सुदि त क्वी नि देखदु कै सणी… विशुद्ध रूप से चेष्टा-भाव पर आधारित इस गीत में युवती की चेष्टाओं को देखकर युवक के हृदय में जो आकर्षण-विक्षोभ उत्पन्न होता है, उसका निहायत सजीव चित्रण हुआ है. अनुमानाश्रित निष्कर्षों से पुलकित और उत्साहित युवक के मन में कामना का अंकुर उगने, उसकी मन:स्थिति में हुए परिवर्तन और प्रभाव को रेखांकित करने में नेगी जी अचूक साबित हुए हैं.
(Narendra Singh Negi Song)
नारी को जितने विविध रूपों में नेगी जी ने चित्रित किया है और जितनी सहानुभूति उन्होंने नारी पात्रों को दी है, गणना में उनके गीतों की लगभग आधी पड़ती है. ऐसी मासूम व्यंजनाएं किशोरवय के हृदय में छुपी मासूम कामनाओं से परिचित सहृदय कवि ही दे सकता है.
किशोरवय मन में प्रेमोदय का वर्णन इस चित्रण की मार्मिकता का आधार है. इसमें सहज-स्वाभाविक संकोच है जो इस अवस्था के प्रेम की विशेषता होती है. प्रेम का संचार करने वाली विविध भंगिमाएं हैं और किशोर मात्र अनुमान के सहारे सातवें आसमान पर सवार है. आपे में नहीं है. उसका उल्लास तो देखिए.
काव्यशास्त्र में वह अवस्था जिससे मन का भाव या विचार पकड़ में आ जाता है, चेष्टा कहा जाता है. इसमें आचार-व्यवहार से नायिका के आंतरिक विचारों या भावों का पता लगाया जाता है. नायिका की संकोच भरी उत्कंठा को प्रेम-भाव प्रकट करने का इशारा समझा जाता है. शारीरिक व्यंजना की चेष्टाओं को देखकर ही जाना जा सकता है. ये कवि की लोक की गहरी समझ का परिणाम है कि ये चेष्टाएं उनकी दृष्टि से ओझल न हो सकीं.
(Narendra Singh Negi Song)
यूं ही तो कोई किसी को नहीं देखता
‘सुरक खिड़कि खोली'(चुपचाप खिड़की खोलकर)
मुझमें कुछ तो खास होगा कोई तो बात होगी..
गीत के शुरुआती अंतरे में ‘सुरक खिड़कि खोली’ में कितने सारे भाव एकसाथ समाए हुए हैं- लोक-लाज है, संकोच है, कहीं कोई देख न ले. लोकभय है. वह किसी को देखने के लिए आतुर है, इस बात को प्रकट नहीं होने देना चाहती. वहीं नौजवान को एकसाथ अहमियत, सार्थकता, अस्तित्व-बोध का संबल मिलता है. उसका आत्मविश्वास जाग उठता है कि उसमें कुछ खास बात तो है.
एड़ी उचका-उचकाकर भीड़ में खोजती है,
खोजती किसे है, मुझे पता है
कभी किसी के मकान के बगल में किसी की बातें करती है
किसकी बातें करती है, मुझे पता है
पता है कौन है उसके मन में बसाया हुआ मनचाहा प्रेमी यूं ही कोई नहीं पूछता किसी का नाम, बिना सोचे-तोले…
‘खुटि अल़गै अल़गैकि भीड़मा खोज्यांदी’ से जो भाव निकलता है कि वह किसी को देखने के लिए आतुर है. वह जल्दी-जल्दी नजर दौड़ाती है. मन में आतुरता है, संकोच है और देखने की लालसा भी. इन बातों का उस युवक को भान होने से उसके मन में एक निश्चित भाव का संचार होता है और यह अनुभव उसके लिए रोमांचकारी बन जाता है.
कभि कै कूड़ा कौंरा फर…
कौंरा- मकान के दाएं-बाएं बाजू वाले हिस्सों में जो स्पेस होता है, उसे कौंरा कहा जाता है और पिछले वाले हिस्से को कुलण.
राह में जब मिलती है, अकेले मुलमुल हंसती है
मुलमुल हंसदी- मंदस्मित मुस्कान. नेपाली में भी ‘मुसुमुसु हांसी’ का बहुतायत में प्रयोग होता है.
किसे देखकर हंसती है मुझे पता है
सखियों के साथ जाती है, आगे-पीछे देखती रहती है किसे देखती है,
मुझे पता है पता है कौन है,
उसके मन में बसाया हुआ मनचाहा प्रेमी,
यूं ही कोई शर्माती है किसी को देखकर
पालकी की सी दुल्हन सी..
अगाडि पिछाडि हेरणी रांदि या हिटुणु एथर हेरूणु पैथर… नेगी जी के गीतों में नायिकाओं की भंगिमाओं का प्रिय पोज है.
(Narendra Singh Negi Song)
हो सकता है मेरी प्यासी आंखों का भरम रहा हो,
हो सकता है, उसकी बाली उमर की शर्म
हो सकता है, कोई-न-कोई तो होगा उसका मनचाहा प्रेमी
यूं ही कोई नहीं आता किसी की सपनों में आधी रात में अकेले..
ये कम अचरज की बात नहीं कि उम्र के आठवें दशक के पड़ाव की ओर अग्रसर गढ़रत्न किशोरवय के बच्चों की भावनाओं, हाव-भाव और स्वर से संगति बिठाने में आज भी पीछे नहीं हैं.
(Narendra Singh Negi Song)
उत्तराखण्ड सरकार की प्रशासनिक सेवा में कार्यरत ललित मोहन रयाल का लेखन अपनी चुटीली भाषा और पैनी निगाह के लिए जाना जाता है. 2018 में प्रकाशित उनकी पुस्तक ‘खड़कमाफी की स्मृतियों से’ को आलोचकों और पाठकों की खासी सराहना मिली. उनकी दूसरी पुस्तक ‘अथ श्री प्रयाग कथा’ 2019 में छप कर आई है. यह उनके इलाहाबाद के दिनों के संस्मरणों का संग्रह है. उनकी एक अन्य पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य हैं. काफल ट्री के नियमित सहयोगी.
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