वर्ष 1913
एक दिन, करीब 8 बजे जब मैं किच्छा में एक स्कूल का निरीक्षण कर रहा था, एक अध्यापक ने मुझे सूचित किया कि कमिश्नर स्कूल देखने आने वाले हैं. मुझे बुखार था और शिथिलता के कारण कोट-पैन्ट पहनने तक की हालत में न था. जब मुझे सूचना मिली मैं कमीज और पाजामा पहने हुए था. मैं हकबका गया था. कपड़े बदलने का समय नहीं था. एक मिनट के भीतर अपने सफ़ेद भोटिया खच्चर पर सवार मिस्टर पर्सी विंडहैम वहां पहुँच चुके थे. मेरे नजदीक आने पर वे उस से उतरे. (Percy Wyndham British Raj Anecdote )
“तुम कौन हो?” उन्होंने पूछा.
“सब-डिप्टी इन्स्पेक्टर ऑफ़ स्कूल्स.”
“ब्राह्मण हो कि राजपूत?”
“ब्राह्मण सर.”
“मुझे नौकरियों में हर जगह ब्राह्मण ही ब्राह्मण दिखाई देते हैं!” उन्होंने कहा. फिर पूछा, “कितनी तनख्वाह मिलती है तुम्हें?”
“साठ रुपया महीना.”
“और टीए?”
“बारह आना रोज.”
“किच्छा किस जगह से आये हो?”
“यहाँ से दो मील दूर एक जगह से.”
“गाड़ी का किराया कितना दिया?”
“चार आना सर.”
“ऐसा कैसे है कि तुम्हें हर रोज टीए का 12 आना मिलता है और तुमने सिर्फ 4 आना दिया?”
“सर, लम्बी दूरियों के लिए मुझे कभी कभी एक रुपया या उससे भी अधिक देना पड़ता है.”
“अच्छा!”
इस दरम्यान किच्छा गाँव का प्रधान नियाज अहमद वहां पहुंचा और उसने कमिश्नर को सलाम किया. मिस्टर विंडहैम एक बड़े शिकारी थे. उनका साल में छः महीने से अधिक समय बाघों का शिकार करने में तराई और भाबर के जंगलों में बीतता था. जब मैं किच्छा पहुंचा था तो नियाज अहमद ने मेरे लिए चार सेर बढ़िया चावल और कुछ सब्जियां भिजवाये थे. सब्जियां मैंने स्वीकार कर ली थीं लेकिन चावल यह कहते हुए लौटा दिया था कि वह उन्हें बाद के लिए रख सकता है. मेरे द्वारा चावल वापस किये जाने से वह थोड़ा बहुत खीझा था.
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अब कमिश्नर ने मेरे मुंह के सामने नियाज अहमद से पूछा कि मैं कैसा आदमी हूँ. उसने उत्तर दिया कि शिक्षा विभाग के अफसरों के साथ उसका कुछ लेनादेना नहीं होता अलबत्ता उसने मुझे कुछ चावल भिजवाये थे जिन्हें मैंने अशालीनतापूर्वक वापस भिजवा दिया था. “क्या इसने तुम्हें हंसराज चावल भिजवाया था?” कमिश्नर ने पूछा. मैंने हाँ में उत्तर दिया. इसके बाद उन्होंने मुझसे कहा कि मुझे ग्राम प्रधानों द्वारा दी गयी चीजें स्वीकार करनी चाहिए ताकि उनके साथ सम्बन्ध अच्छे बने रहें. मैंने उत्तर दिया कि मैंने उनकी बात नोट कर ली है.
अब मिस्टर विंडहैम की निगाह मेरे टेंट पर गयी.
“यह टेंट किसका है?”
“यह मरास टेंट है सर.”
वे उसमें घुस गए. भीतर उन्हें एक गठरी नजर आई जिसे देखते ही उन्होंने पूछा उसमें क्या है.
“इसमें बर्तन हैं सर.”
“यह बेकार बोझा क्यों लादे फिरते हो? क्या तुम्हें गाँव से बर्तन नहीं मिल सकते?”
“मिल तो सकते हैं सर लेकिन उन्हें गाँव से इकठ्ठा करने में समय लगता है. अगर मेरे पास अपने बर्तन हों तो रसोइये को काम करने में सुविधा हो जाती है.”
“मैं बेगार और बर्दायश के खिलाफ हूँ. पता है तुम्हें?”
“एक सब-डिप्टी इन्स्पेक्टर ऑफ़ स्कूल्स बेगार और बर्दायश की मांग नहीं कर सकता सर.”
मेरी जिस दूसरी गठरी पर उनकी निगाह गयी उसमें करीब पांच सेर गेहूँ का आटा और दालों और मसालों की अलग-अलग पोटलियाँ थीं.
“पांच सेर आटा लिए लिए फिरने का क्या मतलब है? क्या तुम्हें गाँव की दुकानों में आटा नहीं मिलता?” उन्होंने पूछा.
फिर उन्होंने मुझसे मेरा बक्सा खोलने को कहा जिसमें दो कमीजें, एक चादर, दो तौलिये, एक ब्रश, आईना, रेजर और कुछ शेविंग ब्लेड थे. इन्हें देखने के बाद उन्होंने मेरे बिस्तर पर निगाह डाली.
“तुम्हारी रजाई कुछ ज्यादा ही भारी है. है न?
“हाँ सर क्योंकि तराई और भाबर में रात और सुबह भीषण जाड़ा होता है.”
“तुमने खाना बनाने के लिए कोई रसोइया रखा हुआ है या तुम ओने खलासी और चपरासी से यह काम करवाते हो?”
“मैंने एक रसोइया रखा हुआ है लेकिन मुझे अपने चपरासी और खलासी को खाना खिलाना होता है क्योंकि वे मेरे छोटे-मोटे काम करते हैं. यहाँ की जलवायु इतनी खराब है कि वे दोनों अक्सर मलेरिया के कारण बीमार पड़े रहते हैं. जो जो लोग ठीक हैं उन्हेओं बीमारों के लिए खाना बनाना ही होता है.”
“तुम्हारा महीने का खर्च कितना होता है?”
“करीब पंद्रह रुपया सर. हम महीने में करीब पांच रुपये का आटा, पांच रुपये की सब्जियां और पांच रुपये का घी इस्तेमाल करते हैं. दूध के लिए पैसा नहीं देना पड़ता क्योंकि प्रधान उसके पैसे नहीं लेते. मैं सुनिश्चित करता हूँ कि मैं उसके एवज में दो आना पेश करूं.”
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मुझे बुखार था और इस इंटरव्यू के बीच में ही मैंने कांपना शुरू कर दिया.
“क्या तुम्हें बुखार है?”
“जी, सर.”
“क्या मैं तुम्हारी कोई सहायता कर सकता हूँ?”
“कर सकते हैं सर. मैं आपकी लिस्ट में नायब तहसीलदार पद का एक अभ्यर्थी हूँ और अगर आप चाहें तो आप मुझे पहाड़ों में भेज सकते हैं.”
“तुम मेरी लिस्ट में कैसे हो सकते हो? सच बोल रहे हो न?”
“यह बात बिलकुल सच है सर.”
उन्होंने अपनी नोटबुक निकाली और उसमें मेरा नाम, योग्यता, शिक्षा विभाग में नौकरी की अवधि और अन्य विवरण लिखे.
“तुम नैनीताल कब आओगे?”
“अगले अप्रैल में सर.”
“तो सीधे मेरे पास आना और मैं तुम्हारे लिए एक पोस्ट सुरक्षित रखूंगा. लेकिन नियाज अहमद से वह चावल वापस लेना मत भूलना.”
कुछ महीनों बाद, मुझे डिप्टी कमिश्नर, नैनीताल का आदेश मिला कि कमिश्नर चाहते हैं मैं रानीखेत में नायब तहसीलदार की नौकरी करूं और यह कि मुझे ज्वाइन करने की तैयारी करनी चाहिए. मेरे अच्छे काम को देखते हुए डायरेक्टर ऑफ़ पब्लिक इंस्ट्रक्शन मिस्टर क्लौड डी ला फोसे मेरी सेवाओं को रेवेन्यू डिपार्टमेंट में ट्रांसफर करने के इच्छुक नहीं थे लेकिन मिस्टर विंडहैम खुद उनके पास गए और मेरा तबादला करवाया.
(गोविन्द राम काला की किताब ‘मेमोयर्स ऑफ़ द राज’ से एक अंश. इस किताब के अनेक हिस्से हमने पहले पोस्ट किये हुए हैं. कुछ के लिंक आप इसी पोस्ट में देख सकते हैं.)
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