पिथौरागढ़ जिला पिछले कुछ समय से चर्चा का विषय बना हुआ है, मुद्दा है शिक्षकों और पुस्तकों की मांग करते महाविद्यालय के युवा पर शिक्षकों और पुस्तकों की समस्या केवल पिथौरागढ़ महाविद्यालय की ही समस्या नहीं है. शिक्षक, पुस्तक और स्वास्थ सेवाओं का न होना पहाड़ में समस्याओं का पहाड़ होना है.
पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय से 150 किलोमीटर दूर होकरा गांव है, जो मुनस्यारी तहसील में स्थित है और यहां के 80 से ज्यादा बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं पिछले 6 दिनों से अन्न त्याग कर अनशन पर बैठे हैं. इनकी मांगें हैं कि स्थानीय विद्यालय में शिक्षकों की नियुक्ति की जाए, गांव में संचार सुविधा को दुरुस्त किया जाए और गांव की सड़क को वाहन चलने लायक बनाया जाए.
स्थानीय छात्र हिमांशु मेहता कहते हैं कि
होकरा के साथ साथ 2 अन्य ग्राम पंचायत है गौला और खोयम इन तीनों ग्राम पंचायतों में 450 परिवार निवास करते है. लगभग सभी की आजीविका का एकमात्र साधन कृषि है. तीनों ग्राम पंचायतों के छात्र-छात्राओं के लिए शहीद गोविंद सिंह राजकीय इंटर कॉलेज है जिसमें एक भी प्रवक्ता मौजूद नही है गांव के ही युवा अपने स्तर से विद्यार्थियों को पिछले कई वर्षों से पढ़ा रहे है.
उनके इस बयान से स्पष्ट समझा जा सकता है कि इतने बड़े क्षेत्र के लिए बने विद्यालय में ही अगर एक भी प्रवक्ता नहीं है तो छोटे से गांवों के विद्यालयों की स्थिति क्या होगी जिनके लिए कोई आवाज तक उठाने वाला नहीं है.
बात की बढ़ाते हुए हिमांशु कहते है कि गांव में उचित स्वास्थ्य सुविधा देने हेतु डॉक्टर, ए.एन.एम. किसी की भी नियुक्ति होकरा में नही हुई है. इतनी बड़ी आबादी वाला गांव होने के बाद भी गांव में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, संचार क्रांति के इस युग में भी होकरा गांव के लोग दुनिया से कटे हुए हैं और गांव के लोग अपने बाहर पढ़ने वाले बच्चों व अपने गांव से बाहर आजीविका कमाने वालों से महीनों महीनों तक कोई सम्पर्क नही कर सकते.
गांव के ही एक अन्य युवा छात्र प्रह्लाद मेहता जो आंदोलन से जुड़ें हुए हैं फ़ोन के माध्यम से बताते हैं कि
आमरण अनशन को 6 दिन हो गए हैं पर अभी तक कोई कार्यवाही होती नहीं दिख रही. आंदोलन की खबरें देने के लिए भी हमको 50 किलोमीटर दूर नाचनी कस्बे में आकर पत्रकारों को सूचित करना पड़ रहा है और यहीं से गांव के जो लोग अन्य शहरों में बसे हुए हैं और आमरण अनशन में बैठे अपने परिजनों के प्रति चिंतित हैं उनसे बात हो पा रही है.
पिथौरागढ़ जिला मुख्यालय तक भी इस आंदोलन की खबरें बड़ी मुश्किल से पहुंच रहीं हैं, अधिकतर जानकारी गांव के बाहर के उन युवाओं के माध्यम से पहुँच रहीं हैं, जो अपने परिजनों से आंदोलन की जानकारी लेकर सोशियल मिडिया में उसको लिख रहे हैं.
ऐसी ही एक फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि होकरा गांव के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के अंतर्गत जो सड़क पहुँचाई गयी थी, उसकी हालत इनकी खराब हो गयी है कि वाहन चलना तो दूर की बात, उसमें पैदल चलना भी जान जोखिम में डालने का काम हो रहा है.
मांगों को लेकर पहले आवाज उठाये जाने के संदर्भ में हिमांशु कहते हैं कि
समस्याओं के समाधान हेतु तीनों ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों का शिष्टमंडल 2 बार मुख्यमंत्री से मिल चुका है कईं बार सांसद महोदय से फोन में वार्ता हो चुकी है. जिलाधिकारी जी के साथ कई बार पत्राचार किया जा चुका है परंतु शासन प्रशासन ने किसी भी स्तर पर ग्रामीणों की समस्याओं पर कोई दिलचस्पी नही दिखाई. पिछले महीने जिलाधिकारी जी को ग्रामीणों ने समस्याओं के समाधान हेतु एक माह का समय दिया परन्तु कोई समाधान न होने पर ग्रामीणों का धैर्य जवाब दे बैठा और गांव के पंचायत घर में ही पिछले 6 दिनों से 15 से 75 की आयु के बीच के 83 बच्चे, वृद्ध और महिलाएं अनिश्चितकाल के लिए अनशन पर बैठे हैं.
शिक्षा और पलायन को जोड़ते हुए हिमांशु मेहता का कहना है कि शिक्षकों के अभाव के कारण ग्राम पंचायत से प्रतिवर्ष 10-15 परिवार जिला मुख्यालय या अन्य शहरों को पलायन करने को मजबूर हो जाते हैं. वह कहते हैं कि गांव में शिक्षक न होने के कारण ही उन्हें जिला मुख्यालय पिथौरागढ़ आकर विद्यालयी शिक्षा प्राप्त करनी पड़ी.
बड़ी विडंबना की बात है कि पिछले 6 दिनों से शिक्षा, स्वास्थ और सड़क जैसी सुविधाओं के लिए 83 लोग आमरण अनशन पर बैठे हैं और शासन स्तर की तो छोड़िये प्रशासन स्तर पर भी जिलाधिकारी न वहाँ जाने तक कि जहमत नहीं उठायी है और न ही इस मुद्दे पर कोई प्रतिक्रिया दी है.
शिक्षक पुस्तक आंदोलन के बाद से लगातार प्रदेश भर में माध्यमिक शिक्षा और उच्च शिक्षा को लेकर हो रहे आंदोलन सरकार की शिक्षा के प्रति नीति और हवाई बातों की पोल खोल रहे हैं. प्रदेश के अधिकांश विद्यालयों और महाविद्यालयों में शिक्षकों का भारी अभाव होने के बाद भी सरकार पूरी बेशर्मी के साथ मुस्कुरा रही है.
पिथौरागढ़ जिला प्रशासन का रवैय्या भी सवालों के घेरे में है कि आखिर राष्ट्रीय राजमार्ग के 4 दिन बंद होने से लेकर, शिक्षक पुस्तक और होकरा के आंदोलन पर वो टाल मटोल की स्थिति में दिख रहा है.
इतने बड़े गांव में शिक्षक, सड़क और संचार की मांगों को लेकर जब पिछले 6 दिनों से पूरा गांव अनशन पर बैठा हो और शासन का अभी तक इस पर ध्यान न गया हो तो इसी से त्रिवेंद्र सरकार की पहाड़ के प्रति नीतियों और पलायन के नाम पर घड़ियाली आंसुओं को समझा जा सकता है.
पिथौरागढ़ से शिवम पाण्डेय की रपट.
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