उत्तराखण्ड की लोकसंस्कृति के विलुप्त हो जाने की आशंका के बीच कई युवा अपने जिद्दी इरादों के साथ इस कुहासे को लगन के साथ हटाते दिखाई देते है. उनके इरादे बताते हैं कि ऐसा मुमकिन नहीं. उनके रहते उत्तराखण्ड की लोककला, संस्कृति का भविष्य सुनहरा है. ऐसी ही एक कलाकार है निशा पुनेठा. बेहतरीन चित्रकार निशा ने ऐपण की लोकविधा को नए मुकाम पर पहुंचा दिया है. कुमाऊं की पारंपरिक चित्रकला ऐपण
पिथौरागढ़ में रहने वाली निशा पुनेठा का बचपन और शिक्षा-दीक्षा भी पिथौरागढ़ में ही हुई. वे जीजीआईसी पिथौरागढ़ की छात्रा रहीं. पेंटिंग का शौक और इस क्षेत्र में ही करियर बनाने की गरज से निशा उच्च शिक्षा के लिए अल्मोड़ा पहुंच गयी. उनका इरादा एक आर्ट टीचर बनने का था और है. एसएसजे कैम्पस, अल्मोड़ा से उन्होंने बीए और फिर ड्राइंग और पेंटिग से एमए की पढाई की.
पेटिंग का बीज बचपन में ही निशा के जेहन में पनपने लगा. 8 साल की उम्र में अपने पिता को विभिन्न मौकों पर ऐपण बनाते देख वे इस लोककला की ओर खिंचाव महसूस करने लगीं. वे अपने पिता के बनाये ऐपणों में लाइन दिया करतीं. उनके पिता स्व.जगदीश चन्द्र पुनेठा एक अच्छे ऐपण आर्टिस्ट थे और पर्व-त्यौहारों पर इन्हें बनाया करते थे.
ऐपण की दुनिया निशा को कला के सागर में उतार ले गयी. यूँ तो ऐपण उत्तराखण्ड की बहुप्रचलित लोककला है जिसे प्रायः सभी ग्रामीण महिलाएं बनाया करती हैं, लेकिन निशा के लिए ऐपण सिर्फ रीति-रिवाज से आगे का लक्ष्य बनता चला गया. वे पूरे समर्पण भाव के साथ ऐपण दिया करतीं और इसके बदले खूब तारीफें भी बटोरा करतीं. उम्र बढ़ने के साथ ही उन्हें ऐपण को कलात्मक बारीकियों के साथ बनाने का जुनून सवार होता गया. ‘ऐपण’ लोक कला की पृष्ठभूमि – 1
निशा की दीदी ने उन्हें इस बात का अहसास कराया कि उनके बनाये ऐपण ख़ास हैं. एक दफा चाचा ने उनसे कपड़े पर ऐपण बनाने का सुझाव दिया. कपड़े पर बनाये गए ऐपण की कलात्मकता और सौन्दर्य अलग ही लेवल पर दिखाई दिया. इसके बाद निशा ने विभिन्न माध्यमों में ऐपण बनाना शुरू कर दिया. जीजीआईसी पिथौरागढ़ में कार्यरत निशा की माता गंगा पुनेठा ने उनके इस शौक को परवान चढ़ाने के लिए हमेशा प्रेरित ही किया है.
यह कोई पांचेक साल पुरानी बात रही होगी जब निशा ने ऐपण को शानदार पेंटिंग के स्तर पर ले जाने की कोशिशें शुरू की, तब वे ग्रेजुएशन कर रही थीं. एक कलाकार के रूप में ऐपण बनाते हुए निशा के दिमाग में हमेशा लोककला की विधाओं के कमजोर होते चले जाने का संकट भी रहता है. उन्हें इस बात का हमेशा अफ़सोस रहता है कि आज ऐपण के स्टिकरों का चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है. इसीलिए वे न सिर्फ खुद ऐपण बनती हैं बल्कि बच्चों को वर्कशाप लगाकर इसकी ट्रेनिंग भी दिया करती हैं. ‘ऐपण’ लोक कला की पृष्ठभूमि – 2
निशा एक मंझी हुई पेंटर भी हैं. उन्हें मॉडर्न आर्ट में विशेष दिलचस्पी है. प्रकृति का अद्भुत लैंडस्केप उन्हें मोहित करता है, यही उनकी पेंटिग्स का विषय भी है.
निशा अपनी हरेक कलाकृति के लिए पूरी तरह समर्पित रहती हैं और उसे सम्पूर्ण बनाने की जी तोड़ कोशिश करती हैं. बहुत छोटी सी ऐपण पेंटिंग बनाने तक में उन्हें एक हफ्ते से ज्यादा समय लग जाता है. इसी वजह से उनके ऐपण तक बारीक और सुघड़ डिटेल्स ली हुई स्तरीय पेंटिंग्स बन जाते हैं.
एक कला शिक्षक के साथ अपनी रचनात्मकता का सफ़र जारी रख सकने का ख़्वाब देखने वाली निशा पुनेठा उत्तराखण्ड की लोककला के भविष्य की उम्मीद हैं. काफल ट्री उनके उज्जवल भविष्य की कामना करता है.
(काफल ट्री के लिए निशा पुनेठा से सुधीर कुमार की बातचीत पर आधारित)
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