उत्तराखंड में पिछले कई दिन से शिक्षा व्यवस्था का विरोध किया जा रहा है. छोटे-छोटे गांव में शिक्षा व्यवस्था को लेकर विरोध प्रदर्शन किये जा रहे हैं. सरकार ने इन विरोध प्रदर्शन को सिरे से खारिज कर दिया है.
जागरण में छपी एक रिपोर्ट से विरोध की बात को समझा जा सकता है और उत्तराखंड में शिक्षा व्यवस्था को समझा भी जा सकता है.
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि 2521 प्राइमरी स्कूल सिर्फ एक शिक्षक के भरोसे चल रहे हैं. उत्तराखंड में कुल प्राइमरी स्कूलों में एक चौथाई स्कूल ऐसे हैं जिनमें बच्चों की संख्या 10 से कम है. आकड़ों में यह संख्या 2847 है.
सरकारी 11690 प्राइमरी स्कूलों में 2521 को सिर्फ एक-एक शिक्षक के जरिए चलाया जा रहा है. सबसे ज्यादा 435 एकल शिक्षक विद्यालय अल्मोड़ा जिले में हैं. इसके बाद 335 टिहरी, 296 चमोली, 235 पिथौरागढ़, 230 पौड़ी, 226 नैनीताल और 211 बागेश्वर जिले में हैं. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि मैदानी इलाके वाले जिलों में यह संख्या लगभग नहीं के बराबर है.
पहाड़ी जिलों में ही सबसे ज्यादा ऐसे स्कूल हैं जिनमें बच्चों की संख्या दो-चार है. उधमसिंह नगर और हरिद्वार जिले में एक दो बच्चों वाला एक भी स्कूल नहीं है.
राज्य में नैनीताल जिले में 54 स्कूल ऐसे हैं जिसमें कोई भी बच्चा नहीं है. यह संख्या पूरे राज्य में सबसे ज्यादा है. पूरे राज्य में 71 स्कूल ऐसे हैं जहां कोई भी नहीं पढ़ता. पूरे राज्य में सिर्फ एक या दो छात्रसंख्या वाले विद्यालयों की संख्या 264 है.
जाहिर है जब राज्य में शिक्षा व्यवस्था के नाम पर सरकार केवल खानापूर्ति करेगी तो लोग अपने बच्चे सरकारी स्कूल में डालने से बचने का ही प्रयास करेंगे. यहां गौर करने वाली बात यह है कि पलायन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बारबार कहा है कि शिक्षा और स्वास्थ्य राज्य में पलायन के मुख्य कारण हैं.
-काफल ट्री डेस्क
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