नैनीताल में मेरे क्लासफैलो थे कामरेड दीनबंधु पन्त. विचारधारा से वामपंथी इन जनाब की खासियत यह थी कि वे पारिवारिक पेशे से पुरोहित थे. जाहिर है संस्कृत पर उनकी गहरी पैठ थी. कबाड़ के निर्माण में उन्हें खासी दक्षता हासिल थी. पेश है खैनी (सुरती) की उनकी अद्वितीय परिभाषा : (Remembering DB Pant the Sanskrit Poet)
“वामहस्ते दक्षिणहस्तांगुष्ठे मर्दने फटकने मुखमार्जने विनियोगः”
भारत के राष्ट्रीय पेय चाय पर उनकी दो रचनाएं भी अदभुत हैं :
“शर्करा, महिषी दुग्धं सुस्वादम ममृतोपमम
दूरयात्रा श्रम्हरम चायम मी प्रतिग्रह्य्ताम”
(अर्थात शक्कर तथा महिषी के दुग्ध से बनी, अमृत के समान सुस्वादु, दूर यात्रा का श्रम हर लेने वाली चाय को मैं ग्रहण करता हूँ. )
दूसरे श्लोक में चाय बनाने का तरीका और उसकी गरिमा का वर्णन है :
“शर्करा, महिषी दुग्धं, चायं क्वाथं तथैव च
एतानि सर्ववस्तूनी कृष्ण्पात्रेषु योजयेत
सपत्नीकस्थ, सपुत्रस्थ पीत्वा विष्णुपुरम ययेत”
(अर्थात शक्कर, महिषी के दुग्ध तथा चाय के क्वाथ को एकत्र करने के उपरांत इन समस्त वस्तुओं को एक कृष्ण पात्र में योजित किये जाने से बनी चाय को पत्नी तथा पुत्र के साथ पीने वाला सत्पुरुष सीधा देवलोक की यात्रा पर निकल जाता है.) Remembering DB Pant the Sanskrit Poet
ऎसी उत्क्रृष्ट रचनाओं को कामरेड दीनबंधु पन्त ऋषि चूर्णाचार्य के नाम से रचते थे और इन्हें त्र्युष्टुप छंद कहा करते थे.
दीनबंधु पन्त उर्फ़ डी बी गुरु ने अध्यापन को अपना पेशा चुना था और इस वर्ष मार्च के महीने में हुई अपनी असमय मृत्यु से पहले तक वे नैनीताल जिले के गरम पानी नामक स्थान के समीप एक सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे थे. जाहिर है उन्हें याद करना बहुत भावुक कर जाता है. Remembering DB Pant the Sanskrit Poet
उनकी स्मृतियों को जीता हुआ फिलहाल मैं चाय के बारे में उनकी विख्यात उक्ति उद्धृत कर रह हूँ:
“यस्य गृहे चहा नास्ति, बिन चहा चहचहायते”
(अर्थात बिना चाय वाला घर तथा उसका स्वामी बिन चाय के चहचहाता रहता है.)
यह भी पढ़ें: कुछ तो करना है पहाड़ के लिए
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
2 Comments
Sunil Thapliyal
डा•डी बी पन्त पर दी गई जानकारी अत्यंत रुचिकर लगी।पंत जी को शत-शत नमन व श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।
सचमुच हमारे पहाड़ में ऐसे अनेकों समर्पित गुरु जन थे और हैं ,जिन्हें ना तो उचित ख्याति और ना सम्मान मिल पाया है ।
क़ाफल ट्री का धन्यवाद ।
पंकज सनवाल
मैं श्री सुनील थपलियाल जी के शब्दों को बयान करने वाला था । काश D. B. Pant जी के दर्शन सुलभ हो पाते यदि कुछ समय पहले उनके बारे में जानकारी होती । काफल ट्री का बहुत -२ आभार ।