हर कवि की एक मूल संवेदना होती है जिसके इर्द-गिर्द उसके तमाम अनुभव सक्रिय रहते हैं. इस तरह देखें तो वीरेन के काव्य व्यक्तित्व की बुनियादी भावना प्रेम है. ऐसा प्रेम किसी भी अमानुषिकता और अन्याय का प्रतिरोध करता है और उन्मुक्ति के संघर्षों की ओर ले जाता है. ऐसे निर्मम समय में जब समाज के लोग ज्यादातर घृणा कर रहे हो और प्रेम करना भूल रहे हो, मनुष्य के प्रति प्रेम की पुनर्प्रतिष्ठा ही सच्चे कवि का सरोकार हो सकता है – मंगलेश डबराल
प्रेम कविता
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प्यारी, बड़े मीठे लगते हैं मुझे तेरे बोल !
अटपटे और ऊल-जुलूल
बेसर-पैर कहाँ से कहाँ तेरे बोल !
कभी पहुँच जाती है अपने बचपन में
जामुन की रपटन-भरी डालों पर
कूदती हुई फल झाड़ती
ताड़का की तरह गुत्थम-गुत्था अपने भाई से
कभी सोचती है अपने बच्चे को
भाँति-भाँति की पोशाकों में
मुदित होती है
हाई स्कूल में होमसाइंस थी
महीने में जो कहीं देख लीं तीन फ़िल्में तो धन्य ,
प्यारी
गुस्सा होती है तो जताती है अपना थक जाना
फूले मुँह से उसाँसे छोड़ती है फू-फू
कभी-कभी बताती है बच्चा पैदा करना कोई हँसी-खेल नहीं
आदमी लोग को क्या पता
गर्व और लाड़ और भय से चौड़ी करती ऑंखें
बिना मुझे छोटा बनाए हल्का-सा शर्मिन्दा कर देती है
प्यारी
दोपहर बाद अचानक उसे देखा है मैंने
कई बार चूड़ी समेत कलाई को माथे पर
अलसाए
छुप कर लेटे हुए जाने क्या सोचती है
शोक की लौ जैसी एकाग्र
यों कई शताब्दियों से पृथ्वी की सारी थकान से भरी
मेरी प्यारी !
वीरेन डंगवाल (1947-2015)
वीरेन डंगवाल (5 अगस्त 1947 – 27 सितम्बर 2014) समकालीन हिन्दी कविता के सबसे लोकप्रिय कवियों में गिने जाते हैं. साहित्य अकादेमी पुरस्कार विजेता इस कवि के तीन कविता संग्रह – ‘इसी दुनिया में’, ‘दुश्चक्र में सृष्टा’ और ‘स्याही ताल’ प्रकाशित हुए. हाल ही में उनकी सम्पूर्ण कविताएँ नवारुण प्रकाशन से छपकर आई हैं.
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