अल्मोड़ा से ताल्लुक रखने वाले अशोक उप्रेती ने अपनी फेसबुक वॉल पर कुछ देर पहले एक ऐसा समाचार शेयर किया है जिस से हर कुमाऊनी का मस्तक ऊंचा हुआ है.
उनके बड़े भाई डॉ. शैलेश उप्रेती इस वर्ष रसायन विज्ञान का नोबेल अवार्ड जीतने वाले प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के प्रिय छात्रों में शुमार हैं. मालूम हो रॉयल स्वीडिश अकेडमी ऑफ़ साइंसेज ने घोषणा की थी कि इस वर्ष का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार जॉन बीगुडएनफ. एम. स्टेनली विटिंगम और अकीरा योशिनो को संयुक्त रूप से लिथियम आयन बैटरी के विकास में किये गए उल्लेखनीय कार्य के लिए दिया जा रहा है.
अशोक उप्रेती ने अपनी पोस्ट में लिखा है:
जय गोलू देवता
गुरु पारस को अन्तरो, जानत हैं सब सन्त
वह लोहा कंचन करे, ये करि लये महन्त
व्याख्या:- गुरु में और पारस – पत्थर में अन्तर है, यह सब सन्त जानते हैं. पारस तो लोहे को सोना ही बनाता है, परन्तु गुरु शिष्य को अपने समान महान बना लेता है.
यह बात हमारे दाज्यू डॉ शैलेश उप्रेती और उनके गुरु (नोबेल विजेता) पर सटीक बैठती है। दुनिया का सबसे बड़ा इनाम नोबेल पुरस्कार है. इस बार 2019 का रसायन विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मेरे दाज्यू के गुरु प्रो० स्टेन व्हीटिंघम को उनके लिथियम आयन बैटरी के लिए दिया है.
यह हम सब के लिए गर्व की बात है की एक छोटे से गांव मनान, अल्मोड़ा के लड़के (कुमाऊँ का लाल) डॉ शैलेश उप्रेती को ऐसे व्यक्ति ने अपना शिष्य बनाया जिसने नोबेल पुरस्कार (दुनिया का सबसे बड़ा पुरस्कार) जीता. यह भी कहा जा सकता है कि हीरे की परख जौहरी को ही होती है. दाज्यू भी अपने गुरु के नक्शे-कदम पर चल रहे हैं और हर गुरु की भी ये ही कामना रहती है कि उसका शिष्य उससे कई गुना ज्यादा अच्छा काम करे. गुरु का नाम रोशन करे. खूब नई ऊचाइयों को छुए. और मैं आशा ही नही उम्मीद करता हूं कि दाज्यू भी गुरु की उम्मीदों पे खरा उतरें और गुरु की श्रेणी में जल्दी से शामिल हों.
इस अवसर पर प्रोफेसर स्टेनली विटिंगम के साथ डॉ. शैलेश उप्रेती को काफल ट्री परिवार की तरफ से बधाई. अशोक उप्रेती को भी बधाई और साधुवाद कि उन्होंने यह शुभ समाचार सभी उत्तराखंडवासियों तक पहुंचाया.
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