सूरज भाई गुलगपाड़ा सुनकर गर्मा गये
आज सुबह जरा जल्दी जग गये. सूरज भाई का इन्तजार करते उधर देखते रहे जिधर से उनका आगमन होता है. सबसे पहली नजर से कोमल लालिमा देखकर लगा कि उगते सूरज को चारों दिशाओं ने मिलकर एकसत्थै चूम लिया है और उनके गाल लाल हो गये हैं. फ़ेसबुक एकाउन्ट होता सूरज भाई का तो अपडेट करते – ’ब्लस्ड टाइप फ़ील कर रहे हैं.”
सूरज भाई की लाली देखकर यह भी लग रहा है कि आज सुबह आते ही बादल और ओलों से बरबाद फ़सल देखकर उनका चेहरा गुस्से से लाल हो गया है. उगते सूरज भाई नर्मदा यात्री अमृत लाल बेगड़ जी को कैसे दिखते हैं यह देखिये :
“धरती से बहर निकलते ही सूर्य चिल्लाया-”टैक्सी!” लेकिन बाद में मैंने इसे काट दिया. सूर्य तो है चिर पदयात्री. न तो उसे सात अश्ववाले रथ की न ही चौदह या इक्कीस हार्स-पावर वाली टैक्सी की जरूरत है. फ़िर लिखा था,” ऊषा लगातार रंग बदल रही है मानो नवजात सूर्य के पोतड़े बदल रही हो.” लेकिन बाद में इसे काट दिया. फ़िर लिखा था,” सूरज आकाश में ऐसे घुस आया है मानो किसी खेत में कोई मवेशी घुस आया हो.”
धरती पर पहुंचते ही सूरज की किरणें जिस तरह रेलवे के जनरल डिब्बे में यात्री डब्बा खुलते ही सीट पर कब्जा करने के लिये टूट पड़ते हैं वैसे ही फ़टाफ़ट अपनी-अपनी जगह पर कब्जा करने के लिये टूट पड़ीं. जगह पक्की होते ही वे खिलखिलाती हुयी आपस में बतियाने लगी. कुछ किरणें भारत की क्रिकेट पर हार के बारे में बतकुच्चन करने लगी. कुछ शाहिद आफ़रीदी को हीरो बता रहीं थीं कुछ नासपीटा. लेकिन बात उसई के बारे में कर रहीं थीं.
कुछ राजनीतिक रूप से जागरूक किरणें प्रधानमंत्री-प्रधानमंत्री खेलने लगीं. तीन दल बनाकर वे अपने को प्रधानमंत्री बनाने का आह्वान करने लगीं. पत्तों को मोड़कर भोपूं सरीखा बनाकर वे गला फ़ाड़कर चिल्लाने लगीं:
भाइयों अगर देश से करप्शन मिटाना है तो मुझे जिताओ.
मित्रों देश के विकास का काम हमारे अलावा और कोई न कर सकता. हमको प्रधानमंत्री बना दो आपका बवाल कटे.
साम्प्रदायिक शक्तियों को आगे बढने से रोकने के लिये हमें बनाने के अलावा और कोई चारा तो है नहीं.
खेल के दौरान उन्होंने तय किया कि प्रधानमंत्री एक नहीं समस्यायों के हिसाब से होगा. हर समस्या का एक्सपर्ट उस समस्या का प्रधानमंत्री बन जायेगा. एक ‘विकास प्रधानमंत्री’, एक ‘भ्रष्टाचार निवारक प्रधानमंत्री’, एक ‘सेकुलर प्रधानमंत्री’. सब मिलकर अपना-अपना काम करते रहेंगे. देश का कल्याण करना है तो नये तरीके तो सोचने पड़ेंगे.
और ’नौटंकी प्रधानमंत्री’ कौन होगा ? —एक मासूम किरण ने एक कली की छत से आवाज लगाई.
नौटंकी करने पर सबका समान अधिकार होगा. बिना नौटंकी के प्रधानमंत्री का क्या मतलब? इसलिये उसके लिये अलग से कोई प्रधानमंत्री न बनाया जायेगा. – सबने ध्वनि मत से प्रस्ताव पारित किया.
सूरज भाई ये गुलगपाड़ा सुनकर गर्मा गये. उन्होंने किरणों की तरफ़ गुस्साकर देखा तो वहां आचार संहिता सरीखी लग गयी और किरणें चुपचाप मुस्कराते हुये अपना-अपना काम करने लगीं.
कुछ किरणें सूरज दादा की आंख बचाकर फ़ूलों की पत्तियों को रजाई की तरह लपेटकर अलसाई सी ऊंघने लगीं.
सूरज भाई हमारे साथ बैठे चाय पी रहे हैं. आपके लिये भी मंगवाये क्या? उठिये भाई सबेरा हो गया है!
16 सितम्बर 1963 को कानपुर के एक गाँव में जन्मे अनूप शुक्ल पेशे से इन्जीनियर हैं और भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में कार्यरत हैं. हिन्दी में ब्लॉगिंग के बिल्कुल शुरुआती समय से जुड़े रहे अनूप फुरसतिया नाम के एक लोकप्रिय ब्लॉग के संचालक हैं. रोज़मर्रा के जीवन पर पैनी निगाह रखते हुए वे नियमित लेखन करते हैं और अपनी चुटीली भाषाशैली से पाठकों के बांधे रखते हैं. उनकी किताब ‘सूरज की मिस्ड कॉल’ को हाल ही में एक महत्वपूर्ण सम्मान प्राप्त हुआ है
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