पिथौरागढ़ शिक्षक-पुस्तक आन्दोलन के समर्थन में कल दिल्ली के जंतर मंतर पर एक मार्च निकाला गया. आज पिथौरागढ़ में हो रहे शिक्षक-पुस्तक आन्दोलन का आज 29वां दिन है. आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर कैसे यह कॉलेज पिथौरागढ़ के लोगों ने लड़कर लिया था.
1963 में उत्तर प्रदेश सरकार ने पिथौरागढ़ महाविद्यालय बनाया था. महाविद्यालय बनने के साथ साल बाद 1970 में पिथौरागढ़ महाविद्यालय में छात्र संघ के पहले चुनाव हुये और पहले अध्यक्ष ईश्वरी दत्त पन्त हुये.
यह महाविद्यालय एक सीमांत जिले का महाविद्यालय था जहां अधिकांश लोगों को सजा के तौर पर ही नियुक्त किया जाता था. महाविद्यालय बनने के एक दशक तक इस कॉलेज में अच्छे शिक्षकों के साथ नाकारा शिक्षकों का गुट भी तैयार हो चुका था इसी समय पिथौरागढ़ महाविद्यालय के अध्यक्ष बनते हैं निर्मल भट्ट .
1972 में पिथौरागढ़ महाविद्यालय के अध्यक्ष बने निर्मल भट्ट ने पहला काम नाकारा अध्यापकों को हटवाने की मांग के रूप में किया. इस बीच पूरे पहाड़ में एक आन्दोलन चला जिसका नाम था “कुमाऊं-गढ़वाल विश्वविद्यालय बनाओ आन्दोलन”.
उत्तराखंड के पहाड़ों में कालेज पढ़ने वाले बच्चों को अपनी मार्कशीट में सुधार से लेकर बैक पेपर, डिग्री लाने तक के लिये छात्रों को आगरा जाना पड़ता. इसी कारण ‘कुमाऊं-गढ़वाल विश्वविद्यालय बनाओ आन्दोलन’ को खूब समर्थन भी मिला.
‘नैनीताल समाचार’ में छपे एक लेख में पिथौरागढ़ के वरिष्ठ पत्रकार पंकज सिंह महर बताते हैं कि इस दौरान छात्र संघ में भूपेन्द्र माहरा उपाध्यक्ष, इकबाल बख्श सचिव और हयात सिंह तड़ागी जी कोषाध्यक्ष के पद पर थे. छात्र संघ के शिक्षकों को हटाने की मांग पर हुये आन्दोलन के कारण प्रशासन ने कुछ दिन के लिये अध्यापकों को छुट्टी पर भेज दिया और फिर पुनः बहाल कर दिया.
अध्यापकों की पुनः बहाली पर छात्र उग्र हो गये और उन्होंने छुट-पुट तोड़-फोड़ की. इसी शाम को छात्र नेताओं के नाम वारंट निकाल दिये गये. निर्मल भट्ट प्पद्यौ गांव में नेपालियों के भेष में भूमिगत हो गये जबकि भूपेन्द्र सिंह माहरा, इकबाल बख्श और राजू पुनेडा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार छात्र संघ के नेताओं को पुलिस अल्मोड़ा ले गई.
15 दिसम्बर, 1972 को छात्रों की बहस जिलाधिकारी से हो गई. जिसके बाद छात्रों ने कोतवाली का घेराव किया बाद में छात्र रामलीला मैदान में इकट्ठा हुये. जहां अचानक सुबह की खुन्नस में बौखलाये जिलाधिकारी रोशनलाल ने गोली चलाने का मौखिक आदेश दे दिया, जबकि स्थिति नियंत्रण में थी. इस गोलीकांड में 10 से 15 लोग घायल हुये.
इस गोलीकांड में सज्जन लाल शाह नाम के एक हाइस्कूल के छात्र की मृत्यु हो गयी. निर्मल भट्ट के नेपाली भेष में होने के धोखे में एक नेपाली मजदूर सोबन सिंह की भी गोली लगने से मौत हो गई.
आनन्द बल्लभ उप्रेती अपनी किताब हल्द्वानी का इतिहास में बताते हैं कि गोलीकांड की जांच के लिये फैक्ट फाइडिंग कमेटी गठित की गयी थी. कमेटी के समक्ष छात्रों का पक्ष रखने के लिये नैनीताल से दयाकिशन पाण्डे आये थे. अपनी रिपोर्ट में कमेटी ने कहा कि
प्रशासन की लापरवाही के कारण यह गोलीकांड हुआ और गोली चलाने की कोई आवश्यकता नहीं थी.
गोलीकांड के बाद उ.प्र. सरकार दबाव में आई और जनवरी 1973 में कुमाऊं और गढ़वाल यूनिवर्सिटी का गजट नोटिफिकेशन हो गया. फरवरी से दोनों विश्वविद्यालय शुरू भी हो गये और कुमाऊं यूनिवर्सिटी बनी नैनीताल में.
एक संघर्ष के बाद मिले कॉलेज के आज यह हाल हैं कि महिना भर आन्दोलन करने के बाद भी उन्हें पढ़ने के लिये किताब नहीं मिल रही हैं.
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