इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर अनुसार विधि आयोग ने सरकार को दी गयी अपनी सिफारिशों में कहा है कि लोकतंत्र में “एक ही पुस्तक से गायन देशभक्ति का बेंचमार्क नहीं है” वहीं लोगों को आजादी है कि जिस तरह चाहें अपने देश के प्रति प्रेम दिखा सकतें हैं. विधि आयोग ने अपनी सिफारिश में यह भी कहा है कि केवल एक विचार व्यक्त करना जो की सरकार की नीति के अनुरूप नहीं है, देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए.
जस्टिस बीएस चौहान कि अध्यक्षता वाले आयोग ने यह भी परामर्श दिया है कि अगर कोई शख्स सरकार की आलोचना करता है या उसके खिलाफ बयान देता है तो उस पर देशद्रोह या मानहानि का मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिए. आईपीसी की धारा-124ए के पुनर्निरीक्षण का सुझाव देते हुए कहा कि देश की आलोचना को देशद्रोह नहीं माना जाना चाहिए. राजद्रोह का मुकदमा तभी बनता है, जब हिंसा और गैरकानूनी तरीकों से सरकार को उखाड़ फैंकने के मकसद से ऐसा किया जाए.
आयोग ने कहा कि साफ़ तौर पर कहा कि वैचारिक असहमति और देशद्रोह के मध्य बड़ा अंतर किया जाना चाहिए. भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124(ए) में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, या लोगों को उकसाता है, नफरत फैलाने का काम करता है तो उस पर देशद्रोह का मुकदमा बनता है. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले को अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है.
भारतीय दंड संहिता कि जिस धारा (124-ए) के पुनर्निरीक्षण कि आयोग द्वारा सिफारिश कि गयी है उसे ब्रितानियों द्वारा 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर लिया गया. ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में यह आज भी मौजूद है.
आयोग ने अपनी सिफारिशों में भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में देशद्रोह के कानून को फिर से परिभाषित किये जाने पर विचार करने का आग्रह किया है.
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