रितुरैण या ऋतुरैण (Riturain) गीतों का उत्तराखण्ड की लोक परम्पराओं में महत्वपूर्ण स्थान रहा है. इन्हें बसंत ऋतु और विशेषकर चैत्र महीने में गाया जाता है. चैत्र के महीने में गाये जाने के कारण इन्हें चैती या चैतुआ भी कहा जाता है.
लोक संगीत की लुप्त होती परंपरा
आज यह उत्तराखण्ड (Uttarakhand) के लोक संगीत की एक विलुप्त होती परंपरा है. इसके विलुप्त होने के कई कारण हैं. इनमें सबसे महत्वपूर्ण है पारंपरिक रूप से दलित जातियों का इसका वाहक होना. इन्हें उत्तराखण्ड की शिल्पकार जाति के औजी, बाजगी, वादी, मिरासी, गन्धर्वों द्वारा गया जाता था. आजीविका कमाने में लोक संगीत की परंपरा के अक्षम होते चले जाने कि वजह से इन जातियों ने अपने पारंपरिक पेशों के प्रति उदासीनता का रुख अपना लिया. इन्हें बसंत ऋतु और विशेषकर चैत्र महीने में गाया जाता है. चैत्र के महीने में गाये जाने के कारण इन्हें चैती या चैतुआ भी कहा जाता है. सरकार और समाज का भी लोकसंगीत (Folk Songs) की विधाओं के संरक्षण, संवर्धन के लिए उदासीन रवैया जाहिर ही है.
भाई-बहन के प्रेम और मायके की यादों के गीत
रितुरैण गीतों की विषयवस्तु भाई-बहन का अगाध स्नेह, दूर ब्याह दी गयी बहनों की मायके वालों से मिलने की व्याकुलता, मायके की यादें आदि हुआ करती हैं. रितुरैण गीतों में भाई-बहन का स्नेह, मायके की यादें, मायके वालों से मिलने की व्यग्रता के साथ ही भिटौली से संबंधित गीत भी हुआ करते थे. उत्तराखण्ड की महान लोकगायिका कबूतरी देवी बेहतरीन रितुरैण गायिका भी थी. उनके साथ रितुरैण परंपरा का एक अध्याय भी समाप्त हो गया है.
भिटौली के गीत
ऐगो रितुरैंणा, मेरी बैणा नरैंणा,
वो भेटुली को म्हैणा
चैत के महीने में उत्तराखण्ड में बहनों को भिटौली भेजे जाने की परंपरा रही है. गुजरे वक़्त में यहाँ के अधिकांश गांव सड़क मार्ग से काफी दूर हुआ करते थे. परिवहन के साधन नहीं थे. आपसी संचार का मध्यम सिर्फ चिट्ठी-पत्री हुआ करता था, उसका इस्तेमाल भी आसान नहीं था. ऐसे में चैत का महीना वह महीना था जो ब्याहताओं को अपने मायके का सन्देश देता था और मायके तक उनकी बेटी की कुशल-क्षेम का समाचार पहुँच पाता था. चैत के महीने में भाई, भतीजे, पिता, चाचा आदि बहनों-बेटियों के मायके ‘भिटौली’ लेकर पहुँचते थे. भिटौली का शाब्दिक अर्थ होता हैं भेंट, मुलाकात. ब्याहताओं के मायके के लोग तोहफे लेकर उसे भेंटने आया करते थे.
विलुप्त होती परम्परा
आज भिटौली की परंपरा लुप्त होने के कगार पर है. इसके जो अवशेष बचे भी हैं उनका स्वरूप बदल चुका है. परिवहन व संचार के साधनों ने अपने मायके-ससुराल के बीच की खाई को पाट दिया है. अब चैत महीने से जुड़ी परंपरा का वैसा महत्त्व नहीं रहा. रितुरैण गायकी करने वाले लोगों की पीढ़ी भी अब लगभग समाप्त हो चुकी है. नयी पीढ़ी का गायकी की इस परंपरा से कोई वास्ता नहीं रहा.
को रे बार मेंना मैंथि को रितु?
को रे मेंना जेठो होलो रितु?
मैंन में को जेठो मेंना रितु-
राज में रंगीलो बैषाख रितु.
को रे अन्न जेठो होलो रितु?
जौ तिल को अन्न जेठो रितु.
को रे फूल जेठो होलो रितु?
फूलन में तोड़ी को फूल जेठो रितु.
तीरथ में, को तीरथ जेठो रितु.
तीरथ में जेठो बागेसर रितु.
रूखन में, को रुख होलो जेठो रितु?
रुखन में, जड़ पीपल जेठो रितु.
हिंदी अनुवाद:
बारह महीनों में सबसे बड़ा महीना कौन है?
कौन महीना बड़ा?
महीनों में ज्येष्ठ महीना-
ऋतुराज रंगीला बैषाख.
अन्नों में कौन सा अन्न श्रेष्ठ है?
अन्नों में जौ और तिल श्रेष्ठ हैं.
पुष्पों में कौन पुष्प श्रेष्ठ है?
पुष्पों में सरसों का पुष्प श्रेष्ठ है?
तीर्थों में कौन सा तीर्थ श्रेष्ठ है?
तीर्थों में श्रेष्ठ तीर्थ बागेश्वर है.
वृक्षों में कौन वृक्ष श्रेष्ठ है?
वृक्षों में श्रेष्ठ बड़-पीपल का वृक्ष है.-सुधीर कुमार
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