“क्या हुआ चचा जान? बड़े बेउम्मीद-बेसहारा से दिख रहे हो!”
(Shayar Satire by Priy Abhishek)
“यार, शेर लिख-लिख कर मर गया; कोई रिस्पांस नहीं आता. कुछ मदद करो.”
भोगीलाल कंसल्टेंसी के दर पर आज हाजी जलील खाँ उर्फ़ चचा जान खड़े थे, शोहरत की मुराद लिए.
“पहले चचा आप ये बताओ कि कौन सा वाला शायर बनना चाहते हो? बोलने वाला या लिखने वाला?”
“अमाँ ये क्या नई बात हुई? क्या अंतर पड़ेगा दोनों में?”
“देखो बोलने वाले शायर बनोगे तो पद्मश्री मिलेगा, बंगला-गाड़ी मिलेगी और राज्यसभा में सीट. हवाई जहाज़-रेल के टिकट, नाम-इज़्ज़त और ख़वातीनों की पप्पियाँ अलग से.”
(Shayar Satire by Priy Abhishek)
“और लिखने वाले शायर बने तो?”
“उसमे पद्मश्री मिलेगा.”
“और बाक़ी? गाड़ी, बंगला, राज्यसभा?…और वो पप्पियाँ?”
“ये मरणोपरांत मिलेगा. बाद-ए-मर्ग़…. बोलो?”
चचा जान कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले, “यार हमें तोss…. बोलने वाला शायर बनना है.”
“पता था. चलो कुछ सुनाओ! इरशाद !”
“क़फ़स सी हो चली है ज़ीस्त….”
“ऐ, ऐ, चचा! ये सोयासे-लहू में नहाकर चले वाली शायरी नहीं चलेगी, अगर बोलने वाला शायर बनना है तो!” फिर कुछ क्षण विचारमग्न रहने के बाद भोगी भाई ने कहा, “चलो इस कागज़ पर कुछ लिख कर दे रहा हूँ, इसे जेब में रखना जब मुशायरे में जाओ. …खोलना मत!”
(Shayar Satire by Priy Abhishek)
मुशायरे से लौट कर चचा जान चहक रहे थे.
“यार गज़ब हो गया. क्या दाद मिली! क्या वाह-वाही हुई! हर शेर पर मुकर्रर-मुकर्रर की आवाज़ें. ये कागज़ का पुर्जा तो काम कर गया. इसमें क्या मंतर लिखा था बेटा भोगी ?”
“खुद ही खोल के देख लो …”
“हैंss!!….. दो पेटी बियर, एक बिलेंडर, दो छोटी-दो बड़ी गोल्ड फ्लेक, पनीर टिक्का चार प्लेट. कुल चार हज़ार?” चचा की पलकें उनकी भवों से मिल गई.
“औऱ आपको क्या लगा, वो लड़के आपकी शायरी समझ कर वाह-वाह कर रहे थे? बोलने वाला शायर बनना है न… सुनिये! कल क्रांतिदूत को फ्रेंड रिक्वेस्ट भेज देना. और थोड़ा उसके शेरों की तारीफ़ भी करना.”
“अब ये न हो पायेगा! हम ठहरे राष्ट्रवादी, भारत माता की जै बोलने वाले. और वो…. यार ये मत करवाओ!”
“उर्दू अकादमी में तो वो ही बैठा है न! फिर?”
“चलो मान भी लें, तो वो हमारे शेर क्यूँ कर चाहने लगा?”
“उसका आसान तरीका है. जैसे आप लिखते हो- गुलाब की पँखुड़ी जैसे ओंठ. उसकी जगह लिखो- लाल गुलाब की लाल पँखुड़ी जैसे सुर्ख लाल ओंठ. लाल देखते ही वो फ़िदा हो जाएगा… अच्छा पांच सौ रुपए और दो तो रौनक को भी पटा लूँ!”
(Shayar Satire by Priy Abhishek)
“यार तुम्हारे रौनक को पटाने का मेरी शायरी से क्या लेना देना है?”
“अपने लिए नहीं कर रहा हूँ! पांच हज़ार लोग हैं रौनक की फ्रेंड-लिस्ट में. मूली खा कर डकार भी लेती है तो तीन हज़ार लाइक और बारह सौ कमेंट आते हैं. आपके शेर शेयर करवाऊँगा उससे. अच्छा सुनो! कल भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना सिधारे का पांच सौ पिचहत्तरवाँ अनशन है, और परसों सनी लियोनी का डांस है, वहाँ भी आपको शेर पढ़ने जाना है.”
“यार शायरी करवा रहे हो या मुजरा?” “आप तो मुजरा मान कर ही करो चचा. और थोड़ी शायरी भी सुधारो यार! कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है- नहीं सुना? कुछ इसी टाइप का, बोलने वाले शायरों जैसा लिखो. नहीं तो भूखे मरोगे और नाती-पोते गरियाऐंगे. चलता हूँ! रौनक से भी मिलना है.”
(Shayar Satire by Priy Abhishek)
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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1 Comments
विवेक भावसार
बहुत मजेदार … मस्त !