पहाड़ में परिवार में एक नया सदस्य आने की खबर ख़ुशी के साथ डर का माहौल बनाती है. न जाने किस मौके पर ‘जल्दी रेफर करो, जच्चा-बच्चा की जान खतरे में है’ जैसी भयावह पंक्ति अस्पताल आपसे आसानी से कह दे. शायद ही ऐसा कोई हफ्ता बीतता होगा जब हम उत्तराखंड में स्वास्थ्य बदहाली से जुड़ी ख़बर अख़बार में न पढ़ते हों. स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर पहाड़ों में बस भवन खड़े कर दिये गये है.
(Poor Health Infrastructure of Uttarakhand)
बीते दिन बागेश्वर की एक गर्भवती महिला की मृत्यु हो गयी. पहाड़ के दो अस्पतालों से रेफर होने के बाद, पहाड़ के तीसरे अस्पताल में 28 बरस की रीता सजवाण अपने पीछे चार दिन का बेटा छोड़ दुनिया से चली गयी. बीते 24 साल में सुरक्षित प्रसव जैसी मूलभूत सुविधा तक हम हासिल नहीं कर सके हैं.
इसके बावजूद उत्तराखंड की राजनीति में सड़क सुरक्षा कभी मुद्दा ही नहीं बन पाया है. पहाड़ी राज्य की संकल्पना के साथ 24 साल पहले बना उत्तराखंड आज भी उन्हीं समस्याओं से घिरा है जिससे 24 साल पहले घिरा था. पहाड़ के गाँव बीमार हैं पर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
(Poor Health Infrastructure of Uttarakhand)
सीमांत और दुर्गम क्षेत्रों के आस-पास स्थिति चिकित्सा इकाइयों (प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य के केंद्रों) में पर्याप्त सुविधाओं के न होने के कारण मरीजों की बड़ी संख्या सीधे ही उच्च चिकित्सा केंद्रों जैसे उपजिला चिकित्सालय या जिला चिकित्सालय का रुख करती है, या अधिकांशतः प्राथमिक/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से उच्च केंद्रों को रेफर कर दी जाती है.
प्रसूता ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया, दुर्घटना में घायल इलाज के लिए रेफर रास्ते मे ही सांस उखड़ गयी, घास काटने गई महिला चट्टान से गिर गई ईलाज के अभाव में मृत्यु – ऐसी कुछ खबरें हैं जो आये दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं. क्या ऐसे ही रहेगी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था?
(Poor Health Infrastructure of Uttarakhand)
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