धूप का चौकोर टुकड़ा
सुबह का समय है. कमरे के बाहर बरामदे में धूप का चौकोर टुकड़ा अससाया सा लेटा है. धूप के टुकड़े को देखते ही मन किया कि इस चतुर्भुज का क्षेत्रफ़ल निकाला जाये. लम्बाई करीब ढेड़ मीटर है. चौडाई एक मीटर. विकर्ण होगा कोई दो मीटर के आसपास. कौन सा फ़ार्मूला लगाया जाये यह अभी समझ में नहीं आ रहा है. धूप का टुकड़ा आहिस्ते-आहिस्ते मेरे पास खिसकता आ रहा है. लगता है वह मेरी सहायता करना चाह रहा है कि मैं उसकी लंबाई-चौड़ाई नापकर उसका आकार निकाल लूं.
नीचे से अखबार वाले ने अखबार फ़ेंका है. अखबार धूप के चौकोर टुकड़े के ऊपर आकर गिरा है. अखबार के नीचे की धूप कसमसाकर अखबार के ऊपर आ गयी. लेकिन अखबार के अनियमित आकार के चलते धूप का क्षेत्रफ़ल गड़बड़ा गया है.
सामने दिखते अखबार को उठाने का आलस्य है. बगल के फ़ोन उठाकर मेस में बोलते हैं कि बच्चा एक चाय और दे जाओ. बच्चा आता है तो उससे अखबार उठाने के लिये कहते हैं. अखबार में मुख्य खबर चुनाव से संबंधित हैं. एक में बताया है कि फ़लानी पार्टी के फ़लाने अब फ़लानी पार्टी में. दूसरी कहती है- फ़लाने के तेवर ढीले, आलाकमान का हुकुम मानेंगे.
बाहर बगीचे में पाइप से निकलता पानी पैराबोला का आकार बना रहा है. पैराबोला के बारे में इंटरमीडियट में पढे थे. उस समय मीडियम अंग्रेजी हो गया था इसीलिये पैराबोला का हिन्दी नाम याद नहीं आ रहा है. शब्दकोश में पैराबोला की हिन्दी देखते हैं. पैराबोला माने परवलय. परवलय का सूत्र अलबत्ता याद आ रहा है. वाई स्क्वायर = 4ax
पानी की धार देखकर लग रहा है वह सूरज की अगवानी में पानी की सलामी ठोंक रहा है. सूरज की किरणें पानी के इर्द-गिर्द मजमा लगाये हैं. उनकी चमक से पानी की धार भी जगमगा रही है. धार से निकलता पानी ऊंचाई पर पहुंचकर थरथरा सा रहा है. लग रहा है सूरज की किरणों के सामीप्य के अहसास से रोमांचित होकर लहालोट हो रहा है.
बीच-बीच में कोई-कोई किरण पानी की बूंदों के सामीप्य में अपने सारे रंग खोलकर उसको दिखाने लगती है. इस रंग-प्रदर्शन से कई-कई इंद्रधनुष बनते जा रहे हैं. जैसे ही किरणों को याद आता है कि वह सबके सामने अपने रंग दिखा रही है उनका चेहरा मारे लाज के भक्क सफ़ेद हो जाता है. वे फ़िर अपने मूल रंग में लौट आ जाती हैं. लेकिन दूसरी किरणें इस सबसे बेखबर अपने – अपने इन्द्रधनुष बनाने में मशगूल हैं.
सूरज भाई के साथ चाय पीते हुये अपन सुबह का यह हसीन नजारा देख रहे हैं. आप क्या कर हैं?
16 सितम्बर 1963 को कानपुर के एक गाँव में जन्मे अनूप शुक्ल पेशे से इन्जीनियर हैं और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में कार्यरत हैं. हिन्दी में ब्लॉगिंग के बिल्कुल शुरुआती समय से जुड़े रहे अनूप फुरसतिया नाम के एक लोकप्रिय ब्लॉग के संचालक हैं. रोज़मर्रा के जीवन पर पैनी निगाह रखते हुए वे नियमित लेखन करते हैं और अपनी चुटीली भाषाशैली से पाठकों के बांधे रखते हैं. उनकी किताब ‘सूरज की मिस्ड कॉल’ को हाल ही में एक महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हुआ है
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