Featured

आप कितना जानते हैं नैनीताल के भाबर की नदियों को

ब्रिटिश काल में तैयार किए गए गजेटियर स्थानीय भूगोल, इतिहास और संसाधनों का अद्भुत खजाना हैं. ये दस्तावेज उस जमाने की प्रशासनिक व्यवस्था और भौगोलिक समझ का प्रतिबिंब हैं. आज हम बात करेंगे ‘नैनीताल जिले’ के भाबर क्षेत्र में बहने वाली नदियों की, जिनका विस्तृत विवरण नैनीताल गजेटियर में मिलता है. यह जानकारी न सिर्फ इतिहास में रुचि रखने वालों के लिए, बल्कि उत्तराखंड के भूगोल को समझने वालों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
(Rivers of Nainital District)

भौगोलिक पृष्ठभूमि

गजेटियर के अनुसार, इस जिले की कोई भी नदी ऊपरी हिमालय की बर्फीली चोटियों से नहीं निकलती. पूर्व में शारदा नदी और पश्चिम में रामगंगा नदी है, लेकिन जिले की मुख्य जलधाराएं हैं – कोसी, गौला और नंधौर नदियाँ. ये सभी नदियाँ नैनीताल और गढ़वाल की निचली पहाड़ी श्रृंखलाओं से निकलती हैं. आइये जानते हैं नैनीताल जिले की प्रमुख नदियों का विस्तृत विवरण.

कोसी नदी: एक अप्रत्याशित शक्ति

कोसी नदी का उल्लेख गजेटियर में सबसे विस्तार से मिलता है. यह नदी अल्मोड़ा जिले के बोराराऊ पल्ला पट्टी से निकलकर सोमेश्वर और फिर अल्मोड़ा की ओर बहती है. खैरना तक यह अल्मोड़ा और नैनीताल जिले की सीमा बनाती है. रामनगर के पास यह 1,204 फीट की ऊंचाई पर पहाड़ों से निकलकर लगभग सत्तर मील तक मैदानी इलाकों में बहने के बाद रामगंगा में मिल जाती है.
(Rivers of Nainital District)

गजेटियर कोसी को “अत्यंत अप्रत्याशित और विश्वासघाती” नदी बताता है. इसकी विनाशकारी बाढ़ें खेतों और सिंचाई व्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाती थीं. रामनगर के पास इसके विस्तार का ढलान 38 फीट प्रति मील था, जो इसकी अत्यधिक क्षमता का कारण था. 1880 की भीषण बाढ़ ने कोसी के किनारे बसे गाँवों की उपजाऊ जमीन को बुरी तरह प्रभावित किया था.

गौला नदी: सिंचाई का मुख्य स्रोत

गौला नदी का उद्गम डोलफाट के दक्षिणी ढलानों से होता है. यह नदी खनस्यूं तक दक्षिण दिशा में बहने के बाद पश्चिम की ओर मुड़ जाती है. यह भीमताल और नैनीताल के अतिरिक्त जल को, बलियाधारा के माध्यम से ग्रहण करती है. काठगोदाम के पास यह पहाड़ों से निकलकर हल्द्वानी होते हुए तराई में पहुँचती है, जहाँ इसे ‘किच्छा’ के नाम से जाना जाता है. गौला नदी हल्द्वानी के आस-पास के भाबर इलाके की सिंचाई का प्रमुख स्रोत थी.

नंधौर नदी : एक नदी जिसके कई नाम हैं

नंधौर नदी चौगढ़ पट्टी में 7,000 फीट से अधिक ऊँची एक चोटी के दक्षिणी ढलानों से निकलती है. चोरगलिया के पास भाबर में प्रवेश करने के बाद यह दक्षिण की ओर बहती है और पीलीभीत जिले में प्रवेश करती है. चोरगलिया के बाद इसे ‘देओहा’ और आगे जाकर ‘गर्रा’ कहा जाता है. गजेटियर में उल्लेख है कि चोरगलिया के पास इस नदी से एक नहर निकाली गई थी, जो पूरे चोरगलिया क्षेत्र की सिंचाई करती थी.
(Rivers of Nainital District)

दाबका नदी: एक सच्चा सेवक या बुरा स्वामी?

दाबका नदी गागर श्रेणी के दक्षिणी ढलान से निकलती है. कोटादून में प्रवेश करने के बाद इसका नाम ‘गतिया’ और फिर ‘घुघा’ पड़ जाता है. आगे चलकर इसे ‘निहाल’ के नाम से जाना जाता है. गजेटियर में इस नदी के बारे में एक लोक कहावत दर्ज है – “यह एक अच्छा नौकर, लेकिन बुरा मालिक है. “मतलब सामान्य समय में यह उपयोगी है, लेकिन बाढ़ के समय यह विनाशकारी बन जाती है.”

भाबर की अन्य नदियाँ

गजेटियर के अनुसार, भाबर की नदियों के नामकरण में बहुत भ्रम की स्थिति है. कुछ नदियों के बीस मील के अंतर में तीन-चार नाम मिलते हैं. कुछ नदियाँ एक-दूसरे में मिलती-बंटती रहती हैं. कोसी के पश्चिम में ढेला नदी है, जो चिल्किया और काशीपुर से होकर बहती है. इसके अलावा पथरिया और फीका नदी का उल्लेख है, जो जिले की पश्चिमी सीमा बनाती है.

ब्रिटिश गजेटियर में दर्ज यह विवरण साबित करता है कि भाबर क्षेत्र की नदियाँ सदैव ही इस क्षेत्र की जीवनरेखा रही हैं. ये नदियाँ सिंचाई का प्रमुख स्रोत थीं, लेकिन इनके अप्रत्याशित स्वभाव के कारण इन्हें नियंत्रित करने के लिए बड़े बांध और नहरें बनाई गईं. आज भी यह क्षेत्र नदियों के कटाव और बाढ़ की समस्याओं से जूझ रहा है. यह ऐतिहासिक दस्तावेज़ न सिर्फ अतीत की भौगोलिक स्थितियों को समझने में मदद करता है, बल्कि वर्तमान में जल संसाधन प्रबंधन के लिए भी महत्वपूर्ण सबक देता है.
(Rivers of Nainital District)

काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 hours ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

4 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

4 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

4 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

4 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

4 days ago