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पांच बीघा लम्बे नाम का झंझट

जिन्होंने लोकतांत्रिकविश्वविद्यालयों या महाविद्यालयों में रत्ती भर भी पढ़ाई की है, वे छात्र राजनीति में नामके महत्व से जरूर परिचित होंगे. छात्रसंघ चुनाओं में छात्र नेताओं का नाम विशेष महत्व रखता है. सुन्दर, छोटे और प्यारे से नाम का, नेता की पर्सनालिटी से कम वजूद नहीं होता. यदि नेता को अपनी पर्सनालिटी के आधार पर चार वोट मिलते हो, तो नाम भी अपने आकर्षण से दो-तीन वोट तो लपेट ही लेता है. Student Politics Satire Ashtosh Mishra

वोट को झोली में समेटने के लिये छात्र नेता की गुंडे वाली इमेज, आचार-संहिता का उल्लंघन करके बहाये गये पैसे, जातिवाद, धर्मवाद और क्षेत्रवाद के रसायन जैसे मौलिक तत्व भी गाजे-बाजे के साथ नंगा नाच करते रहते हैं. कुछ सज्जन तो नेताओं के लच्छेदार भाषण को भी प्रभावी कारक मानते हैं, लेकिन कुछ चुनावी विश्लेषक इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते. उनका मानना है कि भाषण कितनी ही कैलोरी ऊर्जा झोक करके दिया गया हो, वर्तमान समय के मतदाताओं को झांसे में नहीं ले पाता. क्योंकि छात्र नेताओं के भाषणों में नयेपन का अकाल-सा हो गया है. विरोधी नेताओं को महिमामंडित करने के लिये दशकों से नई गालियां इजाद ही नहीं हुई. वही घिसी-पिटी पुरानी गालियों को सुनकर मतदाता ऊब गये हैं. Student Politics Satire Ashtosh Mishra

हाँ, चुनाव में नारे विशेष स्थान रखते हैं, लेकिन इनके साथ एक विकट समस्या है. नारा लगते समय नामऊँची छलांग लगाते हुए नारों को आलिंगन करने लगता है. नाम से ही नारों को आक्सीजन मिलता है. नाम ही नारों की प्राणवायु है. मसलन,

‘‘अरे! हमारा नेता कैसा हो, ‘अलाने जीजैसा हो’’

‘‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी फलानेकी पारी’’

‘‘जो चिलानेसे टकराएगा, चूर-चूर हो जाएगा’’

‘‘‘किलानेतुम संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है’’

‘‘भईया, ‘उलानेभईया, जय हो; भईया, ‘डलानेभईया, जय हो’’

‘‘छात्रों की है यही पुकार, अबकी बार मलानेकी सरकार’’

‘‘‘हलानेभईया मत घबड़ाना, सारा जमाना तेरे साथ है’’

‘‘‘झलानेनहीं फकीर है, कैम्पस की तकदीर है’’

‘‘‘टमाकेनेता जिंदाबाद, जिंदाबाद-जिंदाबाद’’

ये तो हुई नेता जी के पक्ष में लगने वाले नारों की बात. साफ दिख रहा है कि नारों के ऊपर नाम सवार न हो, तो पूरी बरात बिना दूल्हे के दिखाई देगी. अब उनके विपक्ष में लगने वाले नारों को भी देख लीजिए.

‘‘‘जिलानवाकी तीन दवाई; लत्तम, जुत्तम और पिटाई’’

‘‘गली-गली में शोर है, ‘लछानेनेता चोर है’’

‘‘धोखेबाज ठजानेको, एक धक्का और दो’’

मतलब हर एक नारा नेता जी के नाम से अपनी सम्पूर्णता पाता है. नेता का नाम नारे में पूँछ की तरह न जुड़ा हो, तो समर्थक न तो गला फाड़ के चिल्ला सकते हैं, न ही विरोधी गरिया सकते हैं. केवल नेताशब्द जोड़ के यदि नारा लगाये जाते, तो यकीन मानिए मतदान बाद में होता, सामूहिक शवदाह पहले. Student Politics Satire Ashtosh Mishra

अभी भी आपको मेरी बात बकवास लग रही हो, तो कल की एक घटना सुनिए. नये नवेले नेता अखिलेश्वर प्रताप नारायण कुमार सिंह राठौर अपने नाम के चक्कर में चुनाव प्रचार के पहले दिन ही मात खा गये. जबकि वे हवन कराकर, ग्यारह पंडितों को पूड़ी-जलेबी का भोग लगवाकर तथा विजय मुहुर्त में अपने इष्ट देव को प्रणाम करके चुनाव प्रचार प्रारंभ किये थे. हुआ ये कि उनके लम्बे नाम (जिसे वे सम्मान से बड़ा नाम कहते थे) के कारण नारा लगाते समय उनके चेलों के मध्य आपसी सामंजस्य का घोर अभाव दिखा.

जब पहले समर्थक ने नारा दिया, ‘‘हमारा नेता कैसा हो… ’’,

तब दूसरे ने साथ दिया, ‘‘… अखिलेश्वर नेता जैसा हो.’’

तीसरा अपनी सुविधा के अनुसार चिल्लाया, ‘‘… प्रताप भईया जैसा हो.’’

चौथे की जबान से अनायास ही निकला, ‘‘… नारायण नेता जैसा हो.’’

पाँचवे उनके नाम के चौथे पड़ाव पर रूकते हुए बोला, ‘‘… कुमार सिंह जैसा हो.’’

छठा कहाँ पीछे रहने वाला था. वह नाम के अंतिम सिरे पर अपने को केन्द्रित करते हुए बल लगाकर नारा पूरा किया, ‘‘… राठौर साहब जैसा हो.’’

चुनाव प्रचार का पहला दिन और पहला नारा. अजीब मार-काट मच गई. नेता जी का अपना ही झुंड आपस में भिड़ गया. समर्थकों ने उनके नाम के हर शब्द को चाकू, तलवार, भाला, हथौड़ा, तमंचा और तोप बनाकर एक-दूसरे पर आक्रमण कर दिया. चेलों का तो कुछ नहीं बिगड़ा, लेकिन नाम बेचारा चुनाव मैदान में लहूलुहान हो गया. नेता जी पीछे मुड़कर चबा जाने वाली नजरों से चेलों को देखे. समर्थक सटक गये. दूसरा नारा लगा, ‘‘सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अखिलेश्वर नेता/प्रताप भईया/नारायण नेता/कुमार सिंह/राठौर साहब की पारी.’’ बात वहीं की वहीं रह गयी.

नेता जी समझ गये कि समस्या समर्थकों में नहीं, बल्कि उनके नाम में है. वे नारा बन्द करने का इशारा किये और बुझे मन से कन्वेसिंग का लोकार्पण करके अपने खास चेलों के साथ बरगद की छाया में इस समस्या के निदान हेतु बैठक शुरू करते हुए बोले, ‘‘भाइयों, पहले दिन ही गड़बड़ हो गया. नारे चुनाव प्रचार की आत्मा होते हैं और यहाँ आत्मा के साथ ही तुम लोग बलात्कार करने लगे हो. कोई अखिलेश्वर बोल रहा था, कोई प्रताप, कोई नारायण का जाप कर रहा था, तो कोई कुमार सिंह का. एक देवता तो आफीसियल लैंग्वेज में राठौर साहब का नारा लगा रहे थे …  ऐसे नहीं चल पाएगा. आप लोग यदि ऐसे ही नारे लगाते रहे, तो लगेगा कि एक नहीं पाँच लोग चुनाव लड़ रहे हैं. फिर तो मैं बर्बाद हो जाऊँगा. इसके लिये तो अलग से प्रचार करना पड़ेगा कि मैं ही वो बेवकूफानन्दन हूँ, जिसके खांची भर इतने सारे नाम है.’’ Student Politics Satire Ashtosh Mishra

‘‘कवनो बात नाही भईया. हिन्दू धर्म में तो पाँच को बहुते शुभ माना गया है. पाँच नाम लेने से बहुत होगा तो आपका नमवा पंचानन लगेगा, दशानन तो नहीं. टेंसन मत लीजिए. चुनाव आते-आते सब समझ जाएंगे कि आप ही पंचानन नेता हैं. जब रामायण में रीछ-भालू-बंदर, नर-पिशाच-गंधर्व-देव-राक्षस रावण को दशानन समझने में कोई त्रुटि नहीं किये, तो प्रभु राम की कृपा से यहाँ तो सब पढ़े-लिखे हैं. इनसे तो इस प्रकार की भूल होने की कोई गुंजाइश ही नहीं बचती. यूनिवर्सिटी है ये, मजाक थोड़े!’’ बुद्धिजीवी सहयोगी ने अपनी बात रखी.

‘‘यार! तुम्हारे जैसी अकल वाले दो-चार साथी और मिल जाये, तो केवल पाँच वोट मिलने से कोई माई का लाल नहीं रोक सकता… ’’

‘‘क्या हुआ भईया! इतना निराश काहे हो रहे हैं? हर काम के शुरू में कुछ गड़बड़-झाला हो जाता है. ऐसे घबड़ाएंगे, तो यज्ञ कैसे पूरा होगा?’’ गुंडे टाइप के चेले ने, जो सही मायने में विशुद्ध गुंडा ही था, बीच में टोका.

‘‘अरे भाई! पहले से ही पाँच बीघा लम्बा नाम लेकर घूम रहे हैं. अब ये इसमे पंचानन जोड़कर बगल वाले का भी एक बीघा कब्जा कराना चाहते हैं और तुम कह रहे हो क्या हुआ भईया!’’

‘‘ये तो और अच्छी बात है नेता जी. तब तो आपका नाम छह बीघे का हो जाएगा. नाम बड़ा करने के लिये ही तो लोग छात्र राजनीति में इन्ट्री लेते हैं. भगवान की दया से आपका नाम तो पहले से ही बड़ा है. चुनाव जीते या हारे, नाम में तो वृद्धि ही हो रही है. इससे सुखद बात और क्या हो सकती है!’’ गुंडा प्रसन्न होकर बोला.

‘‘घंटा हो जाएगा! स्साले, हम तुम्हारी मंशा समझ रहे हैं. तुम लम्बे नाम से पिंड छुड़ाकर पीछे से पंचानन नेता-पंचानन नेता चिल्लाना चाहते हो.’’

‘‘नेता जी, इस बेचारे पर काहे क्रोधित हो रहे हैं. दुनिया बड़े नाम के लिए मरी जा रही है और एक आप हैं, जो अपने बड़के नाम से ही परेशान हैं. हम तो उसे उत्तरोत्तर बढ़ाना चाहते हैं. अच्छे काम में भी आपको ऊँगली करना है, तो किसी और को अपने साथ रख लीजिए. हमसे किसी का बुरा नहीं हो पाएगा.’’ बुद्धिजीवी ने गुंडे का साथ दिया.

‘‘यार, तुम लोगों को बड़े नामऔर लम्बे नामका अंतर पता नहीं है, इसीलिए इतना बड़बड़ा रहे हो. कैसे-कैसे बेवकूफों से मेरा पाला पड़ा है… !’’ नेता जी बुदबुदाने लगे.

‘‘नेता, तुम जब से यूनिवर्सिटी में आये हो, इतना ही बड़ा नाम ढ़ो रहे हो. बड़े नाम से इतना दिक्कत था, तो घर से इतना बड़ा नाम उठाकर काहे लाये? हमने तो सलाह नहीं दिया था. क्यों भाइयों, आप लोग में से किसी ने इतना भारी-भरकम नाम साथ में लाने की राय-वाय तो नहीं दिया था?’’ मुँहलग्गा समर्थक नेता जी द्वारा सबको बेवकूफ कहने पर अपने तरीके से आपत्ति किया. Student Politics Satire Ashtosh Mishra

‘‘अब तुम लोगों को कौन समझाए कि हमारे देश में बच्चों को अपना रखने या बदलने की स्वतंत्रता ही कहाँ है? लड़कों के जन्म लेने से पहले ही दर्जन भर नाम तय हो जाते हैं. यदि लड़का पैदा हुआ, तो पहली कक्षा में नाम लिखाने तक नामों की लिस्ट स्कूल की दूरी से भी लम्बी होती जाती है. दुर्भाग्य से लड़की हो गयी, तो समझ जाओ कि लड़का पैदा होने तक नामों की संख्या इतनी हो जाती है कि उन्हें एक साथ मिला दिया जाए, तो राजधानी के दो चक्कर लग जाये. इस मामले में लड़कियों की स्थिति बड़ी अच्छी (दयनीय) है. उन बेचारियों को, जो कोई पहली बार किसी भी नाम से सांत्वना के तौर पर पुकार दें, वही नाम फाइनल हो जाता है… . मैं अपना नाम खुद थोड़े रखा हूँ. घर वाले जिस नाम को मेरी गर्दन में लपेट दिये, उसी को नौगज्जा पगड़ी की तरह ढ़ो रहा हूँ.’’

‘‘तो अपने घर वालों से ही जाकर पूछो न कि इतना बड़ा नाम क्यों रखे? जिसने गलती की उसी से समाधान भी पूछो. हमारा दिमाग काहे पका रहे हो?’’ कोने में चुपचाप बैठकर स्थिति का जाएजा ले रहे चौथे चेले ने वाजिब बात कही.

‘‘भाई एक आदमी मेरा नाम रखा होता, तो उससे मैं पक्का पूछता. पूरा खानदान मिलकर मेरे नाम का बेड़ा गर्क किया है. अब किस-किस से निपटूँ?’’

‘‘मतलब… ’’

‘‘मेरे दादा जी को अखिलेश्वर नाम पसंद था. कहते थे कि मेरा पोता बड़ा होकर पूरे संसार पर राज करेगा.बड़े पापा मुझे प्रतापी बनाना चाहते थे. पापा ने इक्कीस एकादशी के व्रत रखे, तब तीन बहनों के बाद मैं पैदा हुआ, सो वे नारायण नाम पर अड़ गये. और सिंह सरनेम तो सैकड़ों पीढ़ियों से बिना किसी रोक-टोक के लग ही रहा है.’’

‘‘सुकर है नेता जी, आपकी मम्मी और बहनों ने कोई नाम नहीं जोड़ा, नहीं तो चुनाव में केवल आपके नाम का ही एक पम्पलेट छपवाना पड़ता, जिसे घोषणा-पत्र के साथ स्टेपल करके बाँटा जाता. ये सब तो कुछ करते नहीं. ये झंझटियाह काम भी मुझे ही करना पड़ता.’’ कोने वाले चेले ने राहत की साँस लेते हुए कहा.

‘‘भाई, नाम तो वो सब भी डिसाइड की थी, लेकिन हमारे देश में महिलाओं की राय को सुनता ही कौन है? उन सबके अरमान धरे ही रह गये.’’

‘‘नेता जी, जब इतना भेद खोल दिये, तो ये भी बता दीजिए कि कुमार और राठौर किसकी कृपा की देन हैं?’’ गुंडे ने मामले की तह में जाने के लिए पूछा.

‘‘गाँव में एक नया-नया ट्रेंड चला था, सरनेम सिंहके साथ एक्सट्रा सरनेम राठौरलगाने का, क्योंकि पड़ोसी गाँव वालों ने चौहान लिखना शुरू कर दिया था. वे चौहान इसलिए लिखते थे, क्योंकि उनके पल्ली तरफ के गाँव वाले अपने को रघुवंशीकहकर सीना ताने चैड़े से घूम रहे थे. फिर हमारे गाँव वाले कहाँ बैकवर्ड रहते. इसलिए राठौर भी अंतिम सिरे पर जुड़ गया. रही बात कुमारकी तो दादा जी बताते हैं कि मेरे पापा के समय तक नाम के साथ कुमार नहीं लगता था.

कुमार का जमाना सत्तर-अस्सी के दशक में आया. कुमार को लाने वाले मास्टर थे और पालने वाले हेडमास्टर. उन दिनों प्राइमरी स्कूल के मास्टरों पर लड़कों के नेम और सरनेम के बीच कुमारअनिर्वाय रूप से जोड़ने और लड़कियों के नाम से पहले कुमारीलगाने का सनक सवार हुआ था. दादा जी तो यह भी बताते हैं कि एक मरखाह किस्म के हेड मास्साब से किसी ने अनुरोध किया कि मेरे बेटे के नाम में कुमार को मत घुसेड़िये’, तो उस हेड मास्साब ने यह कहते हुए कि लड़कों के नाम के आगे कुमार न लगाया जाए, तो वे छोटी पार्टी (आजकल की एलकेजी) में ही जवान हो जाते हैं और लड़कियों के नाम से पहले कुमारी न हो, तो वे गदहिया गोल (वर्ततान समय की नर्सरी) में ही शादी-शुदा लगती है’, बच्चे के साथ उस अभिवावक को भी तीन घंटे तक मुर्गा बनाये रखा. सो भाईयों, मेरा नाम अखिलेश्वर प्रताप नारायण कुमार सिंह राठौर एक तरह से पामो-मामो-तामो-गामो के न्यूनतम साझा कार्यक्रम की देन है.’’ Student Politics Satire Ashtosh Mishra

‘‘भईया, आपकी पूरी व्यथा तो समझ में आ गई, लेकिन ये नहीं बुझाया कि ये पामो-मामो-तामो-गामो क्या है?’’ कोने वाले चेले ने उत्सुकतावश पूछा.

‘‘स्साले, तुम्हारा कुछ नहीं हो सकता. तुम हमेशा घोघा के घोघा ही रहोगे. लड़कियों को ताड़ने की जगह कुछ समय अखबार भी पढ़ लिया करो. आजकल सारे अखबार रामो-बामो (राष्ट्रीय मोर्चा-बाम मोर्चा) के न्यूज से अटे पड़े हैं और तुमको पामो-मामो-तामो-गामो  (पापा मोर्चा-मास्टर मोर्चा-ताऊ मोर्चा-गाँव मोर्चा) का अर्थ तक नहीं पता. पामो-मामो-तामो-गामो वाले रामो-बामो वालो से भी अड़ियल हैं. जिस बात का खॅूटा गाड़ देते हैं, तो उसे भीम भी उसे उखाड़ नहीं सकते.’’

‘‘नेता जी, आपके खानदान वाले, गाँव वाले और स्कूल वालों ने मिलकर आपके साथ बड़ा अत्याचार किया. मेरा मतलब है आपके नाम के साथ. पूरा नाम बोलने में भी बेढ़ंग लगता है. हजार पेज की किताब रटना आसान है, बजाय आपके नाम के. खैर! दूसरों के कारनामों पर अपना सर फोड़ने से कोई लाभ होने वाला नहीं है. आगे का सोचिए! मेरी मानिए और अपना नाम बदलकर कोई छोटा-सा प्यारा नाम रख लीजिए.’’ बुद्धिजीवी ने सलाह दिया.

‘‘ये सम्भव नहीं है भाई! हमारे यहाँ गर्दन को छः इंच छोटा करने का रिवाज है, नाम छोटा करने का नहीं. घर वाले दिकिया (नाराज) जाएंगे और राशन-पानी बंद कर देंगे. सोचो फिर चुनाव लड़ने का खर्चा-पानी कहाँ से आएगा?’’

‘‘फिर तो हम बेरोजगार हो जाएंगे… ’’ कोने वाले चेले को अपना भविष्य अंधकारमय दिखने लगा.

‘‘दिल छोटा मत कर छोटे! तू अभी इस लाइन में नया है. तुझे पता नहीं है कि चुनाव के दौरान नेताओं का रथ पुष्पक विमान बन जाता है. कितने भी लोग बैठे, एक वेकेन्सी हमेशा खाली रहती है. नेता जी का राशन-पानी बंद होगा, तो किसी दूसरे नेता को पकड़ लिया जाएगा. नेता जी को भी साथ लेते चलेंगे. क्यों नेता जी, कैसा रहेगा?’’ गुंडे ने कोने वाले चेले को दिलासा दिया.

‘‘तुम लोग बकवास मत पेलो. मैं यहाँ चुनाव लड़ने आया हूँ, किसी के पीछे नारा लगाने नहीं. अखिलेश्वरबनकर मुझे दादा जी का सपना पूरा करना है.’’ नेता अपने नाम को याद करते हुए नाराज हो गया.

‘‘वो तो हमे भी पता है. लेकिन जब बड़े नाम से आपको दिक्कत है, तो उसे बदलना तो पड़ेगा ही.’’ गुंडे ने वही बात दुहरायी.

‘‘क्यों बदलना पड़ेगा? नेता जी मेरी बात मानिए. नाम जैसा है, जहाँ है, वैसा ही रहने दीजिए. बस एक उपनाम रख लीजिए. चुनाव में नारा उसी उपनाम के साथ लगाया जाएगा. बैलेट पेपर में उर्फके साथ उपनाम जुड़ जाएगा. किसी को आपके पहचान में कोई परेशानी नहीं होगी. आपको भी नहीं.’’ बुद्धिजीवी ने पुराने फार्मूले पर अमल करते हुए नया सुझाव पेश किया.

‘‘अब नया नाम कहाँ से लाये?’’ कुछ सोचते हुए नेता ने पूछा.

‘‘पंचानन नेेता ही रख लीजिए. अखिलेश्वर प्रताप नारायण कुमार सिंह राठौर उर्फ पंचानन नेता…  क्या शानदार लग रहा है! पंचानन के पीछे लाजिक भी है. पूरे नाम का सारगर्भित संक्षेप. घर वाले भी खुश, आप भी खुश. क्यों भाइयों ?’’

‘‘सुपर… ’’

‘‘अति सुन्दर… ’’

‘‘वाह वा! क्या जानदार नाम है, पंचानन नेता!’’

‘‘जिय रजा! का दिमाग भिड़ाये गुरु! ऐही दिन खातिर त तोहके नेता अपने साथ रखले हवन.’’

’’तो साथियों, फाइनल रहा. नेता जी अपने बड़े नाम को और बड़ा करके बड़े नाम के झंझट से छुटकारा पा गये. बधाई हो नेता.’’

‘‘तो इसी बात पर बोलो, पंचानन नेता जिंदाबाद, जिंदाबाद-जिंदाबाद.’’

‘‘बोलो नमः पार्वती पतये हर हर महादेव…  हर हर महादेव… .‘‘

नेता जी भी सबके साथ हर हर महादेवका उच्चारण करके आम सहमति से अपने उपनाम को मान्यता प्रदान कर दिये.

  • आशुतोष मिश्रा

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बलिया जिले के ग्राम गरया में जन्मे आशुतोष मिश्रा उच्चतर न्यायिक सेवा में अधिकारी हैं. उनका पहला उपन्यास ‘राजनैत’ काफी चर्चित रहा है.

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