चंद शासकों ने अपनी खस प्रजा को नियंत्रित करने हेतु हिमांचल से योद्धा बुलाये थे. हिमांचल से बुलाये इन योद्धाओं को चंद शासकों ने अपनी सेना में सैनिक और ऊंचे पदों पर रखा.
कुमाऊं में कांगड़ा और अन्य पश्चिमी पर्वतीय जिलों से आए हुए इन सैनिकों को नगरकोटिया कहा गया जो पाली, बारामंडल और शोर में बस गए थे. इन लोगों ने यहीं स्थानीय राजपूत परिवारों से वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिये थे. नगरकोटिये अपने बालों के लिये विशेष रूप से जाने जाती थे. सभी नगरकोटिये सिर पर जुल्फें बनाये रहते थे. इस कारण से नगरकोटियों को पहचानना बहुत आसान हुआ करता था.
1793 में कुमाऊं का शासन नरशाह के हाथों में आया. नरशाह को अत्याचारी और जालिम कहा जाता था. उसका नायब रामदत्त शाही था और सेनापति कालू पांडे फ़ौज का मुखिया. नरशाह ने कुमाऊं के लोगों पर बहुत अत्याचार किये. नरशाह को यकीन था कि वीर योद्धा नगरकोटिये कभी अन्य प्रजा के जैसे उसका अत्याचार नहीं सहेंगे. इसलिये उसने नगरकोटियों की एक सूची बनवाई.
सूची में सभी नगरकोटियों के नाम और पता दर्ज था. नरशाह ने एक निश्चित तारीख को रात के समय सभी नगरकोटियों की हत्या का षडयंत्र रचा. नरशाह ने अपने राज्य अधिकारियों को आदेश दिया की जो भी नगरकोटिया जहां दिखे उसकी हत्या कर दी जाय. इस हत्याकांड के दिन मंगलवार था इसलिए इतिहास में यह घटना नरशाह का मंगल नाम से दर्ज है.
नगरकोटियों को उनकी जुल्फों से पहचाना बहुत आसान था. मंगलवार की उस रात नरशाह के सैनिकों को जो भी जुल्फों वाला दिखता वो उसकी हत्या कर देते. हत्याकांड की सूचना जब नगरकोटियों को मिली तो उन्होंने अपनी जान बचाने के लिये अपनी जुल्फें तलवार, छुरी, दरांती जो मिला उससे उड़ा दिया.
अपने प्राण बचाने के लिये कुछ ने साधु का भेष धारण किया तो कुछ ने भिक्षुक का. कुमाऊं में आज भी जब दगाबाजी या धूर्ततापूर्ण अत्याचार होता है तो उसे ‘मंगल की रात’ या ‘नरशाही का मंगल’ कहते हैं.
संदर्भ ग्रन्थ : डॉ शिवप्रसाद डबराल की पुस्तक गोर्ख्याणी -1 और बद्रीदत्त पांडे की पुस्तक कुमाऊं का इतिहास.
काफल ट्री डेस्क
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