पिछली सात तारीख को उत्तराखण्ड विधानसभा का तीन दिवसीय शीतकालीन सत्र समाप्त हो गया. इस सत्र में उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 (अनुकलन एवं उपरांतरण आदेश 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 को मंजूरी दी गयी है. इसके तहत अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) में बदलाव होगा और अब कृषि और औद्यानिकी की भूमि को उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदा जा सकता है. विधान सभा सत्र को समाप्त हुये आज चार दिन होने को आये हैं लेकिन आज तक न ही किसी अख़बार ने इस पर सम्पादकीय लिखा न ही किसी स्व राज्य विभूति ने विरोध या पक्ष में एक फेसबुक स्टेटस डालना तक जरुरी समझा. ख़ुद को तीसरा मोर्चा बता कर माइक और हुड़का लेकर चुनाव में वोट माँगने वाले भी गायब हैं. राज्य के क्रांतिकारी, वीर, धीर, महात्मा पुरुष जो आज मौन हैं कल जब सबकुछ बिक चुका होगा तो कानफोडू माईकों के साथ आपको बतलायेंगे कि पहाड़ बेच दिया गया है.
खैर. पिछले दो महिने इस राज्य में दो महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुये हैं. पहला पर्यटन को उद्योग का दर्जा दिया गया है दूसरा आज पहाड़ पर भूमि खरीद की 12.5 एकड़ की अधिकतम सीमा समाप्त की गयी है. इन दोनों ख़बरों को साथ में पढ़ा जाना चाहिये. नई पर्यटन नीति के तहत होटल, रिजॉर्ट, सर्विस अपार्टमेंट, रेस्टोरेंट, ईको—लांज, पार्किंग स्थल, मनोरंजन पार्क, योगा केंद्र, आरोग्य केंद्र , कन्वेंशन केंद्र, त्योहार, स्पा आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा, कैरावन, एयर टैक्सी, हस्तशिल्प, साहसिक गतिविधियां, रोप—वे, जनरल सफारी, आदि कुल 28 पर्यटन गतिविधियों को पर्यटन की परिभाषा में शामिल किया गया है. इसका अर्थ है कि यह सभी राज्य के भीतर उद्योग का दर्जा प्राप्त होंगे.
उत्तर प्रदेश जमींदारी उन्मूलन और भूमि व्यवस्था अधिनियम 1950 (अनुकलन एवं उपरांतरण आदेश 2001) (संशोधन) अध्यादेश 2018 के तहत अधिनियम की धारा 154 (4) (3) (क) में बदलाव होगा . अब कृषि और औद्यानिकी की भूमि को उद्योग स्थापित करने के लिए खरीदा जा सकता है. उद्योगपति सिंगल विंडो के तहत अपने निवेश का प्रस्ताव स्वीकृत करा पहाड़ पर कहीं भी भूमि खरीद सकता है.
आसान शब्दों में कहें तो अगर आपको उत्तराखण्ड में एक पहाड़ खरीदना है तो आप ऊपर दिये गये किसी भी एक मामले में निवेश दिखाईये और पहाड़ पाइये. सरकार अपने निर्णय का समर्थन इस तरह कर रही है कि पहाड़ का आदमी निवेश करने में कमजोर है इसलिए बाहर से निवेशक आकर निवेश करेगा और पहाड़ी उसकी नौकरी मने उसे रोजगार मिलेगा.
क्या राज्य सरकार इतनी कमजोर है कि स्थानीय लोगों के साथ मिलकर निवेश करने की बजाय उन्हें मजदूर बना बना रही है. किसी राज्य के बनते समय एक महत्वपूर्ण बात जो ध्यान में राखी जाती है वह कि क्या राज्य आर्थिक रूप से सक्षम है या नहीं? अगर हम 18 साल पहले सक्षम थे तो आज क्यों नहीं? क्या हम 18 साल में इतने कमजोर हो चुके हैं कि हमें ख़ुद को बेचना पड़ रहा है? अगर बाहरी लोगों पर ही निर्भर रहना था तो उत्तर प्रदेश क्या बुरा था? कम से कम भीख के नाम से ही सही पहाड़ को विशेष पैकेज तो मिल ही जाते थे.
इस पूरे प्रकरण में पूरी तरह सरकार भी दोषी नहीं है. क्योंकि सरकार के इस निर्णय में सहमति देने वाले 50 से ज्यादा विधायक पहाड़ी ही हैं. हम उत्तराखण्ड के लोगों को भी अब अपनी बंजर खेतों से छुटकारा चाहिये. हमें दिल्ली बंगलौर जैसे कंक्रीट के जंगल में उड्यार जैसे घर चाहिये उसके लिये इन जी का जंजाल बन चुकी बंजर जमीनों का बिक जाना ही सबसे अच्छा है.
हम विरोध न कर सकें कम से कम सरकार के इस फैसले का स्वागत तो कर सकते हैं. भविष्य की कल्पना कर सकते हैं हम दिल्ली से पहाड़ घुमने चार सीट वाली आल्टो में पांच बैठकर आयेंगे और अपने बच्चों को सड़क से दिखायेंगे – वो… देख तेरे बूबू का मकान था उस पहाड़ में. पूरा पहाड़ हमारा था. मैंने बेच दिया…
– गिरीश लोहनी
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