आज राष्ट्रीय विज्ञान दिवस (National Science Day) के अवसर पर, आइए अपने देश के नोबेल पुरस्कार विजेता प्रख्यात वैज्ञानिक प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकट रामन की स्मृति को नमन करें. उन्होंने जो खोज की थी, वह ‘रामन प्रभाव’ कहलाती है. सर चंद्रशेखर वेंकट रामन ने 28 फरवरी 1928 को ‘रामन प्रभाव’ की खोज की थी. इसलिए इस महान खोज की याद में इसी दिन ‘विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है. सन 1928 लीप वर्ष था यानी उस वर्ष फरवरी माह 29 दिन का था. और, 29 फरवरी 1928 को प्रसिद्ध समाचार एजेंसी ‘एसोसिएटेड प्रेस’ के जरिए प्रोफेसर रामन ने इस खोज की घोषणा की थी.
यह मेरा सौभाग्य था कि मैंने सन 1966-67 में प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकट रामन को अपनी आंखों से देखा. वे तब दिल्ली की राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला में व्याख्यान देने के लिए आए थे. मैं तब भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान यानी पूसा इंस्टीट्यूट में मक्का की फसल पर शोध कार्य कर रहा था. प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक डा. एम. एस. स्वामीनाथन संस्थान के निदेशक थे. प्रोफेसर रामन का व्याख्यान सुनने के लिए हम कई वैज्ञानिक डा. स्वामीनाथन के साथ राष्ट्रीय भौतिकी प्रयोगशाला के सभागार में पहुंचे थे. उस दिन प्रोफेसर रामन ने फूलों के रंगों पर अपना व्याख्यान दिया था. बहुत सारगर्भित व्याख्यान था. उन्होंने बताया था कि वे अपनी फूलों की वाटिका में जीवित फूलों के रंग पर यह शोध कार्य कर रहे हैं. उनका कहना था कि जो लोग फूलों को तोड़ कर प्रयोगशाला में उनके रंगों पर काम करते हैं, वे रंगों के सच तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे क्योंकि वे मृत फूलों पर काम करते हैं. इस सच का तो पुष्प वाटिका की प्रयोगशाला में ही पता लग सकता है.
आज हम सब एक संकल्प कर सकते हैं कि आज से हम अपने प्रिय प्रोफेसर रामन का नाम हिंदी में सही लिखेंगे और इस तरह उनके नाम का मानकीकरण करेंगे. आज खबरों में उनका नाम तरह-तरह से लिखा गया है- कहीं वे वेंकटरमण हैं तो कहीं वेंकटरमन, कहीं वेंकटारमन तो कहीं वेंकटारामण, कहीं सी.वी.रमण.
‘नवनीत’ मासिक के पूर्व संपादक श्री नारायण दत्त ने जनवरी 2005 में ‘आंचलिक पत्रकार’ मासिक में एक लेख लिखा था: ‘चंद चर्चित नाम और उनके शुद्ध रूप.’ उसमें उन्होंने लिखा था, “उनका पूरा नाम था- चंद्रशेखर वेंकट रामन. इसमें ‘चंद्रशेखर’ उनके पिता का नाम था. ‘वेंकटरामन’ उनका अपना नाम जिसे वे दो टुकड़ों में ‘वेंकट रामन’ लिखते थे. वेंकटराम में तमिल का ‘न्’ जोड़ने से ‘वेंकटरामन’ बनता है. तमिल का यह ‘न्’ प्रत्यय अकारांत पुल्लिंग शब्दों में जुड़ता है और प्रथमा एकवचन को सूचित करता है. सो तमिल का ‘वेंकटरामन’ संस्कृत के ‘वेंकटरामः’ के बराबर है.”
लेख में उन्होंने यह भी बताया था कि वेंकटरमण नाम भी दक्षिण भारतीयों में होता है, लेकिन कन्नड़ और तेलुगू बोलने वालों में ही, तमिल भाषियों में वह ‘वेंकटरमणि’ हो जाता है.
प्रोफेसर चंद्रशेखर वेंकट रामन की स्मृति को विनम्र नमन.
वरिष्ठ लेखक देवेन्द्र मेवाड़ी के संस्मरण और यात्रा वृत्तान्त आप काफल ट्री पर लगातार पढ़ते रहे हैं. पहाड़ पर बिताए अपने बचपन को उन्होंने अपनी चर्चित किताब ‘मेरी यादों का पहाड़’ में बेहतरीन शैली में पिरोया है. ‘मेरी यादों का पहाड़’ से आगे की कथा उन्होंने विशेष रूप से काफल ट्री के पाठकों के लिए लिखना शुरू किया है.
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