किसी भी क्षण आपके पास सोचने के लिए हमेशा दो विकल्प रहते हैं. पहला यह कि आप जिसके बारे में भी सोच रहे हैं- किसी स्थिति के बारे में, किसी व्यक्ति के बारे में, किसी घटना के बारे में- आप नकारात्मक सोचें. नकारात्मक का अर्थ है- ऐसा सोचना जो आपको तकलीफ दे, आपके भीतर क्रोध, अवसाद, निराशा, हताशा, ईर्ष्या का भाव लाए. सोचने से इमोशन यानी भाव ही पैदा होते हैं. मनुष्य के दिमाग और शरीर के काम करने के तरीके को थोड़ा समझें. आपके सोचने का सीधा असर आपके शरीर पर पड़ता है. सोचकर ही अपनी बीमारी को ठीक करने के लाखों सफल प्रयोग किए जा चुके हैं.
(Mind Fit 36 Column)
सोचना जब सकारात्मक होता है, तो वह शरीर में उत्साह, शौर्य, साहस, प्रेम, बंधुत्व जैसे पॉजिटिव भाव लेकर आता है. अब आप अपने ही जीवन में अपने ही आसपास के लोगों पर ध्यान देकर यह देखें कि उनमें से कितने लोग ऐसे हैं, जो हमेशा पॉजिटिव सोचते हैं और कितने ऐसे हैं, जो हमेशा नेगेटिव सोचते हैं. अपने दिमाग में ऐसे लोगों की शिनाख्त कर लेने के बाद अब आप इस बात पर गौर करें कि पॉजिटिव सोचने से होता क्या है, कैसा सिलसिला शुरू होता है. यह तो आप जान ही गए हैं कि पॉजिटिव सोचने से शरीर में ताकत देने वाले अच्छे भाव पैदा होते हैं. जब कभी आप यह कहते हैं कि खराब, मायूस, उदास महसूस कर रहे हैं, तो उसका सीधा मतलब है कि आप अच्छा नहीं सोच रहे, आप पॉजिटिव नहीं सोच रहे.
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आप अमूमन कैसे भाव में रहते हैं, यह आपका रवैया निर्धारित करता है यानी कि आप कितने उत्साह से लोगों से मिलते, बात करते हैं, आप कैसे अपने काम करते हैं. जब आप चुनौतियों से घबराते नहीं, बल्कि उनके बीच रास्ता निकालने पर भरोसा करते हैं, तो यह आपकी आदत बन जाता है. कैसी भी कठिन स्थिति आ जाए, आप डिगते नहीं, घबराते नहीं, हार नहीं मानते, क्योंकि ऐसी स्थितियों में पॉजिटिव बने रहना आपकी आदत ही बन गया है. अपने परिचय के घेरे में शिनाख्त करें, आपको दो-चार लोग ऐसे जरूर दिख जाएंगे, जो हार मानने को तैयार ही नहीं होते. विपरीत परिस्थितियों में लड़ना उनकी आदत बन गया है. वे हंसी-खुशी लड़ते हुए दिखते हैं. उनके चेहरे पर शिकन दिखाई ही नहीं पड़ती.
सिर्फ स्थितियों से लड़ने को लेकर ही नहीं, अपने हर काम को लेकर हमारी आदतें बन जाती हैं. कैसे हम हाथ आए काम को कल पर नहीं टालते, उसे जल्दी से जल्दी पूरा कर लेते हैं. कैसे हम दूसरों पर निर्भर नहीं रहते, सारी जिम्मेदारियों का खुद ही निर्वाह करते हैं. कैसे हम सुबह जल्दी उठकर अपनी दिनचर्या की सकारात्मक शुरुआत करते हैं. दरअसल हमारे सोचने के ढंग के आधार पर हमारी तरह-तरह की आदतें बन जाती हैं. उनकी जड़ें हमारे भीतर गहरी उतरती रहती हैं. इतनी गहरी कि एक ऐसा समय आता है, हम खुद अलग से नहीं दिखाई पड़ते, हम आदतों का समुच्चय हो जाते हैं. इसी को व्यक्तित्व कहते हैं. यानी हमारी आदतें मिलकर कालांतर में हमारे व्यक्तित्व का निर्माण करती है.
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दुनिया हमारी आदतों की शिनाख्त नहीं कर पाती. वह हमारा व्यक्तित्व देखती है. व्यक्तित्व के विराट होने का अर्थ है कि व्यक्ति में उतनी ही ज्यादा गहरी और उतनी ही ज्यादा अच्छी आदतें हैं. दुनिया को आपका जो व्यक्तित्व दिखाई देता है, अंतत: वही आपके भाग्य का निर्माण करता है, क्योंकि उसी व्यक्तित्व के प्रभाव के आधार पर दुनिया आपके पक्ष में फैसले लेना शुरू करती है. महात्मा गांधी, सुभाष चंद्र बोस, रवींद्रनाथ टैगोर, इन्होंने जीवन में कम विषम परिस्थितयां नहीं देखी थीं. लेकिन हर मोड़ पर, हर उस घड़ी जब भविष्य की राह तय की जानी थी, उन्होंने पॉजिटिव सोचा. निजी जीवन और सार्वजनिक जीवन, दोनों के संबंध में फैसले लेते हुए वे सकारात्मक हुए.
ऐसी सोच ने उनमें ताकत देने वाले भाव पैदा किए, पॉजिटिव सोचना उनका रवैया बनकर उनकी आदत बना. इस तरह बनी आदतों ने उनके व्यक्तित्व का निर्माण किया. हमने हमेशा उनका व्यक्तित्व ही देखा. इसी व्यक्तित्व के प्रभाव ने उन्हें उस मुकाम तक पहुंचाया, जहां तक कि वे वस्तुत: पहुंचे. मुकाम दर मुकाम ऐसे आगे बढ़ना ही तो भाग्य कहलाता है.
इस भाग्य तक पहुंचने के लिए उनका पॉजिटिव सोचना ही उनका प्रस्थान बिंदु था – जहां से उनके व्यक्तित्व के बनने की यात्रा शुरू होती है. उनकी ही क्यों, हम सबकी यात्रा भी वहीं से शुरू होती है कि हम विषम स्थितियों में सोचते कैसा हैं. सोचना अगर पॉजिटिव हो जाए, वहां चीजों का उजला पक्ष देखा जाए, वहां रात को नहीं बल्कि सुबह को तवज्जो दी जाए, तो अपने आप हम भी व्यक्तित्व निर्माण के सफर में चल पड़ेंगे, भाग्य चमकना हमारे अपने हाथ में होगा.
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-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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