“अरी ऐरी आली!”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“हाँ सखी!”
“आली, पूछ न क्या गजब हुआ उस दिन!”
“क्या हुआ सखी, बता तो ज़रा?”
“अरी इंद्रसभा का आमंत्रण था…”
“हाय दैया, इंद्रसभा का?”
“हाँ आली, इंद्रसभा का. इंद्रसभा गई थी मैं.”
“जरा विस्तार से बता न सखी री!”
“आली, तू तो जानती है इंद्रसभा का बुलावा था, कोई ग्रामसभा का नहीं. शिल्प की कंचुकी गाँठी, बाजुओं पर अलंकार सजाए, कंठ में उपमाओं को धारण किया और द्रुतविलम्बित चाल में चलती जा पहुँची इंद्रसभा.”
“हाय फिर तो इंद्रसभा मोहित हो गई होगी तुझ पर. और इंद्र हो गया होगा लट्टू!”
“आली कल्पना तो कुछ ऐसी ही थी…”
“अरी कह न, चुप क्यूँ हो गई? जरा इंद्रसभा का वर्णन तो कर!”
“मत पूछ आली. अद्भुत इंद्रसभा थी. ज्ञान की पीठ पर साक्षात पीठाधीश्वर इंद्र विराजमान थे. उनके एक तरफ युवा कवि और दूसरी तरफ युवा शायर चँवर डुलाते थे. मध्य में नर-मादा, दोनों प्रकार की अप्सराएँ नृत्य करती थीं. सभा में व्यंग्यकार, कहानीकार, निबन्धकार, गीतकार जैसे अनेक आकार उपस्थित थे.”
“हाय कौन-कौन थे सखी?”
“आली उनके नाम पर्याप्त समान थे, नामों में दुहराव भी था.”
“अर्थात सखी?”
“आली उनमें वरिष्ठ थे, महान थे, ख्यात थे, विख्यात थे, परिचित-सुपरिचित थे, प्रसिद्ध-जगप्रसिद्ध थे, प्रतिष्ठित थे, जानेमाने थे, कोई से स्तम्भ थे, कहीं के खम्भ थे, विधा के पर्याय थे, और भी अनेक नाम थे उनके.”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“चल झूठी! ये संज्ञायें कहाँ, ये तो विशेषण हैं.”
“सत्य आली. बड़े साहित्यकार एक-दूसरे को विशेषणों से पुकारते हैं. वे भी इन्हीं सम्बोधनों से एक -दूसरे को पुकारते थे. और उनमें से एक-एक उठ कर अपनी रचना प्रस्तुत करता था.”
“कैसी थी रचनाएँ सखी?”
“आली, उनकी समस्त रचनाएँ कालजयी थीं.”
“क्यों?”
“क्योंकि प्रत्येक रचना के बाद वे एक-दूसरे थे कहते थे कि ये रचनाएँ कालजयी हैं.”
“और वहाँ इंद्रसभा में क्या-क्या हुआ?”
“मत पूछ आली. अद्भुत आनंद थे वहाँ. सब बादलों पर चलते थे. वहाँ किसी के पैरों तले ज़मीन न थी. इंद्र की तरफ़ से सभी की सेवा में सुरा प्रस्तुत की जा रही थी. वे सभी सभासद एक-दूसरे की रचनाएँ सुनकर वाह-वाह करते थे. उनकी प्रशंसा करते थे. वे कहते- आपकी रचना में वह जो उपमा दी गई है न, वह अद्भुत है. फिर प्रत्युत्तर में दूसरा कहता- और आपकी रचना में जो अलंकारों का प्रयोग हुआ है, वह सर्वोत्तम है.”
“और तेरी रचनाएँ? तेरी रचनाओं पर तो इंद्रसभा मोहित हो गई होगी.”
“आली, कल्पना तो कुछ ऐसी ही थी…”
“अरी कह न! हर बार कल्पना तो कुछ ऐसी ही थी कह कर चुप हो जाती है.”
“………………!”
“बोल न सखी, तेरी रचनाएँ?”
“आली क्या कहूँ, यूँ लगा जैसे किसी ने श्रृंगार के गंधमादन से, दुत्कार के पंक में पटक दिया हो.”
“क्यों कर भला? गंधमादन से दुर्गंधमादन तक की अपनी यात्रा को विस्तार से कह तो मुझे!”
“आली बुलावा मिलते ही मैं तो उत्साहित हो गई. रचना मंजूषा खोल कर अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना चुनी. जाँचा-परखा. उसे और सुगठित किया. उसे पुचकारा. उसका चुम्बन लिया. इंद्रसभा में पूरे उत्साह से अपनी रचना प्रस्तुत की.”
“फिर सखी?”
“आली……….”
“अरी तू रो रही है, तेरी आँखों में अश्रु?”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“आली, उनमें से कुछ ने आपत्ति ली कि मुझे इंद्रसभा में किसने आमंत्रित किया. उन्होंने कहा- अभी आप अपरिपक्व हैं. वे, चँवर डुलाते युवाओं की ओर संकेत करके, कहने लगे- आप इनकी तरह हम लोगों के सम्पर्क में रहें. नृत्य करती नर-मादा अप्सराओं को दिखा कर कहा- इनकी तरह अभ्यास करें. और सोमरस प्रस्तुत करते सेवकों से चषक लेकर बोले- इनकी तरह सेवा करें.”
“सखी, कार्य लेखन का और अभ्यास नृत्य का?”
“हाँ आली. वे बोले- अच्छे लेखन के लिए नृत्य का अभ्यास आवश्यक है. फिर वे कहने लगे- आपकी रचना में वर्णन बहुत है. आप वर्णन में खो जाती हैं. अभी आपको बहुत परिश्रम की आवश्यकता है. अभी आप जा सकती हैं.”
“हाय सखी, यह तो बहुत बुरा हुआ. इंद्र कुछ न बोला?”
“अरी इंद्र तो मुझे मन ही मन पसंद कर रहा था, पर सभासदों के आगे वह भी विवश था.”
“तो वह मौन रह गया?”
“हाँ आली. द्रुतविलम्बित चाल से गई थी, विक्रीड़ित से लौटी.
“आगे क्या हुआ सखी?”
“आली, इससे आगे की अब कथा मुझसे सुन. सुन के तेरी नज़र डबडबा जाएगी. आलोचना से विदग्ध होकर मैंने इंद्रप्रस्थ में रहने वाली अपनी सहेली शँखपुष्पी को फ़ोन किया. और उसे पूरा वृत्तांत कह सुनाया.”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“फिर, शँखपुष्पी क्या बोली?”
“उस पुष्पी ने पूरा घटनाक्रम सुना और कहा तुझे वहाँ जाने की आवश्यकता ही क्या थी मूर्खा? इंद्रसभा के आमंत्रण, षड्यंत्र होते हैं. इंद्रसभा के इंद्रजाल से दूर रहना चाहिये. कहा कि इंद्रसभा ऐसी मरीचिका है जिसके आकर्षण में अनेक युवा व्यर्थ गए.”
“ऐसा कहा शँखपुष्पी ने?”
“हाँ, उसने एक वृत्तांत भी सुनाया कि किस तरह वह स्वयं एक इंद्रसभा में गई थी और वहाँ से लौट कर उसके गुरुजी ने उसे बहुत लताड़ा था. गुरुजी ने कहा- लेखक बनने के लिए तू इंद्रसभा में चली गई? अधम निलज्ज लाज नहिं तोही? निकृष्ट, नीच, पोच, तेरी…”
“हे प्रभु, गुरुजी ने यह भी कह दिया?”
“हाँ आली. मैंने कहा- मैं सब समझती हूँ तू मुझसे क्या कहना चाहती है. फिर शँखपुष्पी ने कहा- तू बहुत ही अच्छा लेखन करती है प्रिया, तेरा स्तर इन सबसे ऊपर है. मैंने कहा- कुछ ऐसा ही मुझे भी अपने बारे में लगता है, पर तू भी कुछ कम अच्छा नहीं लिखती पुष्पी. तेरा लेखन भी अद्भुत है. मैं तेरे लेखन से बहुत प्रभावित हूँ. पुष्पी ने कहा- मैं भी तेरे लेखन से बहुत प्रभावित हूँ. हम दोनों जैसा कोई नहीं है. फिर उसने पूछा- तूने कौन सी रचना सुनाई थी अपनी?
“हाँ सखी, मैं भी यही पूछना चाहती थी कि कौन सी रचना सुनाई तूने?”
“अरे वही रचना जो कालजयी है. जो न भूतो, न भविष्यति है. जिसमें पंत-प्रसाद-महादेवी के एक साथ दर्शन होते हैं, वही.”
“अच्छा, फिर शँखपुष्पी क्या बोली उसे सुनकर?”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“पुष्पी ने कहा- तेरी इस रचना में वर्णन बहुत है. तू वर्णन में खो जाती हैं. अभी तुझे बहुत परिश्रम की आवश्यकता है.”
“क्या ऐसा कहा उसने?”
“हाँ आली. मैंने भी कहा- तो तू भी तो उपमाओं और शिल्प में उलझ जाती है. तू कौन सा बहुत अच्छा लिखती है.”
“तूने ऐसा कह दिया सखी?”
“और नहीं तो क्या आली. पुष्पी बोली- मैं कम से कम तुझसे तो अच्छा ही लिखती हूँ. मैंने कहा- बड़ा अच्छा लिखती है, क्या मुझे पता नहीं है कि तू किस-किस की नकल करती है. पुष्पी बोली- नकल करती होगी तू! मेरी तो सब मौलिक हैं, मौलिक. मैंने कहा- कुलक्षिणी, चोट्टी, तू मुझे बतायेगी कि मैं कैसा लिखती हूँ. बड़ी आई मौलिकता की माता. पुष्पी बोली- कलमुँही, तू लिखती ही क्या है, सब बकवास. तुझे निकाल कर सही किया इंद्रसभा वालों ने, मैं होती तो घुसने भी न देती. मैंने कहा- अरी तुझे बुलायेगा ही कौन? तू कहाँ-कहाँ से उठाती है, सब बताऊँगी, तेरा कृष्णमुख करूँगी. इसके आगे मैं कुछ कहती, उसने फोन काट दिया.
(Satire by Priy Abhishek 2021)
“ओह सखी. यह शँखपुष्पी तो बड़ी दुष्ट निकली.”
“हाँ आली. पर आली, अब मेरी रचनाएँ कौन सुनेगा? कौन मेरी प्रशंसा करेगा? कौन मेरी रचनाओं को कालजयी कहेगा? मैं बहुत एकाकी हो गई हूँ आली.”
“अरी तू चिंता क्यों करती है, मैं हूँ न! मैं करूँगी तेरी प्रशंसा.”
“आली तू मेरी सच्ची मित्र है.”
“सखी, मैं अभी अपनी चार नवीनतम रचनाएँ तुझे भेजती हूँ. पहले तू उन्हें पढ़ कर बता वे कैसी हैं. फिर तू अपनी भेजना.”
“आली, भेज!”
(Satire by Priy Abhishek 2021)
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.
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