उनके पास बहुत सारी भाषाएँ थीं जिन्हें वे जीवन भर तराशते रहे. उनके यहाँ असंख्य ठेठ गंवई पात्र हैं तो अभिजात्य से भरपूर स्त्रियाँ भी. वे रमौल-बफौलों की कहानी को किसी अनुभवी जगरिये की सी साध के साथ सुनाते हैं तो बंबई-इलाहाबाद के क़िस्सों की भाषा में एक अति-सजग और संवेदनशील अन्वेषक-दर्शक जैसे दिखते हैं. उनके लेखन में भिखारियों से लेकर महारानियों तक के प्रेम प्रसंग हैं, पहाड़ों से ऊंचे हौसले वाली स्त्रियाँ हैं, कुलीन, कामासक्त बूढ़े हैं, गोश्त काटती छुरी की धार पर ठहर जाने को आतुर धवल हिमालयी चोटियों की लपट है और एक भीषण संघर्षशील जीवन का सतत आख्यान. Shailesh Matiyani Died on this Day 19 Years Ago
एक सिद्धहस्त लेखक के तौर पर उन्होंने कुमाऊं के पहाड़ों के मुश्किल जीवन की सारी त्रासदियों और जटिलताओं को ज़ुबान दी.
हैरत होती है कि एक के बाद एक व्यक्तिगत त्रासदियों और जीवन की क्रूरता के सम्मुख लगातार परास्त होते, लगातार ढहते हुए भी कोई इतना संतुलित और विराट कैसे बना रह सकता है.
आज पूरे उन्नीस बरस बीत गए शैलेश मटियानी जी को गए. उनके हिस्से का क़र्ज़ अभी तारा जाना बाकी है.
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हिन्दी के मूर्धन्य कथाकार-उपन्यासकार शैलेश मटियानी (Shailesh Matiyani) अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना में 14 अक्टूबर 1931 को जन्मे थे. सतत संघर्ष से भरा उनका प्रेरक जीवन भैंसियाछाना, अल्मोड़ा, इलाहाबाद और बंबई जैसे पड़ावों से गुजरता हुआ अंततः हल्द्वानी में थमा जहाँ 24 अप्रैल 2001 को उनका देहांत हुआ. शैलेश मटियानी का रचनाकर्म बहुत बड़ा है. उन्होंने तीस से अधिक उपन्यास लिखे और लगभग दो दर्ज़न कहानी संग्रह प्रकाशित किये. आंचलिक रंगों में पगी विषयवस्तु की विविधता उनकी रचनाओं में अटी पड़ी है. वे सही मायनों में पहाड़ के प्रतिनिधि रचनाकार हैं. Shailesh Matiyani Died on this Day 19 Years Ago
शैलेश मटियानी की महत्वपूर्ण रचनाएं: उपन्यास : गोपुली गफूरन, चंद औरतों का शहर, नागवल्लरी, बावन नदियों का संगम, माया-सरोवर, मुठभेड़, रामकली, हौलदार, उत्तरकांड कहानी संग्रह : चील, प्यास और पत्थर, अतीत तथा अन्य कहानियाँ, भेड़ें और गड़ेरिये, बर्फ और चट्टानें, ‘नाच, जमूरे, नाच’ विविध : लेखक और संवेदना, त्रिज्या, मुख्यधारा का सवाल, यदा-कदा
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