सऊदी अरब ने कनाडा के साथ सभी आर्थिक और राजनैतिक संबंध समाप्त कर लिये हैं. पिछले कई दशकों में किन्हीं भी दो देशों के बीच ऐसा कोई विवाद नहीं देखा गया है. सऊदी अरब ने कनाडा से अपने राजदूत को वापस बुला लिया है. कनाडा के राजदूत को परसोना नोन ग्राटा घोषित किया जिसका अर्थ चौबीस घंटे में देश छोड़ने का आदेश है. सऊदी अरब ने कनाडा के साथ सभी प्रकार के व्यापरिक लेन-देन और निवेश तत्काल रोके जाने के आदेश जारी किये हैं. कनाडा रह रहे अपने नागरिकों से भी सऊदी अरब ने अपने देश लौटने या अन्य किसी देश में जाने को कहा है.
सऊदी अरब और कनाडा के मध्य यह पूरा विवाद एक ट्विट से प्रारंभ हुआ. मानवाधिकार के हनन को लेकर सऊदी अरब हमेशा से विश्व के सम्मुख एक बेहद खराब उदाहरण रहा है. समर बदावी और नसीमा अल-सदा सऊदी अरब में महिला अधिकारों के लिये लम्बे समय से लड़ने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं. दोनों कार्यकर्ताओं को 2012 से जेल में डाला गया है. दोनों कार्यकर्ताओं को ऑनलाईन माध्यम से इस्लाम के अपमान का अरोपी बताया गया है.
कनाडा की विदेश मंत्री क्रिस्टिना द्वारा ने समर बदावी को तत्काल छोड़ने संबंधी एक ट्विट किया गया. अपने इस ट्विट में उन्होंने लिखा कि कनाडा सरकार सऊदी अरब के इस परिवार के साथ है. सऊदी अरब इसे अपने आंतरिक मामलों में दखल मानता है और ट्विटर पर ही जवाब देता है कि अपने इतिहास के मुताबिक वे अन्य किसी देश के आंतरिक मामलों में किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं करते हैं. इसके बाद सऊदी अरब ने कनाडा सरकार पर कदम उठाना प्रारंभ किया गया.
सऊदी अरब द्वारा कनाडा रह रहे अपने देश के छात्रों, मरीजों को वापस लौटने या अन्य देश में जाने के लिये कहा गया है. कनाडा व सऊदी अरब के मध्य 2016 में 400 बिलियन का व्यापार व्यवसाय था. व्यापार अनुपात के अनुसार सऊदी अरब कनाडा का 17वां सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है. इस पूरे मामले में कनाडा को न तो अमेरिका का साथ मिला है ना ही अब तक किसी यूरोपीय देश का साथ मिला है. इस सबके बावजूद कनाडा अपने वक्तव्य पर कायम है.
इसके विपरीत मिश्र, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन और फिलिस्तीन ने सऊदी अरब के फैसले का समर्थन किया है. अरब देशों के इस समर्थन के पश्चात कनाडा इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ चुका है. कनाडा के कहने के बावजूद अमेरिका का इस मुद्दे पर उसका समर्थन न करना पश्चिमी देशों की एकता पर दरार के रुप में देखा जा रहा है. कनाडा में आने वाले समय में चुनाव हैं जिसके चलते कनाडा सरकार से किसी भी प्रकार की मांफी की उम्मीद नहीं की जा रही.
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