-जी. श्रीनिवास राव इसकी शुरुआत उस एक सुबह से हुई, जब मैं 21 वर्ष का कॉलेज विद्यार्थी था और अचानक एक लोकप्रिय पत्रिका के पेज पर मेरी नजर पड़ी, जिसमें पूरे संसार के युवा लोगों के डाक के पतों को छापा गया था, जो कि भारत में पत्र मित्र की तलाश में थे. मैं... Read more