वर्ष था 1977, जब उत्तराखंड में नैनीताल की खूबसूरत वादियों के बीच नैनीताल समाचार की शुरुआत हुई. नैनीताल समाचार ने इमरजेंसी के बाद बने मुश्किल हालातों के बीच अपने लिए एक अलग राह चुनी, यह वह राह थी जो पथरीली थी और जिस पर आजकल के समाचार पत्र चलने से कतराते हैं. यह राह थी सच्ची पत्रकारिता की जिसमें पैसा नहीं था पर आत्मसंतुष्टि थी, दुनिया बदलने की. चाटुकारिता पत्रकारिता के बीच नैनीताल समाचार की सच्ची पत्रकारिता आज भी जीवित है, ठीक वैसे ही जैसे उसे गिरीश तिवाड़ी ‘गिर्दा’ और सुंदरलाल बहुगुणा छोड़ गए हैं.
(Nainital Samachar History)
नैनीताल के राजीव लोचन साह बचपन से ही लिखने पढ़ने के शौकीन थे, कॉलेज जाते ही उनका यह शौक परवान चढ़ा और उस समय की लोकप्रिय पत्रिका ‘नई कहानियां’ में उनकी दो कहानियां प्रकाशित भी हो गई. वर्ष 1971 में ‘पहल’ के सम्पादक ज्ञानरंजन का नैनीताल आना हुआ तो राजीव की उनके साथ जमकर घुमक्कड़ी हुई, हिंदी को लेकर अपने अंदर उथल-पुथल मचा रहे विभिन्न प्रश्नों के बारे में राजीव ने ज्ञानरंजन से बातचीत करी.
ज्ञानरंजन द्वारा प्रेस खोल प्रकाशन के क्षेत्र में जाने के सुझाव को दिल से लगा राजीव अपने परिवार से बातचीत करने के बाद ‘प्रेस’ की एबीसीडी सीखने इलाहाबाद चले गए. वहां अपने रिश्तेदार मनोहर लाल जगाती के घर रहते हुए उनका सम्पर्क रामाप्रसाद घिडियाल से हुआ और उनसे राजीव को प्रेस के बारे में बहुत कुछ सीखने को मिला. इलाहाबाद से वापस आ उन्होंने वर्ष 1973 में राजहंस प्रेस खोला पर जब तक वह जमा तब तक देश में इमरजेंसी का साइरन बज गया और समाचार पत्र शुरू करने में देरी हुई.
वर्ष 1977 में इमरजेंसी समाप्त होने के बाद ‘नवनीत’ पत्रिका से प्रभावित राजीव लोचन साह ने अपने साथ नैनीताल के दो युवाओं हरीश पन्त और पवन राकेश को भी जोड़ा और लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ को मजबूत करने के लिए वर्ष 1977 के स्वतंत्रता दिवस को ‘नैनीताल समाचार’ की शुरुआत करने के लिए चुना.
‘नैनीताल समाचार’ नाम राजीव के द्वारा समाचार पत्र स्वीकृत कराने के लिए भेजे गए नामों में तीसरे नम्बर पर था, राजीव कहते हैं कि वह समाचार पत्र का नाम ‘देवदार’ रखना चाहते थे. नैनीताल समाचार एक पाक्षिक अखबार के रुप में शुरू हुआ जिसको अपनी शुरुआत से ही गांधीवादी चंडी प्रसाद भट्ट और सुंदर लाल बहुगुणा का मार्गदर्शन मिला. दिल्ली से छप रहे अखबारों के उत्तराखंड में देर से पहुंचने की वज़ह से यहां खबरों का सूखा बना रहता था, नैनीताल समाचार के आगमन ने उसे दूर किया और देखते ही देखते अख़बार अपने पहले अंक से ही उत्तराखंडवासियों के बीच लोकप्रिय हो गया. लेखकों, पत्रकारों की बात की जाए तो वर्तमान समय के प्रसिद्ध इतिहासकार पद्मश्री शेखर पाठक के साथ नवीन जोशी, गोविंद पन्त राजू जैसे भविष्य के नामी पत्रकारों के साथ इस अखबार की शुरुआत हुई.
उत्तराखंड के लिए हमेशा से ही मुख्य समस्या रहे प्रवास पर इस अख़बार के दूसरे अंक से ही ‘प्रवास की डायरी’ छपी जो अगले सात साल तक जारी रही और तीसरे अंक में तवाघाट दुर्घटना पर एक रपट प्रकाशित हुई जिसमें पत्रकार के नाम की जगह लिखा तो विशेष प्रतिनिधि गया था पर वह ख़बर सुंदर लाल बहुगुणा ने लिखी थी.
6 अगस्त 1977 को नैनीताल में वनों की नीलामी पर ख़बर करने राजीव अपने मित्र विनोद पांडे के साथ गए थे पर वहां स्थिति ऐसी बनी कि उसको लेकर राजीव लोचन साह कहते हैं कि “मैं वहां गया तो एक पत्रकार के तौर पर था पर जब बाहर आया तो एक आंदोलनकारी बन चुका था.” उसी साल नवंबर में वनों की नीलामी के विरोध में हुए प्रदर्शनों में गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ भी आंदोलनकारी बन गए और नैनीताल समाचार के साथ उनका अटूट सम्बन्ध शुरू हुआ. नैनीताल में पढ़ते हुए पलाश विश्वास और कपिलेश भोज भी नैनीताल समाचार के साथ जुड़ गए.
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मई 1982 में समाचार पत्र का कार्य पूरा समझकर इसके कर्ताधर्ताओं ने इसे बंद करने की ठानी और इसको लेकर अख़बार में एक छोटा सा सन्देश भी लिख दिया पर उसके बाद पत्रों से पाठकों के इसे बंद न करने की गुज़ारिश पर अख़बार चलता रहा.
वर्ष 1983 में ‘उत्तराखंड की बाढ़, भूस्खलन और तबाही’ शीर्षक से छपा आलेख उत्तराखंड के इतिहास में हुई प्राकृतिक आपदाओं को दिखाता है और उन पर शोध करने का बेहतरीन माध्यम है. इतिहास पर नित्यानन्द मिश्रा की लिखी श्रृंखला पर तो ‘कुर्मांचल गौरव गाथा’ नाम से पुस्तक भी छप गई है.
शेखर पाठक बताते हैं कि “1974 की अस्कोट – आराकोट यात्रा में उन्हें इम्तिहान की वज़ह से जल्दी वापस लौटना पड़ा था पर जब वह 1984 में इस यात्रा पर वापस गए तो नैनीताल समाचार के बहुत से नए सदस्य बने. गोविंद पन्त राजू नैनीताल समाचार की रसीद यात्रा के दौरान अपने हाथों में ही पकड़े रहते थे.”
जनांदोलनों का प्रतिबिंब
उत्तराखंड से उत्तरांचल और फिर उत्तराखंड बनने का पूरा सफ़र हम नैनीताल समाचार में पढ़ सकते हैं, यह यात्रा भी नैनीताल समाचार के साथ ही चलती प्रतीत होती है. प्रदेश में होने वाले हर प्रकार के जनांदोलनों की यह आवाज़ बनते गया. नन्द किशोर भगत समाचार से जुड़ उसमें नयापन लाने का प्रयास करते रहते थे तो देवेंद्र नैलवाल और लक्ष्मण बिष्ट ‘बटरोही’ जैसे साहित्यिक लोग भी इसके लिए लिखते रहे.
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वर्ष 1984 में प्रदेश के अंदर शराब विरोध में चल रहे आंदोलन की ख़बर को समाचार पत्र ने ‘नशा नही रोज़गार दो’ शीर्षक से छापा और उसकी वज़ह से जन इस आंदोलन से जुड़ता चला गया. ‘अल्मोड़ा मैग्नेसाइट लिमिटेड’ को लेकर यह कहा जाता था कि उसकी वज़ह से स्थानीय लोगों को नुक़सान और उद्योगपतियों को फ़ायदा हो रहा है तो वर्ष 1988 में अख़बार ने जनता की आवाज़ बन एक आलेख छापा जिसका शीर्षक था ‘ईस्ट इंडिया कम्पनी उत्तराखंड में उग गई है’.
गोविंद पन्त राजू के लखनऊ चले जाने के बाद महेश जोशी ने नैनीताल समाचार की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली, उन्होंने अकेले ही समाचार के लिए सदस्यता अभियान चलाया. विजय मोहन सिंह खाती, राजीव नयन बहुगुणा, प्रदीप टम्टा, चंद्रशेखर तिवारी, ताराचन्द्र त्रिपाठी, यशोधर मठपाल, राजशेखर पन्त, दिनेश उपाध्याय भी समय के साथ नैनीताल समाचार से जुड़ते चले गए और ख़बरों का सिलसिला आगे बढ़ता रहा.
वर्ष 1994 में उत्तराखंड राज्य आंदोलन के बीच हुए मसूरी हत्याकांड पर अख़बार ने ख़बर छापी ‘मसूरी : लाशों को बो कर उत्तराखंड के फूल उगाओ’. नया राज्य बनने के बाद भी नैनीताल समाचार ने जन की ख़बरों को छापना नही छोड़ा और अपना पत्रकारिता धर्म निभाते हुए समाचार पत्र जन की आवाज़ बना रहा. अगस्त 2011 में प्रदेश में बन रहे बांधों से पर्यावरण को होने वाले नुक़सान पर ‘बांध के लिए वन कानून आड़े नही आते’ नाम से ख़बर छपी.
अख़बार सिर्फ़ उत्तराखंड ही नही राष्ट्रीय स्तर की महत्वपूर्ण घटनाओं पर भी अपनी राय मज़बूती के साथ रखता रहा. शेखर पाठक के अनुसार नैनीताल समाचार की यह विशेषता रही है कि उसके सदस्यों में अधिकतर सदस्यों के आंदोलनकारी होने बावजूद उसने दूसरा पक्ष भी अपने पाठकों के सामने अच्छे तरीके से रखा.
नैनीताल समाचार में विशेष
आज जब उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंचना आसान है तब भी बहुत से क्षेत्रीय व राष्ट्रीय समाचार पत्र, वेब पोर्टल्स वहां घटित कोई घटना पर किसी अन्य की ली तस्वीरों, वीडियो के माध्यम से अपनी ख़बर देते हैं पर आज से चार दशक पहले जब उत्तराखंड के दूरस्थ क्षेत्रों में पहुंचना आसान नही था तब वहां घटित किसी आपदा में नैनीताल समाचार के संवाददाता पहुंच जाते थे और अपने पाठकों तक ग्राउंड रिपोर्ट पहुंचाते थे.
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नैनीताल समाचार अपने पाठकों के साथ जुड़ने के लिए नए-नए प्रयोग करता रहा है. 1990 में चल रहे आरक्षण आंदोलन के दौरान दो पृष्ठ के परिशिष्ट छाप सड़कों पर बेचे गए थे. वर्ष 1993 में राकेश लाम्बा द्वारा शुरू गई निबंध प्रतियोगिता का छात्रों को इंतज़ार रहता था. साल 1994 के राज्य आन्दोलन के दौरान नैनीताल समाचार का ‘सांध्यकालीन उत्तराखंड बुलेटिन’ बेहद लोकप्रिय हुआ. 3 सितंबर से 25 अक्टूबर तक नैनीताल के दो स्थानों पर रेडियो बुलेटिन की तर्ज़ पर बुलेटिन पढ़ा गया. जिसका प्रयोग बाद में देश के अन्य हिस्सों दिल्ली के जंतरमंतर, उत्तराखंड के गोपेश्वर और उत्तरकाशी में भी किया गया. अंटार्कटिक की धरती पर पहली बार गए पत्रकार गोविंद पन्त राजू की डायरी भी बहुत लोकप्रिय हुई.
समाचार पत्र में चिट्ठी पत्र, सौल कठौल और आशल कुशल भाग अपने आप में अनोखे हैं. ‘आशल कुशल’ उत्तराखंड की जिलावार ख़बरों से एकसाथ रूबरू करवाता है. साहित्य अंक, पर्यावरण अंक, होली अंक, हरेला अंक एक नया प्रयोग थे. होली अंक में होली के गीत रंगीन पृष्ठों पर प्रकाशित होने के बाद उत्तराखंड की होली का अहसास कराते अलग ही आनन्द देते हैं.
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उत्तराखंड के लोकपर्व हरेला के लिए हर साल एक विशेष हरेला अंक आता है, अंक के साथ पाठकों के लिए हरेले का तिनका भी भेजा जाता है. होली अंक और हरेला अंक के यह प्रयोग भारत या विश्व के किसी समाचार पत्र में शायद ही देखने को मिले.
शेखर पाठक बताते हैं कि “सौल कठौल स्तम्भ को देख नैनीताल समाचार की रचनात्मकता की तारीफ़ तब के वरिष्ठ पत्रकार कैलाश साह ने भी की थी.” नैनीताल समाचार को लेकर दो भावनात्मक किस्सों को याद करते हुए शेखर पाठक कहते हैं कि “लखनऊ में उन्होंने किसी के घर में हरेले अंक को फ्रेम किया हुआ देखा था और ऐसे ही किसी ने वहां अपने घर के ड्राइंग रूम की टेबल में उसका होली अंक फिक्स किया था.”
शेखर कहते हैं “नैनीताल समाचार में फ़ैज़ की कविताओं के पोस्टर अपने आप में अनोखे होते थे. तवाघाट घटना पर लेटर प्रेस में मेटल को टेढ़ा कर नक्शा बनाया गया था, तकनीक के अभाव में भी समय से आगे की सोच वाले ऐसे बहुत से प्रयोग नैनीताल स्थित नैनीताल समाचार के कार्यालय में देखे जा सकते हैं.”
डिजिटल, कोरोना काल में नैनीताल समाचार
मोबाइल इंटरनेट लोकप्रिय होने के बाद बहुत से समाचार पत्रों, टीवी चैनलों ने अपने संस्थान के वेब पोर्टल बनाए तो कुछ समाचार संस्थानों ने वेब पोर्टल पर ही जन्म लिया. समय की मांग को देखते हुए नैनीताल समाचार भी वेब पर उपलब्ध है और इसका श्रेय वर्तमान समय में नैनीताल समाचार का डिजिटल कार्य देख रही विनीता यशस्वी के साथ रोहित जोशी को भी जाता है.
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समय के साथ बहुत से नए साथी भी नैनीताल समाचार के साथ जुड़ते रहे पर नैनीताल समाचार अपने साथ किसी अन्य की आर्थिक जरूरत कभी पूरी नही कर पाया इसलिए कोई भी इससे लंबे समय तक नही जुड़े रहा.
कोरोना काल में लगभग सभी समाचार पत्र विज्ञापन न मिलने की वज़ह से बुरी स्थिति से गुज़र रहे हैं, पहले से ही आर्थिक संकट से जूझ रहा नैनीताल समाचार भी इससे अछूता नही रहा पर फिर भी अपने पाठकों के सहयोग, राजीव लोचन साह की जमापूंजी और विनीता यशस्वी के साथ दिनेश उपाध्याय की कर्तव्यनिष्ठा से यह निरंतर प्रकाशित होता रहा.
नैनीताल समाचार के वाट्सएप ग्रुप ‘समाचार की टीम’ में समाचार के भविष्य को लेकर समय-समय पर रणनीति बनाई जाती है और ग्रुप के सदस्य वास्तविक पत्रकारिता को जीवित रखने के लिए अपना आर्थिक सहयोग भी देते रहते हैं.
नैनीताल समाचार वेब में 17 सितंबर 2020 को प्रकाशित आलेख ’18 सितंबर नैनीताल क्लीनअप डे: क्या देश कुछ अनोखा देखेगा’ पढ़ने के बाद नैनीताल में स्वच्छता अभियान से जुड़ी संस्था ‘ग्रीन आर्मी’ के जय जोशी कहते हैं कि यह आलेख पढ़ने के बाद उनमें कुछ करने का जोश भर गया.
वर्ष 2021 के अप्रैल अंक की ख़बर ‘ये आग तो बुझ जाएगी, मगर सवाल तो सुलगते रहेंगे’ के साथ उत्तराखंड की वनाग्नि पर सवाल उठाते नैनीताल समाचार भारतीय हिंदी पत्रकारिता में अपना काम करते जा रहा है.
शेखर पाठक कहते हैं कि “समाचार से नए लोग अधिक संख्या में जुड़ने चाहिए जिससे युवाओं के बीच भी यह लोकप्रिय हो, फेक न्यूज़ के सहारे कोई अधिक समय तक नही टिक सकता. समाचार की दुनिया में वही टिके रहेगा जो रचनात्मकता के साथ सही खबरें दिखाएगा. इन सब के लिए नैनीताल समाचार को आर्थिक रूप से मज़बूत करने की योजना भी बनानी होगी.”
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सोशल मीडिया पर कई गैरजरूरी मुद्दों को हाईलाइट किया जाता है और वास्तविक मुद्दों को दबा दिया जाता है, फेक न्यूज़ का मकड़जाल इतना मज़बूत हो गया है कि उससे बाहर निकलना मुश्किल होता जा रहा है. युवाओं को जरूरत है कि वह उनके मुद्दों को उठा रहे समाचार पत्रों के बारे में जानें और जन के मुद्दों को उठाने के लिए इन्हें मज़बूत करें.
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हिमांशु जोशी
टनकपुर में रहने वाले हिमांशु जोशी ने यह लेख काफल ट्री की ईमेल आईडी पर भेजा है. हिमांशु से उनकी ईमेल आईडी [email protected] पर सम्पर्क किया जा सकता है.
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