नैनीताल में शेरवानी लौज के पन दा की चाय जिसने एक बार पी ली तो समझो वह उस चाय का मुरीद हो गया. मूल रूप से दौलाघट के रहने वाले पनदा का हंसमुख स्वभाव ही ऐसा था कि जिससे दो-चार बातें हुई, उनसे एक पारिवारिक रिश्ता सा बन जाता. अस्सी के दशक का एक दौर ऐसा भी था कि एटीआई तथा वन विभाग के वर्किंग प्लान के तमाम कर्मचारियों का लंच के समय पनदा की दुकान में चाय के लिए ऐसा मजमा लगता कि बारी की इन्तजार के लिए मिनटों खड़ा रहना पड़ता. Sherwani Lodge’s Pan Da in Nainital
एक छोटी सी दुकान जिसमें सामने पड़ी बैंच पर बमुश्किल चार-पांच लोग बैठ पाते और बाकी लोग दुकान के बाहर खड़े खड़े अपनी बारी का इन्तजार करते. चाय की महक और स्वाद के चलते इन्तजार की परवाह किये बिना, लगभग दस मिनट की पैदल दूरी तय कर हम भी उनकी दुकान की ओर खींचे चले आते. पन दा की चाय तो लाजबाव थी ही साथ ही हास-परिहास का जो माहौल वहां बनता, वह भी कम रोचक नहीं थां. टोटे-नफे का हिसाब लगाये बिना पन दा हर ग्राहक को तसल्ली देते और कभी कभी तो खाली दूध में बनी चाय ही सामान्य चाय के रेट पर देने में भी हाथ नहीं खींचते. Sherwani Lodge’s Pan Da in Nainital
वन विभाग के वर्किंग प्लान का एक कर्मचारी जिनका नाम तो पता नहीं, लेकिन अतरची के नाम से ज्यादा जाना था, नियमित रूप से लंच टाइम पर चाय पीने उनकी दुकान पर आता. वैसे अतरची होते हुए भी कहीं से कहीं तक उसके नशे में होने का आभास नहीं होता था. यों भी अतरची अपनी धुन में गुमशुम ही रहते हैं, बाहरी आव-भाव से उसके नशे का अन्दाजा नहीं लगाया जा सकता. अन्य ग्राहकों की तरह सामान्य व्यवहार रहता उसका भी.
एक दिन ज्यों ही हमने दुकान के अन्दर कदम रखा, वह चाय पीकर गिलास नीचे रख चुका था. कुछ देर बैठने के बाद, उसने जेब से पांच रूपये का नोट निकाला और चाय के पैसे पन दा को देकर पैसे काटने की बात कहने लगा. पन दा ने नोट हाथ में लिया और उसकी ओर एक हल्की मुस्कराहट के साथ बोले – क्यों पांच का नोट ही क्यों दे रहे हो, बन्द मक्खन के कौन देगा? वह बड़ी अकड़ के साथ कहने लगा, बन्द मक्खन मैंने खाया कहां? बहुत देर तक बहस चलते रही, पन दा उसे बन मक्खन खाने की याद दिलाते और वह नकारता जाता. ग्राहक एक दूसरे पर नजरें डालते, क्योंकि पन दा जैसे ईमानदार व्यक्ति से झूठ-मूठ बोलने की आशा नहीं थी.
जब बहस लम्बी खींच गयी तो पन दा की नजर उसके नीचे के होठों पर पड़ी, जिसमें बन्द का एक छोटा कतरन अब भी घटना की गवाही दे रहा था. पन दा ने ठहाके लगाते हुए बोले – बन्द का एक कतरन तो अब भी तुम्हारे मुंह पर चिपका है और कह रहे हो मैंने नहीं खाया. उसने अपना हाथ होंठों पर फेरा तो वह कतरन हाथ पर उतर आई. वह खुद अपनी भूल कर शर्मिन्दा हुआ और माहौल सभी के हंसी के एक जोर का ठहाके गॅूज गया. दरअसल चरस के नशे में वह यह भी भूल चुका था कि उसने बन्द मक्खन भी खाया.
अस्सी के दशक में हमारे स्टाफ के ग्रुप में भी अधिकांश कुंवारे ही थे और जो शादीशुदा थे भी तो वे यहां अकेले ही रहकर कुंवारेपन की जैसी जिन्दगी जी रहे थे. ग्रुप में लगभग सभी शिक्षक थे और चाय के पैसे एक दुसरे के मत्थे जड़ने की कोशिश करते. 5-6 लोगों के ग्रुप ने चाय का आर्डर दिया और साथ में बन्द मक्खन भी. आर्डर देने में कोई कोताही नही करता क्यों कि अगला जानता कि पैंसे तो मुझे देने नहीं हैं. चाय जल्दी जल्दी सुड़क कर हर शख्स सोचता कि वह पहले खिसक जाय.
आज भी यही हुआ और अन्त में किस्मत का मारा में ही रह गया. मुसीबत ये थी कि मेरी जेब में भी वास्तव में पैसे नहीं थे. पन दा कोई अपरिचित तो थे नही, सो मेरे जाने पर भी उन्होंने पैसे की नहीं की. कोई बीस साल बीतने के बाद जब पन दा को उस दिन की याद दिलाई गयी तो भी उन्होंने हंसते हुए भुगतान न होने की बात बतायी और आज उनमें से लगभग सभी लोग रिटायरमेंट की जिन्दगी जी रहे हैं लेकिन पन दा का हम सब पर वो उधार चढ़ा है.
पन दा की चाय अलावा पान की भी एक खासियत थी, विशेषरूप से जर्दायुक्त पान की. एक ग्राहक बहुत ज्यादा जर्दा खाने की शौकीन थे, जब भी वे पान लगाते थोड़ा और थोड़ा और कहकर जमकर जर्दा डलवाते. उस दिन भी जब वे बार-बार ज्यादा जर्दा की बात करने लगे तो पन दा जर्दा बढ़ाते गये और अन्त में पन दा को पता नहीं क्या सूझी कि उन्होंने वह लगाया पान अलग उठाकर रख दिया और बोले आज मैं स्पेशल पान तुम्हें खिलाता हूं. पन दा ने पान में चूना लगाकर कत्था घिंसना शुरू किया और बात करते रहे, वह ग्राहक देर होने की बात कर जल्दी देने की बात करता लेकिन पन दा घिसे चले जा रहे थे. अन्ततः ग्राहक की इच्छानुसार जर्दा डालकर विदा किया.
बाद में पता चला कि कुछ दूरी पर जाकर ही उसे पान का ऐसा नशा लगा कि पसीने से लथपथ होकर वह जमीन पर बैठ गया. जब हमने जानना चाहा कि उसमें ऐसा कौन सा तम्बाकू डाला जो रोज का आदी यह इन्सान पचा नहीं पाया तो उन्होंने यह रहस्य उजागर किया कि पान के पत्ते पर कत्था जितनी देर घिसोगे उतना ही वह नशा देगा. इस घटना के बाद उसने पन दा से इस तरह के पान की फरमाइश की अथवा नहीं यह तो पता नहीं लेकिन पन दा के इस कौशल का वह कायल जरूर हो गया. Sherwani Lodge’s Pan Da in Nainital
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भवाली में रहने वाले भुवन चन्द्र पन्त ने वर्ष 2014 तक नैनीताल के भारतीय शहीद सैनिक विद्यालय में 34 वर्षों तक सेवा दी है. आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों से उनकी कवितायें प्रसारित हो चुकी हैं
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