सरुलि चाहा केतलि बै निकलनैर वाल भाप कि एकटक देखण लागि रे छी. पटालनाक उच निच आंगन, एक कोण में माट लै लिपि चुल भै. जा में लाकड़ जल बेर धुं बण गयिं. बस लाकड़नक राख निशाणि तौर पर बच गयि. चाहा उबल बेर काढ़ा बण गै पर सरुलि पत्त नै कां विचारमग्न छि. बरसों [... Read more