सिलगड़ी का पाला चाला, यो गाँव की भूमिया.
(Saton Festival Uttarakhand)
फलुँ फूला लाला त्योलिया, यो गावें कि भूमिया.
इन दिनों कुमाऊं का एक बड़ा हिस्सा झोड़ा-चांचरी के लोक संगीत में डूबा हुआ है. हिम शिखरों पर रहने वाले महेश्वर भिना आज कुमाऊं की धरती पर आये हैं. कुमाऊं में लोकपर्व चल रहा है कहीं इसे सातूं-आठूं कहा जाता है तो कहीं सातों-आठों.
सातों के दिन पहाड़ की महिलाएं पंचमी के दिन भिगाए बिरूड़े नौले या धारे के पास ले जाकर धोये जाते हैं. नौले और धारे महिलाओं के मंगल गीतों से सरोबार हो उठते हैं. महिलाएं और युवतियां नौले के पास इकट्ठा होकर एक मानव आकृति बनाती हैं. यह मानव आकृति पांच प्रकार की घास से बनती है.
सौं, धान, मक्का, धधूरी और पाती से बनी यह मानव आकृति रिंगाल की एक डलिया में रखी जाती है जिसे मिट्टी का आधार दिया जाता है. सातों के दिन बनने वाली इस आकृति का श्रृंगार किया जाता है इसे गमरा कहा जाता है. मां पार्वती का रूप है गमरा गमरा पहाड़ियों की दीदी गौरा दीदी.
(Saton Festival Uttarakhand)
अब महिलाएं और युवतियां अपने सिर पर गमरा रखकर लौटती हैं. गांव के किसी एक घर के आंगन में महिलाएं और युवतियां इकट्ठा होती हैं. महिलाएं गमरा के समीप पंडित जी महिलाओं द्वारा हाथ में बांधे जाने वाले डोर का अधिष्ठान करते हैं. डोर को पूजा के बाद विवाहित महिलायें अपनी बांह पर बांधती हैं.
अब आंगन में खेल लगने का समय है. झोड़े, झुमटा, चांचरी रंग में अब सभी डूब जाते हैं. उत्सव जा यह माहौल रात भर चलता है. महिलाएं और पुरुष गोल घेरे में एक दूसरे का हाथ पकड़कर नाचते-गाते हुए इस त्यौहार का आनंद उठाते हैं. सातों के दिन महिलाएं उपवास रखती हैं.
(Saton Festival Uttarakhand)
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