गैरीगुरु की पालिटिकल इकानोमी : अथ चुनाव प्रसंग- 2
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गैरीगुरु की अंतरात्मा सांझ ढलते ही फड़फड़ेट करने लगी थी. गर्म हवा के थपेड़ों से बाहर ठंडी बहार चलने लगी थी. संध्या पूजा का बखत हो गया था. पता नहीं, कहां से, कौओं का झुंड आ गया था. लगे थे, कांव-कांव की कुकाट में. साले बकतरी गए हैं. जो जितना बोले दे उतना बड़ा हीरो. अपने झबरू गुलदाढू पर उन्हें बड़ा गुस्सा आया. पहले तो भोंक भोंक कान फोड़ इसने मुहल्ले भर के पड़ोसियों का उनके घर के सामने से गुजरना दूभर कर दिया था. पर अचानक ही इसने अपनी नीति बदल दी. अब भौंकता नहीं काटता ज्यादा है. पड़ोसी पुलिस आरक्षी के टखने तक में दांत गड़ा दिया. वह तो उनका सुपुत्र उनसे पढ़ क्लास पलटता था नहीं तो सलाखों के भीतर बंद कर देता, वो हरियाणा का जट्ट.तब से उन्होंने घर की नेम प्लेट के बगल में लाल पेंट कर तख्ती लटकाई, ‘गुलदाढू से सावधान भोंकता कम काटता ज्यादा है’. नियम कानून टंगे रहे तो आदमी सेफ हो जाता है. अभी 2014 की बात है जब से उनके साथ बैठे इसने टीवी देखना शुरू किया. तो उसके निरंतर बढ़ते कुकाट-भुकाट के प्रदर्शन प्रभाव से इसका भोंकने का मूल गुण भी खत्म जींस डी.एन.ए. में धपड़ चौथ. बस इतना ही है कि उन्हें देख कर दुम जरूर हिलाता है. आपके अस्तित्व के लिए यह बड़ी खुराक है होम्योपैथी जैसी कि कोई तो दुम हिलाये. बाकियों ने तो देश समूची इकोनोमी रिलीजन हिंदू-मुसल सब हिला-हिला हाजमा दुरुस्त रखने जैसा पंचासव पी रखा है.फैलाई रखते हैं यहां-वहां…
‘फुक साssले को’. यह उनके चरम मित्र प्रोफेसर डीएन का अचूक मंत्र था. चडुमss कर चांदी के गिलास में ढली बूढ़े साधु से निसृत रम मृतसंजीवनी सुरा से बढ़ सिद्ध सोमरस का दर्जा पा जाती है. देवता भी इसकी निरंतरता से प्रभावशाली बलशाली होते रहे हैं आज तलक. यह शराब थोड़ी है जो तीन पार्टियों के विलय गठजोड़ से आसवित हो. सो इसके आचमन से असंतुलित विकास के झटकों वाले समस्त तनाव- दबाव- कसाव से त्राण ले गैरीगुरु ‘फुकसाले को’ के मंत्र का जाप करते अपने ग्राउंड फ्लोर से ऊपर जाती सीढ़ियां चढ़ने लगे. विकास भी सीढ़ी की तरह होता है कदम कदम चढ़ाए जा जन गण में हवा बनाए जा.
दुमंजिले उनकी अति व्यस्त लाइब्रेरी थी. जिसमें बहुरंगी पतली- छरहरी- सुडौल और विशाल पत्र-पत्रिकाओं को भी ऐसे गुद्द करीने से रखा होता कि दर्शन की बात उठते ही सर्वपल्ली राधाकृष्णन नमूदार होते तो वैराग्य भाव हेतु गरुड़ पुराण भी. मूड ठीक करने वाली रैक जरा ऊंचाई पर थी जहां वर्षों से सहेजी आजाद लोक और पुष्पी मनोहर कहानियों के साथ इलाहाबाद से छपी माया भी थी तो वेंकटेश्वर प्रेस की महायान साधना भी. वहीं कार्ल मार्क्स की दास कैपिटल और सरप्लस वैल्यू के पीछे सुरक्षित रहता है उनका बूढ़ा साधु. उनकी हस्तिनी जीवन संगिनी आजकल जगराते में अपने मायके गई हैं. मंडी में विशाल आड़त के स्वामी हैं उनके सौरज्यू.जिन्होंने उनकी प्रतिभा ऐसी पहचानी कि नौ बहिनों के बाद हुए गिरिजा नंदन को अपनी सबल सुडौल कन्या का हाथ दे दिया कि जिसने नवदुर्गाओं का संरक्षण पाया है वह उनकी बकाड बिटिया की सार संभाल में समर्थ और दक्ष होगा ही. नौ बड़ी बहनों एवं एकल साक्षात काली लछमी की गठरी वाली बड़बोली बीवी की छाया में संरक्षण की नीति के अधीन वह स्त्री सशक्तिकरण व महिला अधिकारों के पोर-पोर सूंघने, जिद्द से बात मनाने और जिहवा की मीठी चिकनी चाशनी की लटिपटि लोच से हर बिगड़ी संभालने में दक्ष बन गए.सिमोन दि बुआ की सेकेंड सेक्स की तर्ज पर तलाक बलात्कार यौनाचार हलाला की क्राइम रिपोर्टिंग कर सावधान इंडिया से अधिक टीआरपी बटोरी जाने वाली सत्यकथाएं भी उन्होंने तैयार कर ली थी. जिसमें मनोहर श्याम जोशी की पटकथा लेखन पर लिखी किताब के हर गुर उन्होंने ठूंस दिये थे. बस इस पंद्रह अगस्त को प्रियंका के हाथ विमोचन करने का लक्ष्य भी नियत है.
अपनी उपलब्धियों पर गर्वित हो मार्क्स के दर्शन, वर्ग संघर्ष, अतिरेक मूल्य और राजनीति के गठजोड़ पर मनन करते उन्होंने पहली घूंट लंबी खींची. अब क्या गलत कहा मार्क्स ने? वर्ग विभेद करो और राज करो. अतिरेक मूल्य खुद-ब-खुद सत्ता के पिछवाड़े झांकने लगेगा. अब इसके गलियारे को ही देख लो. कुल जमा 521 सांसदों में 83% के पास करोड़ों का अतिरेक मूल्य है. 33% तो हरफनमौला हैं हर मामले में दक्ष. जीवन मरण तो ईश्वर के हाथ है तो कुल जमा 106 हत्या, हत्या के प्रयास, अपहरण और औरतों के खिलाफ जादती की लपेट में फंसे पड़े हैं. दस ऐसे सूरमा भोपाली भी हैं, जिन पर जान लेने के मुकदमे खिंच रहे हैं. तो 14 ने हिंदू- मुस्लिम- सिख- इसाई संतुलन बिगाड़ा. इसको लड़ाया, उसको पछाड़ा. आपने हमने क्या कुछ उखाड़ा. उल्टे उसे आसन पर बैठा अब टीवी पर लगे हैं देखने हुड़दंग. शांत रहिए, बैठ जाइए के बाद भी धमाचौकड़ी का लाइव टेलीकास्ट. इनके पास आरोग्यवाहिनी कैपिटल है महाराज. दास तो आप हैं फटीचर.
आप पर राज करने हुंकारने गरजने हाहाकार मचा उपलब्धियों का डिजिटल प्रसारण करने वालों के एवरेज ऐसेट 14.72 करोड़ के हैं. कोई कंगले भूखे नंगे थक हारकर सुसाइड का सुसाट करने वाले नहीं च्यापे हैं आपने. खाते- -बोलते- बतियाते हर प्रॉब्लम को उड़न छू कर आपको बोतियाते कुल जमा 521 में 32 तो अपनी पचास करोड़ रुपये से अधिक की दुकानों, मकानों, स्वर्ण ईटों, कल कारखानों की चौकीदारी कर रहे.सिर्फ दो ही ऐसे हैं जो बेचारे पांच लाख से कम की मक्खी उड़ा रहे हैं. अब कहते रहें अमर्त्य सेन अपनी किताब ’भारत और उसके विरोधाभास’ में अपने चेले ज्यां द्रेज के साथ सुर मिला के कि 2014 के बाद इस देश ने जो उछाल लगाई है उसकी दिशा ही गलत है. अरे सीधे अंतरिक्ष में मार कर सालों से डी आर.डी.ओ. की मेहनत के करिश्मे का जिम्मा अपने मस्तक सुशोभित लिया और आप हैं सेन साहिब, जो अस्सी पार कर अठिया गए हो. कहते हो कि तेजी से बढ़ती इकोनामी में हम गलत डायरेक्शन की ओर जा रहे हैं. यहां ब्रह्मांड भेद दिया और आप हो कि कहे जा रहे हो कि सरकार असमानता और कास्ट सिस्टम के मुद्दे से भटक गई है.यहां रातों-रात दुश्मन का गढ़ भेदने और आसमान छूने का जयघोष हो रहा और आपको फिक्र हो रही अपने हाथ से गू मूत उठा और सीवर सफाई कर पेट पालने वालों की. भूल गए बाबू मोशाय कि जिस देश का प्रधानमंत्री खुद हाथ में झाड़ू उठा करीने से फैलाया कचरा बुहारता फिरता हो, स्वच्छ भारत के लिए सफाई के अरबों-खरबों खर्च के विज्ञापनों से आपकी आंखों का काला मोतिया कुतर देता हो, वह अपने घर का कूड़ा पड़ोसी के आंगन में डालने जैसी नियत का तो है नहीं. और तो और राजधानी में राज कर रहे आपके मफलर स्वेटर सिंगुणुवे का चुनाव चिन्ह ही झाड़ू नमूदार हो, वहां इन्इक्वालिटी?अब करोड़ों लोगों का देश है भय्या. अपनी भेल खुद ही सौंजते होंगे तो गू से छलकते कनस्तर उठाने की लेबर फोर्स क्या मलेशिया ताइवान से चीयर्स लौंडे बुला इम्पोर्ट करोगे? सीवर की सफाई में दम घुटने से मर खप रहे दम तोड़ रहे लोग तो बड़े याद हैं ! किन्तू-परन्तू जो करोड़ों शौचालय गांव-गांव खुलवा दिए और हर बस स्टेशन के पास ‘पांच में मूतो’, दस में हगो और बीस में नहा धो लो’ के बोर्ड च्यांप दिए वो कुच्छ नहीं हुआ ? और तो और ‘टायलेट एक प्रेमकथा’ पर गदबदाती सुगंधित रोमांटिक जिद्दी बाला और उसके दिशा मैदान को समर्पित अड़ियल हीरो के शौर्य वाली फिल्म भी दिखा दी. सो देखो भाई अमर्त्य सेन और गुरुघंटाल जाग जाओ या यहां से भाग जाओ!
तुम तो विदेश से कितनी इकोनोमिक्स के भवसागर में तरंगित हो आ पड़े. पर ‘शाइनिंग इंडिया’ वाले ‘अतुल्य भारत’ के ‘मेक इन इंडिया’ का ककहरा रटना तुम्हारे बस का नहीं. अजीब अहमक हो यार. अपनी पम्परागत ड्रेस त्याग खादी का कुरता पजामा पहन झोला लटका लिया. चलो माना, अपना देश छोड़ा नई दिल्ली के बड़े प्रोजेक्ट छोड़े, बिहार में बिस्तर बिछा, गुरुकुल में पढ़ाने की बात भी सही ठैरी. पर ठीक चुनावों के टाइम वनवासियों से क्या वार्ता करने की सूझ गयी? वो भी तब जब उन्हें एकतरफ जंगलों से खदेड़ने की तैयारी हो चुकी है और अब उन पर बंदूक तानने का फरमान भी जारी होने वाला है बल. ‘हालाते हिंदुस्तान’ में उस क्रांति के पुरोधा सफ़दर हाशमी को भूल गये. जो ‘राजा का बाजा बजाते’ और ‘ अलीगढ़ का ताला’ खोलने के चक्कर में नुक्कड़ नाटक करते भीड़ द्वारा च्यांप दिया गया था. तुम भी एक तरफ मनरेगा के मसविदे को तैयार कर थाली में परोसते हो फिर ‘ आयुष्मान भारत’ जेसी खुशहाल योजना की आलू- चना करते हो कि कुल जमा खर्च 2000 करोड़ में एक आम औसत के पल्ले साल में बीस रुपये का इलाज होगा. यहां तो लोग मुफ्त इलाज और हेल्थ कार्ड बनने की बात सुनते ही चंगे हो जाते हैं. स्वास्थ्य बीमा की खबर पढ़कर तो जहां कहो जिसका कहो बटन दबा देंगे. अब पचास करोड़ लोगों की बात वो भी अमेरिकी स्टाइल के इंश्योरेंस की? बीमा कंपनियों की जो पौ बारह होगी- यह क्यों नहीं सोच रहे महाराज कि आम आदमी के बूते इतना बड़ा कॉरपोरेट सेक्टर फल-फूल गया.अडानी जैसे कितनों का तेल भी पिर गया. जियो न जियो की पुकार हो गयी. कितने ग्यानी ध्यानी अजब गजब भेसधारी अपने तंतर- मंतरों से पूंजी सुख के सामने कामनापूर्ति के समस्त प्रयोजन सिद्ध कर गए. मारण- मोहन-वशीकरण के उच्चाटन हेतु अब कई भारी सुरक्षा में सरकारी छत्रछाया पा चुके. कोई अभी लंगूर-गूणी की तरह उछल- शिल्पा कैटरीना के साथ नाच अपने सर्व सिद्ध आसनों से नासूर भंगदर तुरंत पतन और ब्लड प्रेशर का मुफ्त इलाज करते फिर रहे.मल्टीनेशनल को टक्कर दे हर माल बनाने की प्रवीणता और बेचने की कुशलता दिखा रहे. स्वदेशी फैक्टर में कितनी ताकत है यह जता रहे. ऐसे में ग्यानी ध्यानी करते हैं तंतर- मंतर- जंतर. अपनी लप-लप जिह्वा के त्राटक से. देह की अनंत लोच वाली पूर्ति को चौरासी आसनों से सिद्धकर तुम्हारे चक्करों में अखंड बेड़ियां पहन सलाखों की शीतल छाया में इसे कहते हैं प्रकट अधिमान सिंद्धांत का सिद्ध अवलोकन.
असंख्य वासनाओं की आपूर्ति के लिए कुर्सी पर अखंड आसन जमाए रखने की वक्र मांग लोच चेष्टा में अपनी साख प्रतिष्ठा को पूंजी से अरब खरब करने की शुभ मुहूर्त बेला है यह. बकैतों पूरी मंडली पूरे महीने और कुछ दिन पल प्रतिपल क्रोनी कैपिटल के भिक्षुकों का मेकअप किए अवतरित होगी. ये ‘चार्वाक’ के दर्शन से अनुप्रेरित हो हर लोकलुभावन घोषणा नारे का नखलिस्तान रच रहीं. जार्जेट की साड़ी पहन गेहूं काट रहीं. कभी 6000 तो कभी 72000 की विनियोग का संकल्प ले रहीं. ऐतिहासिक अवलोकन में इन्हीं के बबा बुबुओं ने विश्व बैंक के आगे झोले फैला नौले-धौरे सोते सुखा, सरिताओं में हग मूत ऑर्गेनिक स्वजल की टोंटी चुआई थी टप टप. व्यापार में अंटागफील होने पर मुद्रा कोष से डॉलर- एस.डी.आर का मानसून हर बार थोड़ी-बहुत नाक कटा दोस्ती निभा ही जाता है. बाकी उर्जा रोशनी के लिए शहर-तालाब-झील-तलैया किसान जंगल मंदिर खेत खलिहान डूबा जापानी बैंक को क्रेडिट से पटा तो मनभावन घोषणाओं की बकैती के लिए रिजर्व बैंक को सटा देश की हर नामधारी संस्था की चुटिया कटा. वित्त रहे घाटे में कट कटा राजकोष डूबे पूंजी सरके तभी जागेगा सर्वहारा फट फटा. बस कैपिटल को दास बना. चुनाव में मार्क्स बढ़ा. ढ्योर शंख का ढोल बजा अटपटा. फुssक साले को !
लो ये मोबाइल बजा. गैरीगुरु की कलम सकुच सिहम ठिठकी. उनके लाटे चेले ‘ हिमाला के तांडव’अखबाल के एडिटल का फोन था, ‘ गुलुज्जी. आज धुंआधाल प्रवचन से काकलोच पाल्टी का उद्धाल करना है आपने. भुलबे गए का? पाल्टी के डिनल का टैम होई गयां. काल ले के आ गया मैं, दलवाजे में, आ जाओ ना. गुलदालू बांध रक्खा ना?
(जारी)
जीवन भर उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कुल महाविद्यालयों में अर्थशास्त्र की प्राध्यापकी करते रहे प्रोफेसर मृगेश पाण्डे फिलहाल सेवानिवृत्ति के उपरान्त हल्द्वानी में रहते हैं. अर्थशास्त्र के अतिरिक्त फोटोग्राफी, साहसिक पर्यटन, भाषा-साहित्य, रंगमंच, सिनेमा, इतिहास और लोक पर विषदअधिकार रखने वाले मृगेश पाण्डे काफल ट्री के लिए नियमित लेखन करेंगे.
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