रेशमा ने ढेरों ऐसे गाने गए हैं जिन्हें पाकिस्तान और हिन्दुस्तान की संगीत प्रेमी जनता ने बराबर प्यार दिया. सुन चरख़े दी मिट्ठी-मिट्ठी हूक माहिया मैनू याद आउंदा, हाय ओ रब्बा, नइयो लगदा दिल मेरा, वे मैं चोरी-चोरी और दमादम मस्त कलंदर उन सदाबहार गीतों में शामिल हैं. उनके गीत अक्खियाँ नूं रैन दे अक्खियाँ दे कोल को राज कपूर ने 1973 में बॉबी में हिन्दी में रूपांतरित कर ‘अखियों को रहने दे अखियों के आस-पास’ में ढाला.
रेशमा के जिस गीत को हिंदुस्तान में बेशुमार प्यार मिला वह है ‘चार दिनों का प्यार ओ रब्बा बड़ी लम्बी जुदाई.’ यह गीत रेशमा ने 1983 में सुभाष घई की फिल्म हीरो के लिए गाया था. यह गीत अपने समय का तो हिट गीत था ही आज भी यह उतना ही लोकप्रिय है. इस गाने ने हर पीढ़ी के दिल में अपनी जगह बनायी. 1983 के बाद से अब तक के सर्वश्रेष्ठ गायकों में से भी शायद ही कोई गायक ऐसा होगा जिसने इसे कवर न किया हो. आज भी हर युवा जिस पुराने गीत का मोह त्याग नहीं पाता वह है रेशमा का लम्बी जुदाई. इस हिंदी गीत को हर नामचीन और गुमनाम कलाकार ने कवर किया है, यू ट्यूब इस हिंदी गीत के बेशुमार कवर संस्करणों से भरा हुआ है. यह गीत हिंदी सुगम संगीत की दुनिया का ओल्ड मॉंक है, जिसके सुरूर हमेशा अलौकिक आनंद देता है.
रेशमा राजस्थान के रतनगढ़ में एक बंजारा परिवार में पैदा हुईं. उनकी घुमंतू जनजाति ने कभी इस्लाम अपना लिया था. उनके जन्म की ठीक-ठीक तारीख तो उन्हें नहीं मालूम बकौल रेशमा ‘मेरे घरवाले बताते हैं कि जब भारत-पाकिस्तान के विभाजन के वक़्त मुझे पाकिस्तान के कराची ले आया गया तब में कुछ ही महीनों की थी.’
वे राजस्थान के एक बड़े घुमंतू बंजारा कबीले में जन्मीं. उनका समुदाय अक्सर सफर में ही रहा करता. उनके पिता हाजी मोहम्मद मुश्ताक ऊंटों, घोड़ों व अन्य पालतू जानवरों के व्यापारी थे. राजस्थान के बीकानेर से ऊंट अन्य जगहों पर ले जाकर बेचते और गाय, घोड़े, बकरियां बीकानेर लाकर. विभाजन के बाद उनके कबीले के सभी लोग पाकिस्तान के कराची और लाहौर शहर में बस गए.
रेशमा की स्कूली शिक्षा-दीक्षा नहीं हुई. उन्हें संगीत का भी औपचारिक ज्ञान नहीं था. उनका बचपन पाकिस्तान के सिंध प्रान्त की मजारों में गाते हुए बीता. जब रेशमा 12 साल की थीं तो उन पर पाकिस्तानी टेलीविजन और रेडियो प्रोड्यूसर सलीम गिलानी की निगाह अटक गयी, वे लाल शाहबाज कलंदर की मजार पर गा रही थीं. 1968 में गिलानी ने रडियो पाकिस्तान के लिए उनकी आवाज में ‘लाल मेरी पत रखियो’ रिकॉर्ड किया. इस बम्पर हित के बाद से रेशमा पाकिस्तान की सर्वाधिक लोकप्रिय लोकगायिका बनी रहीं.
पाकिस्तान के नागरिक सम्मान सितारा-ए-इम्तियाज़ से नवाजी गयी रेशमा 1980 में गले के कैंसर का शिकार बनीं. लम्बी बीमारी के बाद अक्टूबर 2013 में वे कोमा में चली गयीं और 3 नवम्बर 2013 को लाहौर के एक अस्पताल में उनका देहांत हुआ.
रेशमा कहा करती थीं कि ‘मेरे लिए हिन्दुस्तान और पाकिस्तान में कोई फर्क नहीं है, ये मेरे लिए मेरी 2 आँखों की तरह हैं.’ पाकिस्तान और हिन्दुस्तान ने भी रेशमा का नूर अपनी आँखों में बराबर संजोया.
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