भारत में पितृत्व के अधिकार के लिए पहली ऐतिहासिक लड़ाई लड़ने और जीतने वाले रोहित शेखर का आज दिल्ली में अपने निवास स्थान में निधन हो गया. उत्तराखण्ड के कद्दावर नेता नारायण दत्त तिवारी के बेटे रोहित शेखर खुद को पहला ऐसा व्यक्ति मानते थे जिन्होंने खुद को ‘नाजायज’ साबित करने के लिए अदालती लड़ाई लड़ी.
सात साल की लम्बी क़ानूनी लड़ाई के बाद अंततः रोहित शेखर ने भारत के कद्दावार नेता नारायण दत्त तिवारी के खिलाफ अदालती लड़ाई जीती. रोहित शेखर के केस के दौरान अदालत में कई दफा नाजायज शब्द का इस्तेमाल भी किया गया, ऐसा खुद रोहित ने मीडिया संस्थानों को दिए गए इंटरव्यू में बताया था.
रोहित शेखर के पितृत्व के मुक़दमे ने भारत के दकियानूसी समाज में सनसनी पैदा कर दी थी. एक ऐसे समाज, जहाँ विवाहेत्तर सम्बन्ध से पैदा हुए बच्चे को समाज अस्वीकार ही नहीं करता बल्कि मानसिक तौर पर प्रताड़ित भी करता है, वहां रोहित की लड़ाई अनूठी लड़ाई थी. इस लड़ाई ने भारतीय समाज में एक नया अध्याय शुरू किया.
शेखर को नारायण दत्त तिवारी के अपने जैविक पिता होने के बारे में तब पता चला जब वे 15 साल के थे. उनके जन्म प्रमाण पत्र पर पिता के जगह पर उनकी माता के पति बीपी शर्मा का नाम लिखा गया था. भारत का पितृसत्तात्मक समाज तो रोहित या उनकी माँ को क्या स्वीकार करता उनके जैविक पिता तिवारी भी उन्हें सार्वजनिक तौर पर स्वीकार करने के लिए तैयार न थे.
रोहित ने व्यक्तिगत तौर पर नारायण दत्त तिवारी के ऊपर खुद को पुत्र के रूप में स्वीकार करने का दबाव बनाया. तिवारी ऐसा करके अपने राजनैतिक कैरियर को खतरे में नहीं डालना चाहते थे. तब रोहित ने एक ऐतिहासिक अदालती लड़ाई लड़ने का फैसला किया.
यह लड़ाई बिलकुल भी आसान न थी. इस सम्बन्ध में देश में ब्रिटिश भारत के ज़माने, 1872 से, चला आ रहा कानून सबसे बड़ी बाधा था. इस कानून के अनुसार किसी विवाहिता का बच्चा उसके पति का ही माना जाता है बशर्ते यह भी साबित कर दिया जाये कि गर्भधारण के समय दोनों एक साथ एक जगह पर नहीं रह रहे थे.
रोहित की यह लड़ाई लम्बी होने के साथ ही बहुत उथल-पुथल भरी भी रही. आखिर कई नाटकीय घटनाक्रमों के बाद रोहित शेखर को अदालत से न्याय मिला और ‘नाजायज’ बच्चों के लिए एक ऐतिहासिक मिसाल कायम हो गयी. गौरतलब है कि रोहित ने इस कानूनी लड़ाई में किसी भी तरह के मुआवजे या संपत्ति में अधिकार की मांग नहीं की थी. वे सिर्फ अपने पितृत्व के अधिकार के लिए लड़ रहे थे, जो अंततः उन्हें मिला भी.
देश में पितृत्व की ऐतिहासिक लड़ाई लड़ने वाले रोहित पहले शख्स बने. वे भविष्य में नाजायज, रखैल, व्यभिचारी जैसे शब्दों के खिलाफ अदालती लड़ाई लड़ने का इरादा रखते थे.
इस लम्बी अदालती लड़ाई और इससे जुड़े भावनात्मक मानसिक दबावों ने रोहित को शारीरिक तौर पर काफी कमजोर कर दिया था. अदालती लड़ाई लड़ने के दौरान भी उन्हें दिल का दौरा पड़ा था. आज दिल का दौरा पड़ने से ही दिल्ली हौज ख़ास निवास में उनकी मृत्यु हो गयी. रोहित की शादी पिछले साल मई में ही अपूर्वा शुक्ला से हुई थी.
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