मैदान में रहकर पहाड़ के लिये वॉव, ब्यूटीफूल, अमेजिंग, सुंदर, अद्वितीय, अद्भुत के सिवाय और किसी शब्द नहीं निकलते लेकिन इन पहाड़ों में रहने वाला आदमी ही जानता है माचिस की डिब्बी हो या नमक की पुड़िया, पहाड़ में हर छोटी से छोटी चीज के लिये संघर्ष करना पड़ता है.
(Cloudburst Photos in Gorichal Pithoragarh)
बरसात के मौसम में जब मैदान से पहाड़ केवल गहरे हरे और झरने से भरे हुए दिखते हैं तब पहाड़ में रहने वाला हर रात अपनी जान की चौकीदारी करता है. पिछले कुछ सालों में बादलों के फटने की घटनायें इतनी बढ़ चुकी हैं कि पहाड़ के बड़े हिस्से में रात बिना सहमें नहीं गुजारी जा सकती.
पिथौरागढ़ जनपद के गोरीछाल क्षेत्र में 27-28 जुलाई को ऊपरी पहाड़ी मे बादल फटने से सभी छोटे बड़े नाले उफान मे आ गए और अपने साथ लाये मलवे से हुआ भारी नुक्सान हुआ. इससे प्रभावित गावों में मोरी, लुमती, बग़ीचाबगड, मतली, देवलेक, दोगड़, जारा जिबली, हुड़की हैं.
सबसे ज्यादा गाँव का नुकसान मोरी, जँहा अब फिर से रहने की संभावना भी नहीं है. इस गांव में 5 घर मलवे मे बह गए अन्य घर मलवे से बुरी तरह दब गए है साथ ही पूरा गांव अब ऊपर से आने वाले नाले से ओर नीचे से गोरी नदी के कटाव से पूरे खतरे में है.
(Cloudburst Photos in Gorichal Pithoragarh)
लुमती गाँव के ऊपरी पहाड़ी से आये भारी मलवे से गोरी नदी मे बहुत बड़ा डैम बन गया है जो क्षेत्र के लिये खतरा हो सकता है. मेन मोटर रोड लगभग पूरी तरह से इस क्षेत्र मे तबाह हुए हैं. 1 बड़ा पुल तथा नालों मे बने सभी पैदल पुल बह गए जिसकी वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन भी बाधित हुये.
भारतीय सेना के समय से आने और रेस्क्यू ऑपरेशन करने से यहाँ प्रभावित लोगों को राहत मिली और सभी प्रभावित लोगों को सुरक्षित स्थानों तक हवाई सेवा द्वारा पहुँचाया गया. सरकार द्वारा बरम स्कूल मे राहत कैम्प बनाया गया है जहां पर सभी लोगों को रखा गया हैं और सभी प्रकार की व्यवस्था की जा रही हैं.
(Cloudburst Photos in Gorichal Pithoragarh)
क्षेत्र की तस्वीरें काफल ट्री के सहयोगी नरेंद्र परिहार ने भेजी हैं :
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मूलरूप से पिथौरागढ़ के रहने वाले नरेन्द्र सिंह परिहार वर्तमान में जी. बी. पन्त नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ हिमालयन एनवायरमेंट एंड सस्टेनबल डेवलपमेंट में रिसर्चर हैं.
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1 Comments
गोपेन्द्र गंगवार
बरसात का मौसम पहाडों के लिए अत्यंत दुःखद है