कला साहित्य

मुझे अच्छे लगते हैं पहाड़ : कुमार कृष्ण

मुझे अच्छे लगते हैं पहाड़
इसलिए नहीं कि पहाड़ पर होते हैं सेब
पहाड़ पर होती है बर्फ
या फिर मैं पैदा हुआ पहाड़ पर

पहाड़ पर होते हैं बेशुमार नदियों के घर
पहाड़ पर होती हैं आग की गुफाएँ

सेब की खुशबू
कम्बल की गरमाहट
पिता की पीठ
सभी कुछ एक साथ है पहाड़

सागर का सपना है पहाड़
पहाड़ घड़ों में छुपी मनुष्य की प्यास है

पहाड़ सूरज के खिलाफ लड़ने वाला
हरी वर्दी वाला अकेला सिपाही है
वह करता है विषपान सुबह से शाम तक
फिर भी बाँटता है ज़िन्दगी के अनगिनत सपने

पहाड़ आग और पानी
राजा और रानी दोनों एक साथ है

ज़मीन पर ज़िन्दगी की
नंगी इमारत है पहाड़
पृथ्वी की खूबसूरत शरारत है पहाड़.

इसे भी पढ़ें : एक बुरूंश कहीं खिलता है

कविता : नाक के पहाड़ से

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

11 hours ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

12 hours ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

5 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago

कहानी : फर्क

राकेश ने बस स्टेशन पहुँच कर टिकट काउंटर से टिकट लिया, हालाँकि टिकट लेने में…

1 week ago