कुछ लोगों को यह अजीब और असत्य लगेगा, पर सच यही है कि हमारे साथ जो भी होता है, उसके लिए सिर्फ और सिर्फ हम ही जिम्मेदार होते हैं. हमें यह इसलिए अजीब लग सकता है, क्योंकि वास्तविकता को लेकर अमूमन हम बेहोशी में रहते हैं और हमें पता नहीं चल पाता कि हमारे साथ जो हो रहा है, वह क्यों हो रहा है. इस तरह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से उसके लिए हम खुद ही जिम्मेदार हैं.
(Mind Fit 47 Column)
आप यह अवश्य मानोगे कि हम हर पल कुछ न कुछ करते ही रहते हैं. हमें खाली बैठना आया ही नहीं. शरीर से कुछ नहीं कर रहे होंगे, तो दिमाग से कर रहे होंगे. दूसरों से बात नहीं कर रहे होंगे, तो खुद से ही बात करने लगेंगे. यह बेवजह नहीं है कि लोग मनोचिकित्सकों के पास अजीबोगरीब बीमारियां लेकर पहुंचते हैं- नींद नहीं आती, बुरे सपने आते हैं, मन में हर वक्त घबराहट होती है, काम इच्छा नियंत्रण में नहीं आ रही आदि-इत्यादि. इस लिस्ट का कोई अंत नहीं. ध्यान देने वाली बात यह है कि मनोचिकित्सक आपको सीधे कुछ नहीं बताने वाला. वह सबसे पहले आपसे पूरी ईमानदारी से जवाब देने की शर्त के साथ पूछेगा कि आप किन-किन गतिविधियों में अपना समय लगाते हो. क्योंकि इलाज का आधार आपकी गतिविधियां ही होने वाली हैं कि आप क्या-क्या करते हो. वह आपको कुछ काम करने से मना करते हुए कुछ नए काम करने को कहेगा. उसे आप पर पड़ रहे प्रभावों का कारण खोजना है, जिससे कि उसे नियंत्रित कर सके. जब तक कारण नहीं पता चलेगा, प्रभाव पर हम कैसे काम कर सकते हैं.
रात को नींद न आना एक प्रभाव है. इसके कई कारण हो सकते हैं. दिन में सो जाना, ज्यादा सोचते रहना, घबराहट होना, मोबाइल की लत लगना. अब जैसे युवा और कई बार बड़ी उम्र के लोग भी अपनी यौन इच्छाओं को लेकर परेशान रहते हैं. उन्हें लगता है कि उनकी इच्छाएं उनके नियंत्रण से बाहर जा रही हैं. नियंत्रण रहेगा कैसे? वे जब तब इच्छाओं को भड़काने वाले विडियो देखते हैं, दोस्तों से उसी विषय पर बातें करते हैं, वैसी ही फिल्में भी देखते हैं या किताबें पढ़ते हैं और जब तब उसी के बारे में सोचते रहते हैं, आंखें बंद कर वैसे ही दृश्य देखते-विजुअलाइज करते हैं.
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चारों ओर से कामनाओं को जगाने वाली चीजों की ऐसी बमबारी के बीच कैसे वह इच्छा सोई रह सकेगी. वह चिंघाड़ मारती जाग जाती है. नदी शांत थी. तुमने काले बादल इकट्ठे किए, तुमने बिजली चमकाई, तुमने मूसलाधार बारिश करवाई. अब नदी चढ़ गई. नदी में बाढ़ आ गई. तो अब तुम घबराकर मनोचिकित्सक के पास क्यों जाते हो? अब बाढ़ को उतरने में थोड़ा वक्त तो लगेगा, अब नदी को शांत होने में थोड़ा समय तो लगेगा. लेकिन वह तभी उतरेगी, जबकि मूसलाधार बारिश रुक जाए, बिजली कड़कना बंद हो जाए और काले बादल छंट जाएं. अगर घटाटोप बना रहा और बारिश होती रही, तो नदी बेचारी कैसे कम होगी. इसमें नदी का तो दोष न होगा.
तुम फिल्में देखना बंद नहीं करते, वैसी ही किताबें पढ़ते रहते हो, दोस्तों से वही-वही बातें और वही-वही सोचना जारी रखते हो, तो वासना का वेग कम कैसे होगा. वह सोचना शरीर को प्रभावित करेगा. इसमें शरीर का कोई दोष न होगा. वह तो अपना काम कर रहा है. दोष तुम्हारे विवेक का है कि वह कारण की ही शिनाख्त नहीं कर पा रहा. यह बात हमारी हर तकलीफ, हर मुसीबत, हर मन:स्थिति पर लागू होती है.
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हर तकलीफ, हर मुसीबत और हर मन:स्थिति के लिए हमारी ही बेहोशी जिम्मेदार है, क्योंकि हम उन्हें आकार लेते नहीं देख पाए. आसमान में बादल आते हैं, लेकिन उसकी प्रक्रिया समुद्रों की सतह से शुरू हो जाती है. वहां से सूर्य की गरमी से पानी वाष्पीभूत होकर ऊपर उठता है. हमें पानी के वाष्प में बदलकर ऊपर उठने की प्रक्रिया दिखती नहीं है, पर वह हो तो रही ही होती है ना. हमें सीधे बादल दिखते हैं. सीधे तकलीफ, मुसीबत या खराब मन:स्थिति दिखती है.
हमें सिर्फ यह दिखता है कि हमारी ट्रेन छूट गई, हमारा हवाई जहाज छूट गया. लेकिन हमें अपना घर से देरी से निकलना नहीं दिखता. हमें अपना फाइनल परीक्षाओं में फेल होना दिखता है, साल भर पढ़ाई न करना नहीं दिखता. अगर सब दिखने लगे, तो यह समझने में हमें देर नहीं लगेगी कि हमारे जीवन में निन्यानबे प्रतिशत घटनाओं के लिए सिर्फ हम जिम्मेदार होते हैं. दरअसल हम खुद ही तय करते हैं कि हमारे जीवन का ऊंट किस करवट बैठता है. थोड़ा-सा सजग होने की जरूरत है बस. क्योंकि जीवन में दुख और खुशी, दोनों के लिए हमारे ही क्रियाकलाप जिम्मेदार होते हैं. सच तो यह है कि हम खुद ही कामनाएं जगाते हैं, खुद ही परेशान होते हैं.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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