नंदा के लोग! आस्था ,श्रद्धा और संस्कृति के संगम को अनुभव करना हो तो उत्तराखण्ड के नंदा देवी मेलों में और नंदा जातों (यात्राओं) में डुबकी लगाना और उन्हें दिल से महसूस करना चाहिए. लोगों का उत्साह और विश्वास अकल्पनीय है. कुमाऊं के गरुड़ के कोट भ्रामरी में कत्यूर घाटी के लोगों के नंदा देवी के प्रति अगाध प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना बहुत कठिन है, हर साल उसको अनुभव करना एक नई ऊर्जा देता है उन सभी को जो इस जगह को जीते हैं! हालिया कोट भ्रामरी मंदिर, गरूड़, बागेश्वर, उत्तराखण्ड में हुई पूजा और उपस्थित लोगों के चित्र. (Photo Essay on Kot Bhramari Fair 2021)
उत्तराखंड में कोट की माई भ्रामरी आदि शक्ति नंदा का ही एक रूप है. कत्यूर घाटी क्षेत्र में मां शक्ति भ्रामरी विशेष रूप से पूजी जाती है. कोट की माई भ्रामरी की जागर में एक कथा बतायी जाती है कि क्यों उन्हें भ्रामरी देवी कहा जाता है>>>
भ्रामरी देवी का विवरण दुर्गा सप्तशती के ग्यारहवें अध्याय में प्राप्त होता है. नंदा के सम्बन्ध में यह जनश्रुति प्रचलित है कि जब चंद शासक नंदा की शिला को गढ़वाल से अल्मोड़ा के लियी ला रहे थे तो रात्री विश्राम हेतु इसके निकटस्थ झालीमाली गाँव में रुके थे. अगले दिन प्रातःकाल इसे ले जाने के लिए जब सेवकों ने इसे उठाना चाहा तो शिला को उठाना तो क्या वह उनसे एक इंच भी न हिल सकी. वे सब हताश होकर बैठ गए. तब ब्राह्मणों ने राजा को सलाह दी कि देवी का मन यहाँ रम गया है, वह यहीं रहना चाहती है अतः आप इसकी यहीं पर स्थापना कर दें. तदनुसार झालीमाली गाँव में ही एक देवालय का निर्माण करवा कर वहीं पर उसकी प्रतिष्ठा करवा दी गयी और कई वर्षों तक्क उसकी पूजा-आराधना की जाती रही. किन्तु बाद में भ्रामरीदेवी के साथ ही नंदा की स्थापना भी की गयी और इसका पूजन नन्दाभ्रामरी के रूप में किया जाने लगा. चैत्र तथा भाद्रपद मास की नवरात्रों में यहाँ पर विशेष उत्सवों का आयोजन होता है>>>
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
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