पिछले साल बरसातों में नैनीताल की मॉलरोड का ढहना एक प्रतीक्षित हादसा था. इसे ढहना ही था, ढह गयी. शायद किसी भी ऐसे सामान्य समझ वाले व्यक्ति को आश्चर्य नहीं हुआ होगा जिसे प्रकृति और पहाड़ की थोड़ी बहुत भी समझ है. ताजुब तो यह है कि यह सब बहुत देर से हो रहा है. इसे बहुत पहले हो जाना चाहिए था. या इससे भी कुछ बहुत ज्यादा पहले.
मुझे याद है सत्तर के दशक के दूसरे हिस्से में जब हम स्थानीय डीएसबी कालेज के छात्र थे मॉलरोड का यह हिस्सा धंसा था. एक लैंपपोस्ट भी तब खिसक कर तालाब के किनारे पहुँच गया था. उस समय कहा जाता था कि इस जगह के ठीक ऊपर स्थित एक हेरिटेज होटल के स्वामी ने तब स्थानीय निकाय को इस आशय का एक नोटिस भी सर्व किया था कि उनके होटल को कुछ नुकसान पहुँचता है तो स्थानीय निकाय की लापरवाही इसके लिए जिम्मेदार होगी. मुझे ज्ञात नहीं कि यह सब कितना सही है, पर इस तरह की चर्चा तब हमारे कालेज और हॉस्टल में हुआ करती थी.
कुछ संयोग, नब्बे के दशक के आख़िरी वर्षों में मुझे दुबारा कश्मीर से टेलीविज़न की दुनिया छुड़ा नैनीताल ले आये. भीमताल मेरा घर है, इस कारण नैनीताल से परिचय नया नहीं था. वर्ष 2000 के बाद मैंने देश के शायद हर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिका में नैनीताल पर लगातार मंडराते खतरों पर लिखा. हिंदुस्तान टाइम्स, डाउन टू अर्थ, कैरेवान, अलाइव, टेरा ग्रीन, गवर्नेंस नाव … शायद ही कोई पत्र-पत्रिका बची हो जिसमे मैंने सारी रिसर्चेस को कोट करते हुए न लिखा हो.
सारे लेख अंग्रेजी में थे, जिन्हें मैं बराबर अपनी फेसबुक वाल पर पोस्ट भी करता रहा. हालाँकि मेरा अनुभव है कि अंग्रेजी लेखन आपको चन्द आर्मचेयर एक्टिविस्टों की लाइक या कुछ इस तरह के कमेन्ट्स कि “आप बहुत अच्छा लिखते हैं” से अधिक कुछ और नहीं दे सकता. हाँ, पैसा आपको पांच रूपया प्रति प्रकाशित शब्द की दर से ठीक-ठाक मिल जाता है.
मुझे आज भी याद है, टेरा ग्रीन में प्रकाशित मेरी कवर स्टोरी – ‘Death Knell of Nainital’ पर कुछ स्थानीय लब्धप्रतिष्ठ विद्वानों ने माँ नैनादेवी से मुझे सद्बुद्धि देने की दुआ की थी. खैर.
नैनीताल निश्चित ही तबाही के कगार पर है. मुझे याद है वर्ष 2011-12 में मैं हिंदुस्तान टाइम्स के लिए फुल पेज स्टोरी कर रहा था. मैंने तत्कालीन डीएम को इंटरव्यू किया था. डीएम साहिब ने मेरे प्रश्नों के उत्तर में बताया था कि बीरभट्टी के पॉवर हाउस से जुड़े पेनस्टाक से हो रहे रिसाव से तालाब का पानी कम हो रहा था. जब मैंने उन्हें पेनस्टाक की तस्वीरें दिखाईं, जिनमे कि नल का मुहाना पानी के लेवल से लगभग ४ फुट ऊपर था तो उन्होंने शाम की चाय साथ पीने की पेशकश कर दी.
जब आपके नेता निहायत मूर्ख और धूर्त हों, और नौकरशाही इन धूर्तों की एक तरह से व्यक्तिगत मिलिशिया और भोंपू बन जाए तो आप क्या उम्मीद कर सकते हैं.
नैनीताल को बर्बाद होना है, हो कर रहेगा, आपका या मेरा प्रलाप इसे रोक नहीं सकता. अभी थोड़ी देर पहले मैं टीवी पर विपक्ष की एक नेता की बाइटस देख/सुन रहा था. हंसी आ रही थी मुझे. ये ब्लेम-गेम आखीर में नैनीताल के ताबूत की आख़िरी कील बनेगा.
नैनीताल के एक प्रतिष्ठित आवासीय विद्यालय में अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ाने वाले राजशेखर पन्त लम्बे समय से देश के सबसे महत्वपूर्ण अखबारों और पत्रिकाओं के लिए पर्यावरण और पर्यटन के विषयों पर धारदार लेखन करते रहे हैं.
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