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अद्भुत है मां पूर्णागिरी धाम की यह कथा

11 मार्च बुधवार को विधि विधान के साथ टनकपुर में ठुलीगाढ़ प्रवेश द्वार में स्थित माँ पूर्णागिरि धाम के कपाट खुलने के साथ ही ऐतिहासिक धार्मिक मेले का आरम्भ हो गया. पर्वतराज हिमालय की तराई में समुद्र तट से पांच हज़ार फ़ीट की ऊंचाई में बसा टनकपुर शारदा नदी के तट  पर अवस्थित है. इसके अवलम्बन क्षेत्र में विविधताओं से भरी  अनेक प्रजातियों से सम्पन्न वन सम्पदा है. जैव विविधता की दृष्टि से भी यह सम्पन्न क्षेत्र है. यहीं उच्च शैल शिखर में टनकपुर से 18 किलोमीटर दूर विराजती है माँ पूर्णा गिरि जिसे पुण्यागिरि भी कहा जाता है. Punyagiri Temple History

टनकपुर से आगे बूम कालसन देव, ठुलीगाड़ होते अनेक पड़ावों की चढ़ाई पार करते हुए, शिखर पर स्थित माँ के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त होता है. इनमें रानीहाट, हनुमान चट्टी, लादी गाड़, भैरव मंदिर, बावली, टुन्यास तथा कालीमंदिर प्रमुख पड़ाव हैं. जंगलों के बीच गुजरते ऊँची पहाड़ियों को पार करते यात्रा पथ में अनेक विश्रामस्थल हैं.

तीर्थ यात्रियों के आवास हेतु धर्मशालाएं एवं पर्यटक आवास गृह की सुविधाएं हैं तो सामान्य उपभोग और खानपान की वस्तुओं की दुकानें और फड़ भी. स्थानीय जनों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए अब महिला समूहों को प्रसाद बनाने और भंडारों के संचालन की जिम्मेदारी इस वर्ष से दी गई है जिससे भक्त जनों को स्थानीय गुणवत्ता युक्त भोजन सामग्री और प्रसादी मिल सके. भक्तों की आवाजाही के साथ मंदिर में पूजा अर्चना व भोग व चढ़ावे का क्रम चलते रहता है. चैत्र की नवरात्रियों और आश्विन की नवरात्रियों में नौ दिन पूर्णागिरि शक्ति पीठ व सिद्ध पीठ में देवी की पूजा प्रार्थना का विशेष मह्त्व है.  Punyagiri Temple History

श्री मददेवी भागवत एवं शिवपुराण, देवी भागवत पुराण,,मतस्यपुराण में वर्णित 108 शक्तिपीठों  व तंत्र चूड़ामणि, कालिकापुराण, योगिनीहृदयतंत्र, दाक्षायणी तंत्र व शिव चरित्र के 51 शक्तिपीठों में में माँ पूर्णागिरि विशिष्ट हैं जो कालकगिरि, मल्लिकागिरि, हेमलागिरि शक्तिपीठों में प्रधान है. पूर्णागिरि में वैष्णवी माता प्रतिष्ठित है.

पौराणिक आख्यान के अनुरूप दक्ष प्रजापति की कन्या के रूप में कालिका  का जन्म हुआ. शिव जी से विवाह हेतु उन्होंने अनवरत तपस्या की. एक बार जब इन्द्र देव की सभा में दक्ष प्रजापति आए तो शिव स्वयं में रमे होने से उनका समुचित अभिवादन न कर पाए.

दक्ष प्रजापति के आत्म सम्मान को इससे चोट लगी और वह इस घटना को भूल न पाए. तदन्तर दक्ष प्रजापति ने जब यज्ञ  आयोजित किया तो पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो शिव को आमंत्रित नहीं किया. माता कालिका अकेले ही अपने मायके आयीं और पितृग्रह में अपने पति के लिए आसन  को न देख आहत  हो गईं. Punyagiri Temple History

मायके में शिव के अपमान को सहन न कर दक्ष पुत्री ने यज्ञ कुंड में स्वयं को समर्पित कर दिया. इसी कारण कालिका को सती के नाम से जाना गया. शिव इस घटना से क्रोधित हो गये. उन्होंने अपनी जटा को नोच पत्थर पर पटक दिया. इस जटा से वीरभद्र गण प्रकट हुआ जिसने दक्ष की  गर्दन तलवार से काट दी और यज्ञ स्थल छिन्न-भिन्न कर दिया.

समस्त त्रैलोक्य में हाहाकार मच गया. देवों ने शिव की स्तुति की तो उन्होंने दक्ष के धड पर एक बकरे का सर रख उसे जीवित कर दिया. अपनी प्राणप्रिया का अग्नि दग्ध शरीर देख वह विरह से व्याकुल हो गये. तब यज्ञ कुंड से अपनी अर्धांगिनी के पार्थिव शरीर को ले उद्विग्न शिव जंगल जंगल पर्वत-पर्वत भटकते रहे. विलाप करते तांडव करने लगे.

तीनों लोक कांप उठे. हाहाकार मच गया. देवताओं ने अब विष्णु देव से शिव को शांत करने की प्रार्थना की. यदि शिव शांत न हुए तो समूची सृष्टि काल कलवित हो जाती. विष्णु देव ने देवताओं की प्रार्थना स्वीकार की. तब सती मोह के संत्रास से शिव को मुक्ति दिलाने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र से सती के पार्थिव शरीर के अंग विच्छिन्न कर दिये. उन्होंने सोचा कि जब तक शिव के पास सती का निर्जीव शरीर रहेगा वह उद्विग्न ही रहेंगे. विष्णु द्वारा सती के शरीर के अंग काटने के बाद जब शिव ने पाया कि सती का शरीर शेष नहीं है तब उन्हें विश्रांति का अनुभव हुआ. Punyagiri Temple History

कहा गया कि जहां-जहां सती के ये  ये अंग धरती पर गिरे वहां वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए. बाद में शिव ने इन देवी तीर्थों में शक्ति साधना की. प्रत्येक देवी तीर्थों में पूर्णागिरि में सती के शरीर का नाभि का अंश गिरा. इसलिए इसे विशिष्ठ उपासना स्थल माना गया. देवी की नाभि भीमसुरी देवी, जगन्नाथपुरी में स्थापित हुई. 

जनश्रुति है कि दशकों पूर्व देवी के परम उपासक, कर्मकांडी और संस्कृत के विद्वान श्री चंद तिवारी को स्वप्न में देवी ने आदेश दिया कि शारदा नदी के तट पर ऊँची पहाड़ी के मंदिर नुमा शिखर पर स्थित नाभि कुंड में मुझे स्थापित करो. स्वप्न में आए विवरण के संकेतों से इस स्थान पर पूर्णागिरि माता की विधिवत स्थापना की गई.

श्री चंद तिवारी चम्पावत के निवासी थे. कहा जाता है कि वह चम्पावत से चल शारदा नदी में स्नान कर नव स्थापित  देवी मंदिर में नित्य पूजा अर्चना करते. धीरे धीरे देवी के इस नये वास स्थल की  ओर भक्तों का आवागमन बढ़ता गया. दूर-दूर से वैष्णवी देवी की कृपा प्राप्त करने लोग आने लगे. फिर श्री चंद तिवारी ने देवी मंदिर में पूजा अर्चना का दायित्व पूर्णागिरि निवासी अपने भांजों को भी  सौंपा जो पांडे थे. तब से एक वर्ष पांडे परिवार व दूसरे वर्ष तिवारी परिवार क्रम से पूजा पाठ  करते रहे. फिर इन  परिवारों ने आपसी सहमति से पूजा पाठ के दिन तय किये. मंदिर समिति का भी गठन किया गया जिसके वर्तमान अध्यक्ष पंडित भुवन चंद्र पांडे हैं. Punyagiri Temple History

पूर्णागिरि मंदिर के समीप ही बेतिया कोट ग्राम के समीप चौरासी गुफा है. तो मंदिर से एक कोस की दूरी पर गुम्बद वाला तांबे का मंदिर है जिसे झूठा मंदिर कहा जाता है. कहा जाता है कि एक धन्नासेठ ने माँ के दरबार में अपनी मनोकामना पूर्ण  होने पर स्वर्णनिर्मित मंदिर बनाने का वादा किया. पर बाद में उसने ताँबे का मंदिर बना उसमें सोने का पानी चढ़ा दिया व स्थापित करने को मुख्य मंदिर की  ओर ले जाने लगा.

मंदिर से एक कोस पहले थके हारे  पल्लेदारों ने जब विश्राम के लिए मंदिर को रखा तो फिर वह इस स्थान से उठा ही नहीं. सेठ के द्वारा वचन भंग करने से देवी माँ ने इस मंदिर को अस्वीकार कर दिया. इसलिए टुन्यास से आगे पूर्णागिरि धाम के निकट के इस मंदिर को झूठा मंदिर कहा गया. वहीं टनकपुर में उत्तर की  ओर शिव की प्राचीन पंचमुखी मूर्ति एवं शिवलिंग स्थापित पंचमुखी महादेव का मंदिर है. यहाँ दर्शनार्थियों के विश्राम के लिए धर्मशाला भी बनी है. Punyagiri Temple History

पूर्णागिरि मंदिर के चरणों में टनकपुर में शारदा नदी के तट पर सिद्धनाथ बाबा विराजते हैं. यह अत्यंत रमणीक, सुरम्य स्थल है जहां सिद्धनाथ बाबा का प्राचीन मंदिर बना है. सामने नेपाल सीमा में भी घने वनों के बीच सिद्ध नाथ का मंदिर है जिसके सम्बन्ध में मान्यता है कि पूर्णागिरि माँ के दर्शन के उपरांत सिद्ध बाबा के दर्शन से सब मनोरथ पूर्ण होते हैं. सिद्ध पर्वत पर सिद्धनाथ की गुफा भी घने जंगल के मध्य है. टनकपुर से पहले बनबसा से नेपाल के महेन्द्रनगर में भी सिद्धनाथ का मंदिर है जिसकी उत्तराखंड व नैपाल  में काफ़ी अधिक मान्यता है.

पूर्णागिरि देवी का रूप सात्विकी तथा राजसी है, इस रूप में उन्हें वैष्णवी शक्ति के रूप में पूजा जाता है. उत्तराखंड में शक्ति या ऊर्जा  की उपासना की पुरातन परंपरा रही है. शक्ति स्वरूपा माँ ही  मानव के दैहिक, दैविक दुख व संत्रास से मुक्ति देने में समर्थ है. Punyagiri Temple History

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जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.

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