ से अर्थव्यवस्था, ग्रोथ रेट, जैसे बमों का सामना करते हुए आपने फटाफट अपनी यूनिट के अन्य ट्रोल कमांडो को एकत्र किया और मोर्चा सम्भाला. आप निरन्तर मास रिपोर्टिंग का सामना करते हुए साथी ट्रोलर्स का उत्साह बढ़ाते रहे. इसी बीच एक कमेंट इनकी छाती में जा कर लगा. पकड़ सिंह इसकी चिंता किये बिना दुश्मन से लड़ते रहे. तभी इनके बगल में प्राणमंत्री के पुराने भाषणों का एक मीम फटा, जिसके छर्रे इनकी दाई जांघ में घुस गए. पर लांस नायक पकड़ सिंह ने इसकी भी परवाह नहीं की. वे ट्रोल बटालियन के उद्घोष- जाओगे तुम पानी माँग, ऐसी तुमाई पकड़ें टाँग का निरंतर नारा लगाते रहे. साथी ट्रोलर्स के प्रोफाइल ब्लॉक हो रहे थे पर वे फिर भी संघर्ष करते हुए दुश्मन (वामपंथी) पर हमले करते रहे. अंत मे एक दुश्मन सैनिक के कायरतापूर्ण वार से अपना स्वयं का प्रोफाइल ब्लॉक करवा कर सर्वोच्च बलिदान दे दिया.
शांतिकाल का सर्वोच्च सम्मान, सोशल अशोक चक्र, आठवीं यूनिट आशिक रेजिमेंट के कैप्टन नारी कुमार उद्धारक को घरेलू मोर्चे पर अद्भुत शौर्य के प्रदर्शन के लिये प्रदान किया गया. कैप्टन उद्धारक जब नारी जाति का उद्धार करने हेतु पिंकी की डीपी पर सारगर्भित कमेंट कर रहे थे उसी समय उनकी निजी पत्नी ने पूरी ताकत से हमला किया.
कैप्टन उद्धारक और पिंकी जब तक इस हमले से सम्भल पाते तब तक उनकी पत्नी ने अपने भाइयों और अन्य मायके वालों को एकत्र कर- यही है वो चुड़ैल! की घोषणा कर दी. कैप्टन उद्धारक बिना समय गंवाए दुश्मन से भिड़ गये. एक तरफ़ कैप्टन उद्धारक और पिंकी, दूसरी तरफ उनकी पत्नी और मायके वाले. उद्धारक जी की पत्नी निरंतर उन पर पुराने किस्सों के हथगोले फेंक रही थीं, और उनके साले उद्धारक जी की पूर्व-पिटाई की कथाओं की गोलियां दाग रहे थे. खुद को चारों तरफ से घिरा देख पिंकी चिल्लाई-
सैयां की रंगबाज नगरिया फासिस्टन ने घेल्लई.
संजय चतुर्वेदी की कविता से
पनघट पै पछताय गगरिया फासिस्टन ने घेल्लई.
उद्धारक जी ने घोषणा कर दी कि उनकी पत्नी एक नम्बर की फासिस्ट है, उसके घर वाले भी सब फासिस्ट हैं. हर पति की उसकी पत्नी से लड़ाई मूलतः फासीवाद से लड़ाई है. ‘हम लड़ेंगे पिंकी’ चीखते हुए वे भी अपनी पत्नी से भिड़ गए. पिंकी का कमेंटबॉक्स जंग का मैदान बन गया. कैप्टन नारी ने अपनी पोस्ट अंत तक नहीं छोड़ी. फिर उनके वर्चुअल ज़ख्मो को रियल बनाने उनकी पत्नी रेकी करते-करते घर की दुछत्ती तक पहुँच गईं, जहाँ पर छुप कर वे पिंकी से चैटिंग कर रहे थे. “साले नारी, यहाँ छुपा है!”- कह कर वे कैप्टन नारी पर कूद पड़ीं. जबरदस्त मल्लयुद्ध में लहूलुहान होने के उपरांत भी कैप्टन ने हार नहीं मानी. आज भी उनका दिल पिंकी के लिये धड़कता है. घटना में अपनी एक आँख और एक टाँग गंवाने के बाद भी वे पिंकी को स्कूटी सिखाने में सफल रहे. युद्ध काल का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, सोशल महावीर चक्र, सैकिंड यूनिट, बॉटली रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट वाम कुमार को प्रदान किया गया.
(Social Media Bravery Award Satire)
लेफ्टिनेंट वाम जब अपनी पोस्ट पर जातिवाद के दंश और जाति मुक्त भारत की चर्चा कर रहे थे तभी उन पर सनातन अटैक हुआ. पहला हमला वीर सनातन ने किया. उसके बाद जय सनातन, असली सनातन, असली पुराना सनातन, हमारी कोई ब्रांच नहीं है सनातन भी हमले में शामिल हो गए. सनातन धर्म में जाति का कोई स्थान नहीं है, जाति मध्यकाल की देन है जैसे मोर्टार दागे जाने लगे. लेफ्टिनेंट वाम ने तत्काल पुरुष सूक्त चला दिया, और सुरक्षित स्थान पर पोज़िशन ली. पर दुश्मन के पास भगवदगीता के गुणकर्मविभागशः की शील्ड थी. गोलीबारी तेज होती जा रही थी. धीरे-धीरे उनकी बैटरी और डाटा, दोनों ख़तम होने लगे. उनके सभी साथी लॉगआउट कर चुके थे. पर वे जातिमुक्त भारत के लिये प्रतिबद्ध थे. “सनातन की आड़ में ठाकुर लड़ रहे हैं सब” कह कर उन्होंने दुश्मन को ललकारा. “हाँ तो ब्राह्मणों को बड़ा दर्द है?” दुश्मन ने जवाब दिया. “केवल सूर्यवंशी ठाकुर ही मुझसे युद्ध करें, चन्द्रवँशी नहीं!” लेफ्टिनेंट वाम जाति व्यवस्था के ख़िलाफ़ आक्रामक होकर लड़ रहे थे. “हम भी अट्ठारह बिसवा वालों से लड़ने के इच्छुक नहीं हैं.” दुश्मन का जवाब आया. “अट्ठारह बिसवा नहीं हूँ सालों, शुद्ध बीस बिसवा वाजपेयी हूँ.” कैप्टन वाम ने ईंट का जबाव पत्थर से दिया. उसके बाद दोनों पक्षों में हट, भग, घुस, निकल, तू वहीं रुक, आदि के हथगोले चले. लेफ्टिनेंट वाम किसी तरह रेंग कर चार्जर तक पहुँचे और फिर पुनः युद्ध प्रारम्भ कर दिया. सुबह तक वे मोर्चा सम्भाले रहे और अपनी पोस्ट बचा ली.
शांतिकाल का दूसरा सर्वोच्च सम्मान, सोशल कीर्ति चक्र, पांचवीं बटालियन सशस्त्र कवि बल के असिस्टेंट कमांडेंट शांतिलाल शार्दूल को प्रदान किया गया. असिस्टेंट कमांडेंट शांतिलाल जब अपनी बैरक में आराम कर रहे थे तभी जरिये मुख़बिर उन्हें सूचना मिली कि गंदे नाले के पास आलोचकों का एक दल उनकी कविता पर हमला करने की फिराक में है. यह सुनते ही शांतिलाल एकदम से शार्दूल बन गये. तत्काल वे अपने बल के जूनियर कवियों के साथ मौके के लिये रवाना हुए और पोजीशन सम्भाली. आलोचक- कविता अश्लील है, स्त्री विरोधी है की गोलियाँ दाग रहे थे.
असिस्टेंट कमांडेंट शांतिलाल आलोचकों से लोहा लेने के लिये गंदे नाले में कूद पड़े. कविता को बचाने के प्रयास में वे लहूलुहान हो गये. हालाँकि कविता भी पहले से ही बहुत लहूलुहान प्रकार की थी. उन्होंने कविता को कालजयी, अनुपम, अद्भुत, अविस्मरणीय का कवर फायर दिया. फिर खुद घायल होते हुए भी वे कविता को अपने कंधे पर बिठा कर बैरक तक वापस लाने में सफल रहे. अपनी जान पर खेल कर कविता की रक्षा करने के लिये उन्हें कीर्ति चक्र प्रदान किया गया. समारोह में सोशल मीडिया की समस्त सेनाओं के अध्यक्ष, सोशल मीडिया अर्ध-सैनिक बलों के वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे.
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मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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