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6 Comments

  1. हेमा

    अपना नैनीताल और समय याद आ गया । लाइब्रेरी जाना ,जहाँ बच्चों के लिए खुले में पेड़ों के चारों ओर पुस्तकें फैला दी जाती थीं। लकड़ी की रंग बिरंगी फोल्डिंग कुर्सियां होती थीं। बड़े लोग जब भीतर वाचनालय में पढ़ते थे तो बच्चे बाहर की लाइब्रेरी में किताबें पढ़ अथवा पलट रहे होते। पढ़ने के संस्कार ये बड़े हमें ऐसे ही दे ग ए। नारायण एंड को के साथ ही मार्डन बुक डिपो से भी किताबें और पत्रिकाएं खरीदकर पढ़ना भी सिखाया गया। कंसल में तब शायद केवल स्टेशनरी मिला करती थी शायद । बहुत सारी यादें हैं । जिनमें किशोरावस्था में लाइब्रेरी से पुस्तकें लेते समय तत्कालीन लाइब्रेरियन का एक डायलोग भी याद आ गया । तब रानू,गुलशन नंदा,दत्ता,इब्ने शफीवगैरह को इशयू कराने जाओ तो वे पूछते थे —“बाबू कब आ रहे हैं ?बहुत दिनों से नहीं आए ।”सुनाते हुए किताबें मेज के सामने के हिस्से में डाल दी जातीं। वहाँ से कोई अच्छी साहित्यिक पुस्तक पकड़ा दी जाती।
    हमारा नैनीताल भी इतना बदल.गया क्या कि लोग किताबें नहीं पलटते?वैसे क्या वह बच्चा लाइब्रेरी फिर से शुरु नहीं की जा सकती?

  2. Pankaj

    Do write something about Himanshu Joshi ji and his epic novel Tumhare liye.

  3. कवीन्द्र तिवारी

    मैंने कई बार यहां से किताबें खरीदी हैं,विभिन्न प्रकार की किताबों का अच्छा कलेक्शन यहां रहता है,पर धीरे धीरे पढ़ने की आदत खत्म होती जा रही है,युवाओं को किताबें ज्यादा नहीं लुभा पा रहीं आज कल।

  4. Parwati Joshi

    नारायण एण्ड को. तो मेरी सबसे पसंदीदा किताबों की दुकान रही है । पिछले पचास वर्षों से मैं पुस्तकें ख़रीदने वहाँ जाती रही हूँ । शिवानी जी के लगभग सभी प्रमुख उपन्यास ख़रीदने में प्रदीप जी ने मेरी मदद की है । मुझे क्या नया पढ़ना चाहिए, इसके लिए भी उन्होंने मुझे सुझाव दिए हैं । किन्तु जब मैं पिछली बार उनसे मिली तो वे बहुत मायूस लग रहे थे कि अब न तो बहुत अच्छा लेखन हो रहा है और न पढ़ने के शौक़ीन लोग । फिर भी जिन्हें रात को पढ़े बिना नींद नहीं आती, ऐसे लोग उनकी दुकान के चक्कर लगा ही लेते हैं, जैसे कि मैं । मुझे बिना पढ़े रात में नींद नहीं आती , यदि रात में नींद खुल गई,तो कोई न कोई किताब के कुछ पन्ने मुझे सुला देते हैं ।

  5. Parwati Joshi

    नारायण एण्ड को. तो मेरी सबसे पसंदीदा किताबों की दुकान रही है । पिछले पचास वर्षों से मैं पुस्तकें ख़रीदने वहाँ जाती रही हूँ । शिवानी जी के लगभग सभी प्रमुख उपन्यास ख़रीदने में प्रदीप जी ने मेरी मदद की है । मुझे क्या नया पढ़ना चाहिए, इसके लिए भी उन्होंने मुझे सुझाव दिए हैं । किन्तु जब मैं पिछली बार उनसे मिली तो वे बहुत मायूस लग रहे थे कि अब न तो बहुत अच्छा लेखन हो रहा है और न पढ़ने के शौक़ीन लोग । फिर भी जिन्हें रात को पढ़े बिना नींद नहीं आती, ऐसे लोग उनकी दुकान के चक्कर लगा ही लेते हैं, जैसे कि मैं । मुझे बिना पढ़े रात में नींद नहीं आती , यदि रात में नींद खुल गई,तो कोई न कोई किताब के कुछ पन्ने मुझे सुला देते हैं ।

  6. Dr मृगेश पांडे

    बहुत सारी यादें जुड़ी हैं आर नारायण के प्रतिष्ठान से
    पहली बार महेश दा ऑब्जरवेटरी वाले मुझे ले गये थे उनके साथ अतुलदा, सनवाल साब, डॉ पुनेठा जैसे खगाड़ किताबी कीड़े होते.1974 तक जाना अनवरत होता रहा फिर नौकरी लगी तो बस छुट्टियों में थोड़े दिनों के लिए आना होता. मुझे बगल में मर्फी रेडियो वाले तिवारी चचा से बड़ा स्नेह मिलता वहाँ देर तक उनकी तकनीकी खुचुर बुचुर देखता. चंद्रेश शास्त्री ने वहाँ मेरे विषय की नई किताबें की खोजबीन में नज़रिया दिया.

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