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उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना और यथार्थ के विषय पर हल्द्वानी में आयोजित संगोष्ठी

जब विचारों का ज्वार धधक रहा हो, मन में सवाल उमड़-घुमड़ रहे हों, बेचैन करने वाली तमाम तस्वीर हमारे सामने परिलक्षित होने लगी हो तो आम जन के सवालों पर सत्ता का टकराव होना स्वाभाविक ही है. यह टकराव लोकतांत्रिक देश में धरना-प्रदर्शन व उग्र आंदोलन के रूप में तो नहीं, लेकिन विचारों के घमासान युद्ध के रूप में नजर आया. (Seminar organized in FTI haldwani)

अक्टूबर महीने की 20 तारीख. रविवार का दिन और समय तीसरे पहर 3 बजे का. स्थान वानिकी प्रशिक्षण संस्थान के सभागार का, जहां शहर के चंद लोगों के अलावा उत्तराखंड की ऐसी हस्तियां थी, जो अपने-अपने क्षेत्रों में आज मुकाम पर हैं. कोई युवाओं के लिए रोल मॉडल है तो कोई विचारकों के लिए. इसमें राज्य आंदोलन के पुरोधा रहे चारू तिवारी जैसी शख्सियत मौजूद थी, जिन्हें संचालन की जिम्मेदारी सौंपी गई थी और जो कुशल संचालन के साथ ही राज्य के स्याह पहलुओं को कुरेद-कुरेद कर सामने रख जनता को ही नहीं बल्कि वक्ताओं को भी झकझोरने का काम कर रहे थे. मंच पर थे राज्य आंदोलनकारी पीसी तिवारी, लोकसंस्कृति के मर्मज्ञ डॉ. प्रयाग जोशी, उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय में पत्रकारिता व जनसंचार विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर व विचारक डॉ. भूपेन सिंह, सीएम के मीडिया सलाहकार रमेश भट्ट, प्रसिद्ध रेडियो जॉकी काव्य यानी कवीन्द्र सिंह मेहता और ओजस्वी विचारक व पत्रकार रूपेश कुमार सिंह. (Seminar organized in FTI haldwani)

जनकवि बल्ली सिंह चीमा मंच पर नहीं थे, लेकिन उन्होंने पहाड़ की पीड़ा की अभिव्यक्ति करती कविता का वाचन कर आम लोगों को सत्ता के प्रति नजरिये बदलने की ओर संकेत किया. तराई क्षेत्र उधमसिंह नगर के निवासी रूपेश कुमार सिंह ने 19 साल में किसी तरह का काम न होने पर भाजपा व कांग्रेस सरकारों पर निशाना साधा. उन्होंने यहां तक कह दिया कि भाजपा व कांग्रेस दोनों को ही सत्ता से बाहर करने के बाद ही राज्य में विकास संभव होगा. उनके भाषणों में आक्रोश साफ झलक रहा था, जो अक्सर उनके सवालों में नजर भी आ जाता है. उन्होंने राज्य में भुखमरी जैसे हालात होने की भी बात कहते हुए सत्ता से जुड़े लोगों को बेचैनी में डाल दिया.

रेडियो जॉकी ही नहीं बल्कि उत्तराखंड के लोकसंस्कृति से जुड़े शख्सियतों के साक्षात्कार करने वाले काव्य की करते हैं, उनका भाषण पूरी तरह मोटिवेशनल था. उन्होंने राज्य के विकास के लिए सरकारों व दूसरों को दोष देने के बजाय खुद से पहल करने का तर्क दिया. अपने जीवन के स्पष्ट उद्देश्य को इंगित करते हुए काव्य ने कहा कि 11 साल में आज जहां हूं, सफल हूं. इसके लिए मैंने किसी सरकार का मुंह नहीं ताका. अंत में उन्होंने जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा की कविता सुनाकर अपना भाषण समाप्त किया.

मंच पर आए वरिष्ठ टीवी पत्रकार रहे सीएम के सलाहकार रमेश भट्ट को संचालन कर रहे चारू तिवारी व पत्रकार रूपेश की बातें पसंद नहीं आई तो उनका तरीके से खंडन भी करते गए. उन्होंने रूपेश की उत्तराखंड में भूखे से मौत होने के सवाल पर गहरा आक्रोश व्यक्त करते हुए कहा कि उत्तराखंड में भूख से मौत हो ही नहीं सकती है, जब तक उत्तराखंडियत जिंदा है, फिलहाल तब तक कोई भूख से मरे, ऐसा संभव नहीं है. उत्तराखंड का कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो अपने पड़ोसी को भूख से मरने देगा. स्वास्थ्य की समस्याओं का जिक्र किया और अभी तक सरकारों के ठोस कदम नहीं उठाने पर उन्होंने निराश भी जाहिर की. समाचार पत्र के साथ ही सोशल मीडिया में मेरे द्वारा लगातार स्वास्थ्य मुददे को प्रमुखता से उठाए जाने का भी जिक्र किया और कहा कि सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को दुरूस्त करने पर गंभीरता से विचार कर रही है. इसके लिए उन्होंने अन्य वक्ताओं व लोगों से अधिक निगेटिव नहीं होने की सलाह भी दे डाली.

जैसे ही उत्तराखंड मुक्त मुक्तविश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. भूपेन ने बोलना आरंभ किया तो खामोशी सी छाने लगी. भरी-भरी आवाज में बेबाकी से उन्होंने अपनी बात रखनी शुरू की और सीधे सीएम के सलाहकार रमेश भट्ट के बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया देने लगे. रमेश ने जिस उत्साह से राज्य में पर कैपिटा इनकम यानी प्रति व्यक्ति आय के बढऩे और ग्रोथ रेट बढऩे का जिक्र किया था, भूपेन ने इसका करारा जवाब दे दिया और कहा, प्रति व्यक्ति आय में अडाणी व अंबानी जैसे धनाढ्य व्यक्तियों की आय के साथ पहाड़ की खिमुली व परूली की आय भी जोड़ी जाती है. यही आय प्रति व्यक्ति आय हो जाती है. राज्य में सभी जानते हैं, यहां किसकी आय तेजी से बढ़ी है और कौन गरीब से गरीब होते जा रहा है. लोगों को इसे समझना चाहिए. इसी तरह उन्होंने ग्रोथ रेट का भी मतलब समझाया तो माहौल में कुछ पल के लिए अजीब सी खामोशी छा गई. पलायन पर भी उन्होंने इसी तरह कटाक्ष कर हर किसी को सोचने को विवश कर दिया.

आंदोलनों में सक्रिय भूमिका निभाने वाले पीसी तिवारी ने कहा कि राज्य के जल, जंगल व जमीन को बचाने के लिए सरकार के नकारात्मक रवैये को उजागर किया. उन्होंने भाजपा व कांग्रेस के दो नेताओं से किए गए सवाल का जिक्र किया, जिसका कोई जवाब तक नहीं दे सका था. उनकी पीड़ा भी राज्य के विकास में कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाने की थी.  

मैं भी कई बार विदेश गया, वहां तो…

रमेश भट्ट ने विदेश जाने का जिक्र किया तो भूपेन व पीसी तिवारी ने भी विदेश जाने का जिक्र छेड़ दिया. जब जिक्र कर ही लिया तो यह भी कह दिया कि यहां पर इस बात का कोई सरोकार नहीं. एक के बाद एक वक्ता के विदेश जाने की बात कहने पर तमाम श्रोता भी अपने-अपने तर्क निकालने लगे.

श्रोताओं को हरेक की बातों में मजा ही आया और बजा दी तालियां

जब हर वक्ता की बात पर तालिया बज रही थी, तब मुझे वरिष्ठ टीवी पत्रकार रवीश कुमार के एक आयोजन में कही गई बात याद आ गई. रवीश जब एक आयोजन में थे, तब वहां भी अलग-अलग विचारधारा व सोच वाले व्यक्ति थे जो अपने-अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे थे, लेकिन श्रोता हर किसी की बात पर तालियां बजा दे रहे थे. तब रवीश ने कहा था, जब मैंने एक पक्ष बोला तो तब भी आपने ताली बजा दी और जब दूसरे ने अपना पक्ष रखा तब भी उतनी ही तालियां बजा दी. अब यह तय कौन करेगा कि सही क्या था और क्या गलत. दोनों सही या दोनों गलत तो हो नहीं सकते. फिर भी तालियां दोनों के लिए ही क्यों बजी?

इसके लिए रवीश की टिप्पणी थी, लोगों को समझ विकसित करनी होगी. दोनों की ही बात अच्छी तब लग जाती है, जब हमारी कोई सोच परिपक्तव ही नहीं होती है. हम तर्क नहीं कर सकते हैं. हमें तर्क करने की क्षमता विकसित करनी चाहिए. अगर ऐसा करेंगे तो हमें कोई भी यूं ही बेवकूफ नहीं बना सकेगा. हम सब बेवजह के मुददों में कैसे उलझ जाते हैं, इसे आप खुद ही समझ जाइए.

अब फिर मैं अपने उत्तराखंड राज्य की परिकल्पना और यथार्थ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के मायने पर आ जाता हूं, जहां अधिकांश वक्ताओं ने स्वास्थ्य मुददे पर गहन चिंता जताई, लेकिन समाधान किसी ने नहीं बताया. स्कूलों के बंद होने का जिक्र किया. उनके सुधार के प्रयास पर  जोर दिया, लेकिन ठोस सुझाव मिलने चाहिए थे, ऐसा नहीं नजर आया. पलायन की चिंता, मजबूरी और बेहतरी के लिए पलायन पर भी बहस हुई, लेकिन इस राजनीतिक विषय पर भी भी विद्वानों में एकमत नहीं दिखा और न ही ठोस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सका. ओवरऑल देखें तो संगोष्ठी कराने की मंशा बेहतर रही. इसके लिए मनोज चंदोला व चारू तिवारी को बधाई. आयोजन ने वक्ताओं से लेकर श्रोताओं के अंतस को झकझोरने का काम किया. इसी संगोष्ठी में पहले दिन के वक्ता लेखक अनिल कार्की के ही शब्दों में, सहमति और असहमति के स्वर निकलते रहने चाहिए, तभी कोई सार्थक परिणाम निकल कर सामने आता है. लोकतंत्र की खूबी भी यही है.

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गणेश जोशीहल्द्वानी निवासी गणेश जोशी एक समाचार पत्र में वरिष्ठ संवाददाता हैं. गणेश सोशल मीडिया पर अपना ‘सीधा सवाल’ सीरीज में अनेक समसामयिक मुद्दों पर जिम्मेदार अफसरों, नेताओ आदि को कटघरे में खड़ा करते हैं. काफल ट्री की शुरुआत से हमारे सहयोगी.

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Girish Lohani

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