“हर बार मुख्य अतिथि बनने वाले मुख्य अतिथि महोदय, अध्यक्षता के लिए मरे जा रहे अध्यक्ष जी, उपस्थित सखाओं और सखियों! आज तीस जनवरी है. आज का दिन हम नाथूराम स्मरण दिवस के रूप में मनाते हैं. बहुत वर्षों पहले आज के दिन महात्मा गाँधी की पुण्यतिथि मनाई जाती थी, जिसे शहीद दिवस कहते थे. शहीद दिवस से नाथूराम स्मरण दिवस तक की ये यात्रा, भारतीय राजनीति के अपनी धुरी पर लौटने की यात्रा है.
(Satire Nathuram Jayanti)
साथियों, पहले नाथूराम का पूरा नाम नाथूराम गोडसे था. फिर उनका नाम हुतात्मा गोडसे हुआ. परन्तु वर्तमान परिवेश को देखते हुए उन्हें हुतात्मा नहीं, भूतात्मा कहना अधिक समीचीन होगा. उनका भूत बौद्धिक जनों पर हावी है. एक तरह से राष्ट्र की चेतना में घुस बैठा है. जिसे गिल्बर्ट राइल ने घोस्ट इन द मशीन कहा था, भारत के लिए भूतात्मा गोडसे वही हैं.
किसी हत्यारे को इतनी शिद्दत से याद करने का उदाहरण विश्व इतिहास में दूसरा नहीं मिलता. हत्यारा चाहे लिंकन का हो, या कैनेडी का, कोई भी हत्यारों की दुनिया में वह स्थान न बना पाया, जो भूतात्मा गोडसे ने बनाया है. किसी अन्य हत्यारे में ‘वो’ बात नहीं, जो उनमें है. उनमें एक ‘उम्फ़ फैक्टर’ है. हम कह सकते हैं कि महान व्यक्तियों के हत्यारों में वे अग्रगण्य हैं. वे क़ातिलों की दुनिया के लियोनार्डो द विंची हैं.
यूँ ही नहीं बनते गोडसे, कैसे बनते हैं गोडसे, कौन था गोडसे- जैसे अनेक लेख आपको आज के दिन पढ़ने को मिल जाएँगे, जिनसे भूतात्मा गोडसे का सम्पूर्ण जीवनवृत्त जाना जा सकता है. आज विभिन्न मंचों से वक्ता भूतात्मा गोडसे को उसी प्रकार ललकारते हैं, जिस प्रकार बाबा कमाल पाशा बंगाली किसी भूत को.
प्रबुद्धजन अपने इन लेखों, भाषणों के माध्यम से राष्ट्र को भूतात्मा गोडसे के उत्पादन की विधि बताते हैं, उनके निर्माण की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं. उनके निर्माण की विधि पढ़ कर एक बात आप समझ पाएँगे कि उनका यूँ जगप्रसिद्ध होना कोई तुक्का नहीं है. नाथूराम गोडसे की रेसिपी, एक परफ़ेक्ट रेसिपी है.
(Satire Nathuram Jayanti)
वे महासभाई थे. हो सकता था कि किसी कांग्रेसी का दिमाग फिर जाता, और वह ये कुकृत्य कर डालता. परन्तु ऐसा नहीं हुआ. वे हिन्दू थे. हो सकता था कोई मुसलमान या सिख उन्हें मार देता. परन्तु ऐसा भी नहीं हुआ. और सबसे अंत में, वे (आहा!) ब्राह्मण थे.
यूँ समझिये कि हत्यारी दाल ली, फिर विचारों की आग पर महासभाई घी गर्म किया, फिर उसमें शाही हिंदू जीरा डाला, और ऊपर से ख़ुशबूदार ब्राह्मण हींग, और लगा दिया तड़का. वाह! तड़के का ऐसा स्वाद जो हमेशा रहे याद. तीस जनवरी को विभिन्न सभाओ, गोष्ठियों में इसी प्रकार नाथूराम पकाया जाता है, और सब मिल कर खाते हैं.
हालाँकि प्रारम्भ में स्थिति ऐसी नहीं थी. वे काफ़ी उपेक्षित थे. भूतात्मा गोडसे का दुर्भाग्य था कि जिस प्रकार मुसलमानों ने जिन्ना की प्रतिभा को पहचाना और सारी सुरक्षित सीटें उनको जितवाईं, उस प्रकार का मान हिंदुओं ने उन्हें नहीं दिया. उनकी आत्मा इससे बहुत दुखी और उपेक्षित महसूस करती थी. भूतात्मा की आत्मा ने संकल्प किया कि चाहे मुझे कितना भी परिश्रम क्यों न करना पड़े, मैं अपनी जगह बना कर रहूँगी. जी हाँ, लोगों के शरीर परिश्रम करते हैं, उनकी आत्मा ने परिश्रम किया. और उस परिश्रम का परिणाम हमारे सामने है कि आज हम नाथूराम स्मरण दिवस मनाने यहाँ एकत्र हुए हैं.
तो मैं आपको बता रहा था कि जिन्ना की प्रतिभा को लोगों ने पहचाना. जिन्ना ने कहा कि न तो अब हम लोग इस स्टेडियम में बैठेंगे, और न ही खेलेंगे, और माँग की कि हमें अपना अलग स्टेडियम चाहिये. हम हिन्दू-मुस्लिम पिच पर काफ़ी मैच खेल चुके हैं. तो उन्हें उनका अलग स्टेडियम मिला, जहाँ वे शिया-सुन्नी की पिच पर खेलते हैं, और अहमदी-सुन्नी पिच पर नेट प्रेक्टिस करते हैं. परन्तु भारत में अभी भी हिन्दू-मुस्लिम पिच पर ही मैच खेले जाते हैं. और इस पिच पर भूतात्मा नाथूराम गोडसे ने अपने परिश्रम से वह स्थान बनाया है, जो क्रिकेट में मुरलीधरन की ‘दूसरा’ को प्राप्त है.
जब कोई टीम हारने लगती है और विपक्षी खिलाड़ी को आउट नहीं कर पा रही होती, तब उनका कप्तान अपने बॉलर से कहता है- इसको एक नाथूराम डाल! साथियों, यदि सही लाइन-लेंथ से डाली जाय, तो नाथूराम को खेलना बहुत कठिन है. अच्छे-अच्छे क्लीन बोल्ड हो जाते हैं. दोनों टीमों के कुशल गेंदबाज़, प्रतिपक्षी टीम में दहशत पैदा करने के लिए, कभी राउण्ड द विकेट, तो कभी ओवर द विकेट, नाथूराम डालते रहते हैं.
मुझसे पूर्व भाषण दे रहे अनेक वक्ताओं ने भूतात्मा नाथूराम गोडसे की तुलना रावण से की. इससे आप भूतात्मा की आत्मा द्वारा किये गए परिश्रम को समझ सकते हैं. जो स्थान पूर्व में अंग्रेजी राज को प्राप्त था, उसे अपनी मेहनत से भूतात्मा ने हथिया लिया. जहाँ पहले विद्वान, बापू के मुक़ाबले अंग्रेजी राज को रखते थे, वहाँ अब भूतात्मा गोडसे को धरते हैं. ये भूतात्मा की आत्मा की बड़ी उपलब्धि है. यदि भूतात्मा की आत्मा इसी प्रकार परिश्रम करती रही, और विद्वान उन पर इसी प्रकार लिखते रहे, तो मुझे विश्वास है कि भविष्य में उनका नाम शुम्भ-निशुम्भ, चंड-मुंड, के साथ लिया जाएगा.
(Satire Nathuram Jayanti)
हो सकता है हज़ारों साल में ऐसी कहानियाँ प्रचलित हो जाएँ कि कलयुग में नाथूराम नाम का एक राक्षस था, जिसका राज सम्पूर्ण आर्यावर्त पर हो गया था. उसके पास गोरे यवनों की विशाल सेना थी. फिर गुर्जर प्रदेश में एक योद्धा का जन्म हुआ, जिससे उसका युद्ध सौ वर्षों तक चला. आदि-आदि.
या ये भी हो सकता है कि कहानी कुछ यूँ हो कि कलयुग में नाथूराम नाम के एक बहुत ही प्रतापी, न्यायप्रिय, और सत्यनिष्ठ राजा थे. भौतिक शरीर पर विजय प्राप्त कर लेने के कारण उन्हें भूतात्मा भी कहा जाता था. आदि-आदि.
हाँ, एक सम्भावना ये भी है कि कहानी कुछ ऐसी हो कि प्राचीन काल में मोहनदास नामक एक बौद्ध भिक्षु थे. ब्राह्मण धर्म की स्थापना के लिए भूतात्मा नाथूराम ने उनकी हत्या कर दी थी. आदि-आदि.
(Satire Nathuram Jayanti)
तो आज के दिन आप लोग सभी विद्वानों के भाषण सुनें, फिर सोशल मीडिया पर लेखनाकुल लोगों के भूतात्मा गोडसे पर लिखे गए विचार पढ़ कर उनका स्मरण करें. मैं अपनी वाणी को विराम देता हूँ, और घर जाकर ‘नाइन ऑवर्स टू रामा’ देखूँगा. यू-ट्यूब पर निःशुल्क उपलब्ध है. आप भी देखें. यही भूतात्मा को सच्ची श्रद्धांजलि होगी. धन्यवाद.”
भाषण देकर मैं मंच से नीचे उतर आया. नीचे नगर के प्रख्यात और स्थायी गांधीवादी, सेठ भीखामल जी ‘सराफ़े वाले’ खड़े थे. “कैसा रहा मेरा भाषण?” मैंने पूछा.
“शानदार. आप बहुत बढ़िया नाथूराम पकाते हैं.” उन्होंने कहा.
(Satire Nathuram Jayanti)
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
इसे भी पढ़ें: इंद्रसभा के आमंत्रण षड्यंत्र होते हैं
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
Support Kafal Tree
.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें