दूरदर्शन के ध्वनि-संकेत के साथ, सबका अपना-अपना काम-धाम छोड़कर टेलीविजन सेट के आगे बैठ जाना. मोहल्ले का मोहल्ला यानी समूचा जमघट, समाचार सुनने को तैयार.
तब दस फ़ीसदी भी लोगों के यहाँ टेलीविजन नहीं होते थे. आस-पड़ोस में कहीं एक भी सेट हुआ, तो सब वही जाकर समाचार देख लेते थे. दिनभर की देश-विदेश की घटनाओं को उस बुलेटिन में आधे घंटे में ही समेट लिया जाता था. कम समय में ज्यादा इनपुट. देश- दुनिया की तटस्थ और मुकम्मल जानकारी. सीमित समय में, देश के लगभग सभी हिस्सों की एक संपूर्ण तस्वीर सामने आ जाती थी. यह केबिल-सैटलाइट टेलिविजन से पहले अर्थात् प्री सोशल मीडिया दौर की बात है. ये बुलेटिन खास माने जाते थे. युवा वर्ग इस बुलेटिन से जनरल नॉलेज की अच्छी-खासी जानकारी हासिल कर लेता था.
समाचार, शिष्ट-शालीन लहजे में समग्रता के साथ प्रस्तुत किए जाते थे. मसलन सलमा सुल्तान (शाहशुजा की प्रपौत्री) के धीर-गंभीर गरिमामयी व्यक्तित्व के साथ, निष्पक्ष समाचारों की प्रस्तुति. उनके बालों में बाई तरफ सलीके से लगाया गुलाब, लाखों लोगों के आकर्षण का केंद्र हुआ करता था.
न्यूज़ रीडर्स की प्रसिद्धि, किसी भी मायने में फिल्मी सितारों से कम नहीं रहती थी. उनका एक खास अंदाज़ रहता था, जो उनका ट्रेडमार्क बन जाता था. सलमा सुल्तान के, ‘आज के समाचार इस प्रकार है.’ कहते ही श्रोता एकाग्रचित्त होकर समाचार सुनते थे, या फिर बुलेटिन समाप्त होने के दौरान, शम्मी नारंग का कलम को जेब के हवाले करते हुए, ‘इसी के साथ ये समाचार बुलेटिन समाप्त हुआ.’ कहना असाइनमेंट कंप्लीट होने का आभास दे जाता था.
न्यूज़ रीडर्स की आवाज, बोलचाल का लहजा, भंगिमा के लिहाज से सबका अपना-अपना सिग्नेचर स्टाइल होता था.
साफ-सुथरी भाषा, स्पष्ट उच्चारण, बेहतरीन वॉइस ओवर वाली आवाज, सलीके का प्रस्तुतीकरण. श्रोता उनके सिग्नेचर स्टाइल को दोहराने लगते थे, युवतियाँ महिला न्यूज़ रीडर्स के फैशन, साड़ी, मेकअप को फॉलो करतीं, तो नौजवान अपना उच्चारण दुरुस्त करते थे. अंग्रेजी बुलेटिन से विक्टोरियन प्रनंसीएशन को सीखने की चेष्टा करते.
समाचारों में उच्चारण एवं प्रस्तुति पर खासा जोर रहता था. समाचार बिना किसी निजी राय अथवा दृष्टिकोण के तटस्थ रूप से प्रस्तुत किए जाते थे. किसी भी न्यूज़ रीडर का पक्षीय झुकाव, बिल्कुल भी नहीं झलकता था. एकदम तटस्थ.
इस श्रृंखला में जेबी रमण, वेद प्रकाश, सरला माहेश्वरी, मंजरी जोशी (प्रख्यात कवि रघुवीर सहाय की सुपुत्री), अविनाश कौर सरीन प्रमुख थे. अंग्रेजी बुलेटिन में सुमित टंडन, गीतांजलि अय्यर, रिमि साइमन खन्ना, मीनू तलवार, निधि रविंद्रन उषा अल्बुकर्क का नाम लिया जा सकता है. ये वे नाम हैं, जो उस दौर में समाचार प्रस्तुति के पर्याय बनकर रह गए. दर्शकों पर इन्होंने अपने सलीके की अमिट छाप छोड़ी.
समाचार वाचको के नेशनल आइकन बनने के पीछे एक प्रमुख कारण यह बताया जाता है कि, तब आकाशवाणी से दूरदर्शन का सफर नया-नया था, जो दर्शकों के लिए एक बहुत बड़ी छलांग हुआ करती थी. श्रव्य माध्यम से सीधे श्रव्य-दृश्य माध्यम का एक रोमांचक सफर.
दर्शक, स्वर से ही अपने पसंदीदा समाचार वाचक को पहचान लेते. तब प्रोग्राम बहुत ही सीमित होते थे. चित्रहार अथवा कृषि दर्शन के बाद राष्ट्रीय समाचार बुलेटिन की लोग व्यग्रता से प्रतीक्षा किया करते थे. न्यूज़ रूम में टेलीप्रॉम्पटर तब दूर की कौड़ी हुआ करते थे. साधारण तकनीक में उत्तम क्वालिटी. न्यूज रीडर के स्क्रिप्ट को औसत से तेज अथवा धीमे पढ़ने पर कोई अदृश्य व्यक्ति उन्हें लगातार इस बात की चेतावनी जारी करता रहता था.
समाचार वाचक एक अलिखित संहिता का पालन करते थे. समाचारों में न तो न्यूज़ रीडर्स का निजी झुकाव, रुझान अथवा पसंद-नापसंदगी झलकती थी, न ही किसी की किस्म की कोई व्यग्रता- उग्रता, उत्तेजना अथवा बिग ब्रेकिंग की ललक.
ललित मोहन रयाल
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दो अन्य पुस्तकें शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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