1808 के समय तक यह माना जाता था कि गढ़वाल स्थित गोमुख में गंगा का उद्गम स्थल है लेकिन कुछ लोगों का मानना था कि गंगा नदी का उद्गम स्थल मानसरोवर ताल है यह मानसरोवर से हिमालय के बीच एक घाटी से होती हुई गोमुख आती है. गंगा के उद्गम स्थल का पता लगाने के लिये एक दल का गठन किया गया जिसमें कैप्टन एफ वी रैपर, लेफ्टिनेंट डब्ल्यू वेब और केप्टन हैदर यंग हेयरसे शामिल थे. अप्रैल 1808 को बरेली से यह दल निकला.
(Old Painting of Badrinath Temple)
इस दल द्वारा किये गये सर्वेक्षण के बाद ही आधुनिक काल में इस बात पर मुहर लगी कि गंगा का उद्गम स्थल गोमुख है. तीन महीने कि इस यात्रा में यह दल हरिद्वार, देवप्रयाग, श्रीनगर, कर्णप्रयाग, नन्द प्रयाग, जोशीमठ, बद्रीनाथ और गंगोत्री के उद्गम स्थल पर गया.
यह दल बिना किसी बड़ी मुसीबत के अपना काम करने में सफ़ल रहा. गढ़वाल की उनकी इस यात्रा के दौरान वहां गोरखाओं का क्रूर शासन था. कैप्टन हेयरसे और उनके साथियों की मुलाक़ात यहाँ के गोरखा गवर्नर हस्तीदल चौतारिया और उसके परिवार से हुई. हस्तीदल चौतारिया पर हुये एक भालू के हमले में उसकी जान कैप्टन हैदर यंग हेयरसे ने ही बचाई. जिसका फायदा भी कैप्टन हेयरसे को बाद में मिला.
(Old Painting of Badrinath Temple)
बद्रीनाथ का यह दो सौ साल से भी पुराना चित्र कैप्टन हैदर यंग हेयरसे ने ही बनाया था. 29 मई 1808 को यह चित्र कैप्टन हैदर यंग हेयरसे ने पानी के रंगों से बनाया था यह चित्र उसी दिन का है. सामने तीन याक और पीछे बर्फ से ढकी पहाड़ियों के बीच बद्रीनाथ को देखा जा सकता है. चित्र में सामने की तरफ दो बच्चे भी देखे जा सकते हैं. बद्रीनाथ की इस यात्रा के बारे में रैपर ने अपने जनरल में लिखा-
बद्रीनाथ की ओर निकलते समय सुबह बादलों वाली और हवायें तेज और बेहद ठंडी थी. हमारे रहने की जगह छोटी सी जलधारा ऋषिगंगा (Ruca Ganga) के पास शहर के दक्षिण में लगभग 200 मीटर की दूरी पर था. इस दिन कि यात्रा में हमने बर्फ की चादर से ढके रास्ते पार किये जिनकी मोटाई सत्तर या अस्सी फीट से कम नहीं हो सकती थी. नदी, कुछ हिस्सों में, पूरी तरह से बर्फ से ढकी हुई थी, जो इतनी मजबूती से जमी हुई थी. अब हम चारों ओर से सफ़ेद चोटियों पर थे जो हमेशा बर्फ से ढके रहते थे. निचले इलाकों का हिस्सा में छोटे पेड़ और झाड़ियां थी.
(Old Painting of Badrinath Temple)
–काफल ट्री डेस्क
संदर्भ: ब्रिटिश लाइब्रेरी
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