आस बँधाते लोग, उम्मीद जगाती खबरें
हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जब पूरे देश में सांप्रदायिक घृणा भड़काने की हर मुमकिन कोशिश की जा रही है, इस घृणा को हिंसा में तब्दील करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है. इस जहरीले माहौल के बीच ऐसी खबरें सुकून की फुहारों के रूप में आती हैं, जो बताती हैं कि सियासत और धर्म के ठेकेदार लोगों के बीच कितनी ही खाई पैदा करना चाहें, लेकिन आम लोग प्रेम और सौहार्द का दामन नहीं छोड़ते. ऐसी ही दो खबरें हाल-फिलहाल में आयीं, एक उत्तराखंड के काशीपुर से और दूसरी महाराष्ट्र से. (More Sweetness in Eid ki Siwain)
उत्तराखंड के काशीपुर में दो बहनों ने अपनी चार बीघा जमीन ईदगाह के विस्तारीकरण के लिए दान दे दी. सरोज रस्तोगी और अनीता रस्तोगी नाम की दो बहनों ने यह जमीन दान की है. दैनिक अखबार अमर उजाला में छपी आरडी खान की रिपोर्ट के अनुसार, यह जमीन इनके पिता ब्रजनन्दन प्रसाद रस्तोगी की थी, जो ईदगाह की बाउंड्री से सटी हुई है. ब्रजनन्दन प्रसाद रस्तोगी स्वयं इस जमीन को ईदगाह को दान करना चाहते थे, लेकिन उनका देहांत हो गया. अपने जीते-जी ब्रजनन्दन प्रसाद रस्तोगी हर साल ईदगाह को चन्दा भी देते थे. दिवंगत ब्रजनन्दन प्रसाद रस्तोगी की बेटियों- सरोज रस्तोगी और अनीता रस्तोगी को जब पिता की इच्छा की जानकारी हुई तो उन्होंने स्वयं ईदगाह कमेटी के सदर हसीन खान से संपर्क साधा और अपने भाई, दोनों बहनों के पतियों और परिजनों के सहयोग से जमीन ईदगाह कमेटी को सौंप दी. इस जमीन का बाजार भाव इस वक्त लगभग डेढ़ करोड़ से अधिक आँका गया है.
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दूसरी खबर महाराष्ट्र से है. जहां एक तरफ पूरे देश में लोग मस्जिदों के लाउडस्पीकर के नाम पर बवाल काटे हुए हैं, वहीं महाराष्ट्र के एक गांव ने प्रस्ताव पारित करके कहा है कि उन्हें मस्जिद के लाउडस्पीकर से कोई परेशानी नहीं है. अंग्रेजी अखबार- द हिंदू- में 30 अप्रैल को छपी आलोक देशपांडे की रिपोर्ट के अनुसार महाराष्ट्र के हिंदू बहुल गांव- ढासला-पीरवाड़ी ने सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित किया है कि उनके गांव की एकमात्र मस्जिद से लाउडस्पीकर न हटाया जाये. ढासला-पीरवाड़ी, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र के जलना जिले में स्थित ग्राम सभा है.
Amid azan row, Maharashtra village shows the way in communal harmony
प्रस्ताव में लिखा गया है कि मस्जिद के मौलवी ने कहा कि वे लाउडस्पीकर की आवाज़ धीमी कर देंगे पर गांव वालों ने कहा कि उन्हें अज़ान की आवाज़ से कोई दिक्कत नहीं है बल्कि अज़ान उनके रोज़मर्रा के कामों में समय सूचित करने वाले अलार्म का काम करती है. गांव के सरपंच राम पाटिल ने कहा कि हम सालों से साथ-साथ शांति और सौहार्द से रहते आए हैं. देश में कुछ भी राजनीति चल रही हो, लेकिन इसका हमारे संबंधों और परम्पराओं पर प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए. राम पाटिल ने कहा कि प्रस्ताव पास करने पीछे उद्देश्य, गांव को, बाहर चल रही जहरीली राजनीति से दूर रखना है.
यह भी ध्यान रहे कि दिल्ली के जिस जहांगीरपुरी में बदअमनी फैलाने की हर संभव कोशिश की गयी, वहां भी हिन्दू-मुसलमानों ने 25 अप्रैल को बड़ी तादाद में सड़कों पर उतर कर तिरंगा यात्रा निकाल कर अमन का पैगाम दिया. देश में नफरत फैलाने की तमाम साज़िशों पर अमन पसंद लोगों की ये कोशिशें भारी हैं. जिगर मुरादाबादी का शेर है :
उन का जो फ़र्ज़ है वोअहल-ए-सियासत जानें
मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहाँ तक पहुंचे
इन्द्रेश मैखुरी का यह लेख नुक़्ता-ए-नज़र से साभार लिया गया है. नुक़्ता-ए-नज़र इंद्रेश मैखुरी का ब्लॉग है..
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1 Comments
Anonymous
Ab subeh roz ajaan sun-ni padegi puri illake ko,
BECHARE HINDU PADOSI