गंगोत्री ग्लेशियर, हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेशियरों में से एक है. इस ग्लेशियर की मात्रा 27 घन किमी. है और इसकी लंबाई और चौड़ाई लगभग क्रमश: 30 और 4 किमी. है. यह ग्लेशियर चारो तरफ से गंगोत्री समूह जैसे – शिवलिंग, थलय सागर, मेरू और भागीरथी तृतीय की बर्फीली चोटियों से घिरा हुआ है, ये बर्फीली पहाडि़यां कठिन चढ़ाई के लिए जानी जाती हैं.
विगत दिनों उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग की तपिश हिमालय में मौजूद ग्लेशियरों तक पहुंची, जिससे ग्लेशियरों की सेहत पर खतरा बढ़ता जा रहा था. साथ ही आग से निकलने वाली राख और सूक्ष्म कण ग्लेशियरों पर चिपककर सीधे तौर पर भी बर्फ पिघलने की गति को बढ़ा रहीं थी.
मगर अमर उजाला में प्रकाशित खबर के मुताबिक़ गंगोत्री ग्लेशियर में लगातार हो रहे बदलाव के बीच वैज्ञानिकों ने एक नया खुलासा किया है. ऐसे में पर्यावरण में तेज बदलाव के कारण ग्लेशियरों पर मंडरा रहे संकट के बीच एक राहत देने वाली बात सामने आई है. वाडिया इंस्टीट्यूट एवं राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान के विज्ञानियों ने अपने शोध में पाया है कि गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति में कमी आई है.
अध्ययन में पाया गया है कि गंगोत्री ग्लेशियर हर साल 12 मीटर पीछे खिसक रहा है. 1935 के रिकॉर्ड के मुताबिक, पहले गंगोत्री ग्लेशियर के पिघलने की गति 20 से 22 मीटर प्रति वर्ष थी. लेकिन वर्ष 2017-18 में यह घटकर 12 मीटर हो गई है.
गंगोत्री ग्लेशियर पर शोध कर रहे देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. डीपी डोभाल के मुताबिक रैपिड स्टैटिक एवं कायनेटिक जीपीएस सर्वे से किए गए शोध में यह खुलासा हुआ है.
आंकड़ों के मुताबिक, गंगोत्री ग्लेशियर पिछले सात दशक के भीतर 1500 मीटर यानी डेढ़ किलोमीटर पीछे खिसक गया है। इसके लिए हिमालयी क्षेत्र में कार्बन की बढ़ती मात्रा के साथ ही अन्य पर्यावरणीय कारक जिम्मेदार बताए जा रहे हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें