मित्रो हो सकता है आपको याद न हो, कलियुग के 2016 सन में आर्यावर्त के भारतवर्ष-उत्तराखंड में अवस्थित कांग्रेस पार्टी की सरकार पुराणों में वर्णित संजीवनी बूटी खोज निकालने को एक योजना लाई थी. जिसकी कटिंग संलग्न है. हालाँकि, इसे तत्कालीन राज्य सरकार की अनाधिकार चेष्टा भी समझा गया क्योंकि रामायण संबंधी मुद्दों का सर्वाधिकार आर्ग्युएबली भाजपा की केन्द्र सरकार के पास सुरक्षित माना जा रहा था. साथ ही जैसा कटिंग से स्पष्ट है आयुर्वेदिक दवाओं की निर्माता पतनजली भी द्रोण पर्वत पर अपना आर एंड डी का तंबू गाड़े हुए थी.
(Satire by Umesh Tewari Vishwas 2022)
जनता होने के नाते आपकी विस्मृति स्वाभाविक है. क्योंकि जब आप ये भूल जाते हैं कि आपने पिछले चुनावों में किन मुद्दों पर वोट डाला, यहां तो कहानी 5 वर्ष से भी पुरानी है और इस दौरान कई योजनाएँ आयीं, सरकारें, मुख्यमंत्री आदि आये और गये. हाँ, आप वही रहे. अब तो आप जनता होना भी भूल चुके हैं.
तथापि मेरे फैलो भारतीय आप कैसे भूल सकते हैं कि द्वापर युग में संजीवनी बूटी एडमिनिस्टर करके (मेरे विदेशी फॉलोवर्स भी नोट करें) अपने जय श्री राम वाले भगवान राम के भाई लक्ष्मण जी की जान बचाने की लीला हुई थी. लीला इस मायने कि, जो भगवान राम चाहते तो अपने भाई को फ़ौरन जिला लेते किंतु विपक्ष, यानी जनता जिसमें वह वाशर मैन भी शामिल है जिसने बाद में सीता माता या राजा राम पर अंगुली उठाई थी. स्वाभाविक है युद्ध के अन्य घायलों का प्रश्न उठता, चाहे वो बंदर ही क्यों न रहे हों. तदनुसार हनुमान जी स्वयं इनिशिएटिव लेकर फ़ौरन संजीवनी लेने आकाश मार्ग से प्रस्थान किये, कतिपय कारणों से संजीवनी बूटी पहचान न सके पर बूटी वाला पर्वत उखाड़ लाने में सफल रहे. इसका विवरण तुलसीदास कृत रामायण में पृष्ठ 356 पर देख सकते हैं. कहने का मतलब है कि संजीवनी बूटी को आयडेंटिफाय करना इतना आसान न समझा जाये; देखने, सूंघने, उखाड़ने की शक्ति से परिपूर्ण खोजी दल चैये. साथ-साथ बजट भी बड़ा होना चैये.
वस्तुतः, संजीवनी बूटी अब नहीं तो कब खोजी जाएगी; जबकि उत्तराखंड में बीजेपी की रिपीट सरकार है और सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था मूर्छित पड़ी है. अब संजीवनी बूटी को जनहित में युद्ध स्तर पर खोजा ही जाना चाहिए. संजीवनी का संधान सरकार के लिए, अंग्रेज़ी में कहा जाय तो ‘फैदर इन द कैप’ होगा, जो हालिया प्रचलित उत्तराखंडी टोपी में मोरपंख सा जंचेगा.
उम्मीद है कि 6 वर्ष पूर्व प्रस्तावित संजीवनी बूटी की खोज की मुहिम शायद अब तक कुछ आगे बढ़ी होगी. इसके दफ़्तर आदि तो खुल ही गए होंगे, डेपुटेशन की अनौपचारिक व्यवस्था, वाहनों की ख़रीद आदि हुई होगी ? कुछ कंसल्टेंट वगैरा की एप्लिकेशन आ चुकी होंगी? कहीं ऐसा तो नहीं, संजीवनी बूटी प्रोजेक्ट गुपचुप तरीक़े से पतंजलि आयुर्वेद को आउट-सोर्स हो गया? अगर ये हुआ है तो कभी भी कोरोनिल की तरह बाबाजी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री के हाथों शानदार पैकिंग में मृत संजीवनी लॉन्च करते नज़र आ सकते हैं. सूबे वालों की तब कार्यक्रम में मात्र गरिमामई उपस्थिति रह पाएगी और उन्हें फ़्री सेम्पल से संतोष करना पड़ेगा. हाँ, 100% शुद्ध संजीवनी बूटी रुचि सोया में मिक्स करके पतांजलि मॉल में बिकेगी. अमीर-ग़रीब सब व्हिं से खरीदेंगे.
चूँकि समाचार पत्रों या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इन 6 सालों में बूटी पर कोई प्रोग्रेस रिपोर्ट प्रकाशित नहीं की तो मेरे अंदर का पत्रकार जाग गया है. जगा ही नहीं, चीख़-चीख़ कर स्टेटस रिपोर्ट मांग रहा है. इस चक्कर में वह अग्निपथ वाले सैनिकों का सेवाकाल 04 के स्थान पर 40 वर्ष लिखा गया है.
(Satire by Umesh Tewari Vishwas 2022)
निकट भविष्य में जब भी संजीवनी बूटी खोज का काम शुरू हो या रफ़्तार पकड़े, उसकी सफलता हेतु मैं निम्न सुझाव मुख्यमंत्री जी को देना चाहता हूँ. भुलक्कड़ जनता अपनी सलाह, यदि कोई हो, तो इस ज्ञापन में जोड़ दे-
महोदय पिछले वर्षों में हुए भीषण भू-स्खलनों के चलते संजीवनी बूटी शायद पहाड़ पर न मिले अतः प्रयास रहे कि इसका खोजी दल मैदानों तक अवश्य पहुंचे.
महोदय चूंकि बूटी अंतिम बार सुषैण वैद्य आदि द्वारा रामायण काल में देखी गई, इधर किसीने उसे देखा नहीं है, इसलिए (बाद की किरकिरी से बचने को) मामूली लक्षण/संभावना दर्शाने वाली बूटियों का भी संग्रहण करवाया जावे.
महोदय मीडिया को इन बूटियों की केवल जड़ें दिखाएँ, भूल से भी फूल-पत्ती-तने नहीं दिखाए जाएँ.. (आप इनको जानते ही हैं).
महोदय बूटी परीक्षण के लिये एक सर्वदलीय पैनल (गिनी पिग के रूप में) बनाया जावे.
महोदय बेहोशी वाला परीक्षण ( रामायण में लक्ष्मण शक्ति का सन्दर्भ लें) करने को एन डी ए के सदस्यों से चयन हो और मृतक/मरणासन्न पर परीक्षण हेतु नमूने कांग्रेस से ही चुने जाएं.
महोदय प्रोजेक्ट में विभागीय और प्रभारी मंत्री के रिश्तेदारों आदि को केवल ढुलाई का काम दिया जाये.
महोदय फाइनेन्स में मेरा हाथ तंग है पर मोटा-मोटी जितने करोड़ का बजट हो योजना के उतने टुकड़े कर लें जैसे 150 करोड़ के 150 हिस्से कर लें (आल वेदर रोड की तर्ज़ पर) और हर सैंपल पर 1 करोड़ का अनुमानित बजट रखें… सिंपल.
महोदय लास्ट बट नॉट लीस्ट, जैसी कि संभावना है ब्यूटी के सैंपल भारी मात्रा में संग्रहित होंगे, इनके भंडारण के लिए भारत के यशस्वी उद्योगपति गौतम अडानी द्वारा स्टेट ऑफ द आर्ट टेक्नोलॉजी से निर्मित गोदामों का ही उपयोग किया जाये. इनका केन्द्र में बड़ा पव्वा है.. ये बाबा रामदेव की काट भी है. शेष आप समत्ते ही हैं
(Satire by Umesh Tewari Vishwas 2022)
लेखक की यह कहानी भी पढ़ें: टीवी है ज़रूरी: उमेश तिवारी ‘विश्वास’ का व्यंग्य
हल्द्वानी में रहने वाले उमेश तिवारी ‘विश्वास‘ स्वतन्त्र पत्रकार एवं लेखक हैं. नैनीताल की रंगमंच परम्परा का अभिन्न हिस्सा रहे उमेश तिवारी ‘विश्वास’ की महत्वपूर्ण पुस्तक ‘थियेटर इन नैनीताल’ हाल ही में प्रकाशित हुई है.
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